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मोदीराज लाओ

मोदीराज लाओ
भारत बचाओ

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

न मोदी जी बदले हैं न बदलगें ....


 
मोदी जी की अलोचना करना और मोदी जी को बदनाम करना मोदीबिरोधियों का पैसा प्राप्त करने और प्रचार पाने का सबसे बड़ा साधन है इसलिए हम मोदीबिरोधियों द्वारा मोदी जी की अलोन का कभी जबाब नहीं देते ।

लेकिन आजकल कुछ ऐसा हो रहा है जिसका जबाब देना बहुत जरूरीही नहीं बल्कि मजबूरी बन गया है है क्योंकि अब बहुत से ऐसे लोग भी मोदी जी की अलोचना कर रहे हैं जो चुनाबों तक मोदी जी के सच्चे पक्के समर्थक थे और उनके समर्थन का सबसे बड़ा कारण था उनका ये भरोसा कि मोदी जी के प्रधानमन्त्री बनने पर न केबल हिन्दूओं पर सेकुलर पार्टियों के सहयोग से मुसलमानों और ईसाईयों द्वारा किए जा रहे अत्याचार बन्द होंगे बल्कि वल्कि इसलामिक आतंकवादियों को छुड़वाने के सेकुलर गद्दारों की सरकारों द्वारा जेलों में बन्द किए गए हिन्दूंओं की रिहाई भी होगी।

हिन्दूओं जख्मों पर नमक डालने काम न्यायालय का वो निर्णय करता है जिसमें भारतीयों के कातिल इटालियन सैनिक को इस आधार पर स्वादेश भेज दिया गया कि बो बीमार हैं लेकिन कैंसर से पीड़ित साध्यवी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को घर भेजने के लिए भारत की सेकुलर अदालतें त्यार नहीं....

मित्रो बिषयान्तर न करते हुए हम मोदी जी की अलोचना पर ही केन्द्रित करेंगे....

मित्रो क्या आप जानते हैं कि अमिका का राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के लिए बाईबल की कसम उठाता है जो कि दुनिया को ये सन्देश देने के लिए काफी है कि अमेरिका के राष्ट्रपति का पहला काम चर्च(ईसाईयत) की रक्षा व प्रसार करना है।

ठीक इसी तरह मोदी जी द्वारा जापान के प्रधानमन्त्री को श्रीमदभगबत गीता प्रदान करना दुनिया को ये सन्देश देने के लिए काफी है कि मोदी जी का पहला काम भारतीय संस्कृति बोलो तो हिन्दूसंस्कृति की रक्षा करना है।

अब रही बात निर्दोष हिन्दूओं को जेलों से बाहर करने की तो कोई भी वयक्ति इस बात को समझ सकता है कि इन हिन्दूओं ने कोई गुनाह नहीं किया है इन्हें सेकुलर सरकार ने इटालियन अंग्रेज के ईसारे पर इसलामिक आतंकवादियों को छुड़बाने के लिए लों में डाला है तो फिर इन निर्दोषों को जेलों से छुड़वाने के लिए मोदी जी को हस्तक्षेप करने की क्या जरूरत है क्योंकि जब न इन्होंने कोई अपराध किया है न कोई इनके बिरूद्ध कोई प्रमाण है तो इनका छूटना तो निस्चित ही है जिस तरह स्वामी असीमानन्द जी के निर्दोश होने की बजह से उन्हें जमानत मिली इसी तरह बाकी लोगों को भी मिलेगी और बहुत से निर्दोष हिन्दूओं को जमानत मिल भी चुकी है।

हाँ मोदी जी को ये जरूर आदेश देना चाहिए कि इनके मामलों की सुनबाई यथाशीध्र पूरी की जाए और बो होगी भी....

अगर फिर भी सेकुलर अदालतें इन निर्दोष हिन्दूओं को जेलों से छोड़ने से मना करती हैं जो कि नहीं करेंगे तब न्यापालिका को सेकुलर गद्दारों से मुक्त करवाने के लिए प्यत्न करने चाहिए हिन्दूजागरम अभियान चलाकर....

