कौन नहीं जानता कि वर्तमान भारत वोले तो इंडिया के प्रथम प्रधानमन्त्री नैहरू एक अंग्रेज अधिकारी की पत्नी लेडी मांऊटवेटन के जाल
में इस हद तक फंसे थे कि उन्होंने भारत का प्रधानमन्त्री रहते हुए वो सब किया जो अंग्रेजों ने चाहा ।चाहे वो धर्म के आधार पर भारत के विभाजन को स्वीकार करने के लिए गांधी जी को मजबूर करने का मामला हो या फिर विभाजन के बाद लौहपुरूष सरदार बलभ भाई पटेल जी के हर देशहित में दिए गय सुझाब को नजरअंदाज कर कशमीर के मामले को UNO में लो जाकर भारत को नुकसान पहंचाने की घटना हो। कौन भूल सकता है कि माननीय पटेल जी के वार-वार रोकने के बाबजूद नैहरू ने अंग्रेजों के इसारे पर पाकिस्तान के कब्जे वाले कशमीर को आजाद कशमीर कहकर सारी दुनिया के सामने भारत को जलील करने का दुससाहस किया था। नैहरू जी की रूस यात्रा के दौरान उनके एक अधिकारी के रूसी महिला के चुंगल में फंसे होने की बात को हंसकर नजरअंदाज कर दिया था क्योंकि वो जानते थे कि उस अधिकारी की गद्दारी की ओर देश का ध्यान जाने पर उनके अपने भारतविरोधी कुकर्म भी चर्चा का केन्द्रविन्दु बन सकते हैं।
(एंटोनिया रूस में)
रूस द्वारा भारतीयों को महिलाओं के चक्कर में फंसाकर उनका दुरूपयोग करने का सबसे बढ़ा भारतविरोधी कदम उस वक्त सामने आया जब इंगलैंड में पढ़ रहे भोले-भाले राजीब गांधी जी को एंटोनियो माईनो मारियो के माध्यम से ट्रैप किया गया। अधिक जानकारी के लिए श्री सुबरामणियम स्वामी जी द्वारा 2004 में राष्ट्रपति जी को सौंपी गई चिठी को पढ़ें ।अगर आपके पास उपलब्ध न हो तो अपना Email पता हमें दें हम आपको भेज देंगे।आपको खुदवाखुद पता चल जायेगा कि किस तरह राजीब जी एंमटोनियो माईनो मारियो के चुंगल में फंसाये गय व किस तरह एंटोनियो ने एक ऐसे Honey Trap को सफलतापूर्वक अन्जाम दिया जिसे भारत के विरूद्ध सबसे बढ़ा षडयन्त्र कहा जा सकता है।आप जरा सोचो कि अगर बासतब में एंटोनिया राजीब जी के प्रेम में दीवानी थी तो फिर कवात्रोची कौन है? उसका राजीब जी के घर में क्या काम ? अगर एंटोनिया का क्वात्रोची से की सबन्ध नहीं तो फिर वोफोर्स दलालीकांड में इंगलैंड में जब्त क्वात्रोची के पैसे को निकलवाने में इतनी छटमटाहट क्यों ? क्यों टिठी लिखने या फैक्स भेजने के बजाय ततकालीन कानूनमन्त्री हंसराजभारद्वाज को लन्दन भेजा गया? वोफोर्स दलालीकांड में क्वात्रोची के विरूद्ध चल रहे मामलों को चुनाब से ठीक पहले खत्म करने की हड़बड़ाहट क्यों ? राजीब जी से प्यार था तो फिर राजीब जी की कातिल नलिनी की तरफ दोस्ती का हाथ क्यों ? हमेशा राजीब जी के साथ रहने वाली उनके कत्ल के दिन उनके साथ क्यों नहीं? अधिक जानकारी के लिए एंटोनियो के हिन्दूविरोधी षडयन्त्र पढ़ें जो इसी बलाग पर उपलब्ध हैं। कुल मिलाकर हमारे परिस्थितिजनक प्रमाणों के आधार राजीब जी विषकन्या के सबसे बढ़े सिकार थे जिसकी कीमत उन्हें अपने प्राण देकर चुकानी पड़ी तथा भारत को अपनी सम्प्रभुता खोकर ।हमारे विचार मे इसी Honey Trap के परिणामस्वारूप ये 1947 के वाद पहलीवार है कि देश का प्रधानमन्त्री और राष्ट्रपति एक विदेशी के गुलाम हैं...
आओ मिलकर भारत की सम्प्रभुता को बचाने के लिए संघर्ष करें।
2 टिप्पणियां:
kranti ki shuruaat ho chuki hai
in jankariyon ki jaroorat hai...samaj ke samksh ye baaten aani chahiye....
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