आप लोगों को ऐसा लगेगा कि हमारी अदालतें निष्पक्ष हैं लेकिन ये बास्तबिकता से परे है बरना ये अदालतें ऐसे फैसले नहीं देती जिनके अनुसार कानून सिर्फ हिन्दूओं पर लागू हो गैर हिन्दूओं पर नहीं....

सब देशभक्तों को ये खुशी होनी चाहिए कि मोदी जी भारत के ऐसे पहले प्रधानमन्त्री हैं जिन्होंने दिन में 14-15 घंटे काम करते हुए भ्रष्टाचार पर पूर्ण बिराम लगाने के लिए हर तरह के कदम ठाए हैं ।

मित्रो हम सब को ये नहीं झूलना चाहिए कि किस तरह से मोदी जी ने सेकुलर पार्टियों से बदला चुकाया है सेकुलर राज्यपालों को हटाकर क्योंकि इन सेकुलर पार्टियों ने राज्यपालों को सिर्फ इसलिए हटाया था कि बो हिन्दुत्वनिष्ठ हैं।

हमें पूरा भरोसा है कि निर्दोष हिन्दूओं पर रामलीला मैदान में 4 जून को हमला करवाने बालों व निर्दोष हिन्दूओं को हिन्दू आतंकवादी कहकर जेलों में डलवाने बालों का हिसाब भी मोदी जी चुन-चुन कर पूरा करेंगे...

रही बात कशमीरघाटी में पानी में डूबे आतंकवादियों को मरने से बचाने की और आतंकवादियों और उनके समर्थकों को राहत देने की तो हम सबको ये द्यान रखना चाहिए कि इन तंकवादियों ने जितना खून हिन्दूओं का बहाया है उससे कहीं ज्यादा इन आतंकवादियों ने मुसलमानं का भी खून बहाया है इन तंकवादियों बहुत जल्द बहां की जनता ही दौड़ा-दौड़ा कर मारेगी ये आप लोग बहुत जल्द देंखेंगे कशमीर घाटी व देश क अन्य हिस्सों में होता हुआ बैसे भी शेर अपने शिकार को दौड़ा दौड़ा कर मारता है।

मित्रो एक बात याद रखना आज हमें पूरा भरोसा है कि मोदी जी दुनियाभर में हिन्दूओं के रक्षक के रूप में अपनी झूमिका अदा करेंगे लेकिन इसका मतलब कदापि ये नहीं कि हम ये चाहते हैं कि मी जी वाकी लोगों के साथ भेदभाव करें हम तो सिर्फ इतना चाहते हैं कि मोदी जी देसभर में एकसमान नागरिक संहिता लागू कर सब भारतीयों के लिए एक जैसे अबसर उपलब्ध करवायें….

कुल मिलाकर हमारा मानना है कि न मोदी जी बदले हैं न बदलगें ....मोदी जी देशभक्त थे हैं और रहेंगे

अगर आप भी ऐसा ही महसूस करते हैं तो याद करो सेकुलर गद्दारों द्वारा 50 वर्ष तक हिन्दूओं पर किए गए अत्याचारों और हिन्दूओं के साथ किए गए भेदभाव को और डट जाओ राज्यों के चुनाबों में मोदी जी को जितवाने के लिए ....दिलवाओ मोदी जी को राज्यसभा में बहुमत फिर देखो मोदी जी क्या कमाल करते हैं

 

  

मंगलवार, 2 सितंबर 2014

जानो , समझो और सांझा करो अपने प्रिय बाबा भीमराब अम्मबेडकर जी को

समरसता के प्रेरणास्त्रोत हमारे डा. भीमराव अम्बेडकर जी---1




19वीं शताब्दी में अनेक अवतारी महापुरूषों ने भारत की धरती पर जन्म लिया। 14 अप्रैल 1881 का दिन ऐतिहासिक दिन था। इस दिन डा. भीमराव अम्बेडकर जी का जन्म हुआ। वर्षप्रतिपदा 1889 को डा. हैडगेवार जी का जन्म हुआ । 1983 में डा. हेडगेवार जी के जन्मदिन वर्षप्रतिपदा पर समरसता शब्द डा. अम्बेडकर जी की ही देन है। परमपूजनीय गुरूगोविन्द सिंह ने क्रांति का सूत्रपात किया। “सिंह” शब्द नाम ने न्यूनता ग्रंथि से ग्रसित करोंड़ों के समाज को आन्दोलित , प्रेरित करने का यशस्वी प्रयत्न किया।


अवतारीमहापुरूषों का जीवन वाल्यकाल से ही संकटों में गुजरता है जिस प्रकार भगवान राम ,भगवान कृष्ण , स्वामी विवेकानन्द व गुरूगोविन्द सिंह जी का बाल्यकाल संकटों व संघर्षों में गुजरा---डा हेडगेवार जी का वाल्यकाल भी संकटों के दौर से ही गुजरा----डा. हेडगवार जी ने 13 वर्ष की आयु में ही अपने माता-पिता को एक ही चिता में मुखाग्नि देने के बाद सारा जीवन कष्टों व संघर्षों में बिताया।घर में चाय तक पीने के लिए पैसे उपलब्ध नहीं रहते थे।


उसी प्रकार डा. भीमराव अम्बेडकर जी का जीवन भी कष्टों व संघर्षों के लिए ही जाना जाता है। डा भीमराव अम्बेडकर जी ने भी न्यूनता ग्रंथि से ग्रसित करोंड़ों हिन्दूओं को एक नई राह दिखाई वो राह जो उनके अन्दर आत्मविश्वास व आशा का संचार करती थी।


डा. भीम राव जी के एक प्रिय गुरू जी का अन्तिम नाम अम्बेडकर था उन्हीं के नाम पर डा. भीमराव जी का नाम भीम राव अम्बेडकर हुआ। डा. भीमराव अम्बेडकर जी की माता जी का देहांत तो 5वर्ष की आयु में ही हो गया । फिर भी उन्हें अपने पिता जी से घर में ही अच्छे संस्कार मिले। मुम्बई में एक ही कमरे में दोनों रहते थे ।एक सोता था तो एक पढ़ता था इतना छोटा कमरा था वो। आगे चलकर इन्हें केअसकर नाम के व्यक्ति( सज्जन) मिले जिन्होंने इनका परिचय बड़ौदा के महाराजा सहजराव गायकवाड़ जी से करवाया ।गायकवाड़ जी ने इन्हें छात्रवृति लगा दी । गायकवाड़ जी ने अम्बेडकर जी को विदेश भेजा बाद में लन्दन गए। लन्दन में खरीदी पुस्तकें मालबाहक जहाज में भेजने के कारण डूब गईं जिनका मुआवजा 2000 रूपए मिला फिर बड़ौदा गए। Ph. D करने पर बड़ौदा आने के बाद अम्बेडकर जी को तरह तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। जिससे उनके मन में पीड़ा तो हुई पर कभी उनके मन में कटुता पैदा नहीं हुई।


फिर उनके मन में LAW की पढ़ाई करने का विचार आया। कोहलापुर के महाराजा ने उन्हें लंदन भेजा। डा. अम्बेडकर जी ने संस्कृत सीखी ।स्पृश्य-अस्पृश्य क्या है जानने का प्रयत्न किया।वेद, उपनिषद् , भगवद गीता सबका डटकर अध्ययन किया --साहित्य लिखा। डा.अम्बेडकर जी अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि छुआ-छूत मुगलकाल की देन है । हिन्दू धर्म में इसका कोई स्थान नहीं। आर्य-द्रविड़ भेद पैदा करना अंग्रेजों की हिन्दूओं को आपस में लड़वाने की चाल है ऐसा उन्होंने खुद महसूस किया व ये सब उन्होंने लोगों को समझाने का भी प्रयत्न किया। आर्य बाहर से नहीं आए ये डा. अम्बेडकर जी ने कहा।


WHO ARE SHUDRAS में अम्बेडकर जी ने कहा जिस हिन्दू धर्म का ज्ञान इतना श्रेष्ठ है कि उस ज्ञान के प्रभाव से चींटी, सांप, तुलसी मतलब छोटे से चोटे जीव से लेकर पेड़-पौधों तक की पूजा करने वाला हिन्दू, हिन्दू को न छुए ऐसा कैसे हो सकता है ?


उन्होंने सपष्ट कहा कि समस्या धर्म की नहीं समस्या मानसिकता की है खासकर स्वर्ण मानसिकता की जो गुलामी के प्रभाव के कारण विकृत हो चुकी है जिसे बदलने की जरूरत है । यदि स्वर्ण मानसिकता बदलेगी तो हिन्दू समाज बदलेगा ।



समरसता के प्रेरणास्त्रोत हमारे डा. भीमराव अम्बेडकर जी----2



WHO ARE SHUDRAS में अम्बेडकर जी ने कहा जिस हिन्दू धर्म का ज्ञान इतना श्रेष्ठ है कि उस ज्ञान के प्रभाव से चींटी, सांप, तुलसी मतलब छोटे से चोटे जीव से लेकर पेड़-पौधों तक की पूजा करने वाला हिन्दू, हिन्दू को न छुए ऐसा कैसे हो सकता है ?



उन्होंने सपष्ट कहा कि समस्या धर्म की नहीं समस्या मानसिकता की है खासकर स्वर्ण मानसिकता जो गुलामी के प्रभाव के कारण विकृत हो चुकी है जिसे बदलने की जरूरत है । यदि स्वर्ण मानसिकता बदलेगी तो हिन्दू समाज बदलेगा ।


उन्होंने सत्याग्रह का शस्त्र उठाया। भगवद गीता को हथियार बनाया।तालाब के पानी हेतु---महाड़ सत्यग्रह ।नासिक के कालराम मन्दिर में प्रवेश हेतु सत्याग्रह किया लाठियां खाईं।


1935 में रूढ़ीबादिता व भ्रम के शिकार लोगों को Shock TREATMENT देते हुए कहा सुधरना है तो सुधर जाओ वरना मैं धर्मांतरण कर लूंगा। जबकि वासत्विकता यह है कि उन्होंने कभी धर्मांतरण किया ही नहीं। उनके सारे सहित्य में हिन्दू राष्ट्र शब्द का प्रयोग बार-बार हुआ है उन्होंने जातिविहीन समाज रचना, राष्ट्र संगठन सब पर लिखा है।


1947 में मुसलिम अलगावबाद के परिणास्वारूप देश का विभाजन हो गया । जिस पर अम्बेडकर जी ने सपष्ट कहा कि अब जबकि मुसलमानों को अलग देश दे दिया गया है तो हमें पाकिस्तान से सब हिन्दूओं को भारत ले आना चाहिए व भारत से सब मुसलमानों को पाकिस्तान भेज देना चाहिए ताकि मुसलमान अपने घर पाकिस्तान में सुख से रहें और हिन्दू अपने घर भारत में सुख से रहें। आज चारों ओर फैले मुसलिम आतंकवाद को देखकर आप खुद समझ सकते हैं कि डा. अम्मवेडकर जी कितने दूरदर्शी थे।


विभाजन के बाद Hindu Code Bill अम्बेडकर जी की हिन्दू समाज को सबसे बढ़ी देन है । इसी में अम्बेडकर जी ने ‘हिन्दू किसे कहते हैं, इसकी व्याख्या की जिसमें सपष्ट कहा गया कि विदेशी धारणाओं इस्लाम और इसाईयत को छोड़कर भारत में रहने वाले (हिन्दू-सिख-बौद्ध-जैन----इत्यादि) सब लोग हिन्दू हैं।

समरसता के प्रेरणास्त्रोत हमारे डा. भीमराव अम्बेडकर जी--3
विभाजन के बाद Hindu Code Bill अम्बेडकर जी की हिन्दू समाज को सबसे बढ़ी देन है । इसी में अम्बेडकर जी ने ‘हिन्दू किसे कहते हैं, इसकी व्याख्या की जिसमें सपष्ट कहा गया कि विदेशी धारणाओं इस्लाम और इसाईयत को छोड़कर भारत में रहने वाले (हिन्दू-सिख-बौद्ध-जैन----इत्यादि) सब लोग हिन्दू हैं।



ये उन्हीं की दूरदर्शिता थी कि उन्होंने SC/St के नाम से वंचित हिन्दूओं के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था बनाकर अंग्रेजों के बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करने के षडयन्त्र को असफल किया।


अम्बेडकर जी ने सबको राजकीय समानता दिलवाते हुए सबके लिए एक ही वोट का प्रावधान किया। डा. भीमराव अम्बेडकर जी ने 1965 में कहा कि वेशक मेरा जन्म हिन्दू धर्म में हुआ है पर हिन्दू के रूप में मैं मरूंगा नहीं ।


अपनी जिन्दगी में जाति के कारण भी कई तरह के असहनीय कष्ट सहने के बाद भी उन्होंने हिन्दू हित के लिए काम करते हुए अन्त में बौद्ध मत अपनाया जो कि हिन्दू समाज का अपना ही मत है इसलिए उसे धर्मांतरण नहीं कहा जा सकता। उन्होंने किसी विदेशी अबधारणा को नहीं अपनाया। ये भी उनके मन में अपने देश-संस्कृति के प्रति अटूट प्रेम को दर्शाता है।


हैदराबाद के निजाम द्वारा 40 करोड़ ( आज आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितना अधिक धन बनता है ये) व औरंगावाद में बंगला,जमीन का प्रलोभन देने के बाबजूद डा. भीम राव अम्बेडकर जी ने अत्याचारी इस्लाम स्वीकार नहीं किया ।


इसी तरह उन्हें ईसाईयों द्वारा ईसाईयत अपनाने के लिए भी कई तरह के प्रलोभन दिए गए लेकिन उन्होंने ईसाई बनना भी सवीकार नहीं किया।


वो अच्छी तरह जानते थे कि ये दोनों विदेशी अवधारणायें देशहित-हिन्दू हित में नहीं हैं ।


उन्होंने अपने वंचित हिन्दू भाईयों को सपष्ट आदेश दिया कि बेशक अपने हिन्दू भाईयों में कमियां हैं वो गुलामी के प्रभाव के कारण स्वर्ण मानसिकता के शिकार हैं पर अत्याचारी मुसलमान व लुटेरे ईसाई किसी भी हालात में हमारे हित में नही हो सकते ।


आज जिस तरह धरमांतरित हिन्दूओं को दलित व काले ईसाई कहकर पुकारा जा रहा है व धर्मांतरित हिन्दूओं को जिस तरह पाकिस्तान व बंगलादेश में मस्जिदों में बमविस्फोट कर मारा जा रहा है ,मुहाजिर कहा जा रहा है भारत में भी मुसलिम बहुल क्षेत्रों में निशाना बनाया जा रहा है उसे देख कर आप समझ सकते हैं कि डा. भीमराव अम्वेडकर जी कितने दूरदर्शी व देशहित-हिन्दूहित में कितने विस्तार से सोचने व निर्णय लेने में समर्थ थे।


दुनिया को धर्म सिखाना ही भारत की विभूतियों का काम है Deep Cultural Unity in our Society(India) में लिखते हैं कि आपस में झगड़ों के बाबजूद हिन्दू समाज एक है और एक रहेगा । मानसिकता में परिवर्तन के साथ ही ये झगड़े भी समाप्त हो जायेंगे।


1916 में लखनऊ पैक्ट में 13% मुसलमानों को 30% सीटें देने का उन्होंने कांग्रेस के हिन्दूविरोधी रूख के बाबजूद डटकर विरोध किया। उन्होंने कहा कि जो बात हिन्दू हित की नहीं वो देशहित की कैसे हो सकती है।आज हर देशभक्त को अपने घर में डा. भीमराव अम्बेडकर जी का चित्र लगाना चाहिए व उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रयत्न करना चाहिए।