जब भगत सिंह जी पाँच वर्ष के हुए, तो पढ़ने के लिए गाँव की प्राईमरी पाठशाला में विठाये गये। वे पढ़ने लिखने में बढ़े तेज थे। खेलों में भी उनकी बड़ी रूची थी। प्राईमरी की शिक्षा के बाद उनके पिता जी ने उनका नाम लाहौर के खालसा स्कूल में लिखवा दिया।फलत: वे पढ़ने के लिए लाहौर चले गये।
भगत सिंह अधिक दिनों तक खालसा स्कूल में नहीं पढ़ सके। इसका कारण यह था कि स्कूल का बाताबरण विलकुल विदेशी था। लड़के अंग्रेजी बोलते थे और विदेशी ही पोशाक पहनते थे। खान-पान, रहन-सहन---सबकुछ अंग्रेजी ढ़ंग का था।
किशन सिंह जी को ये सब अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वे देशभक्त थे, भारतीयता उनकी रग-रग में समाई हुई थी। वे नहीं चाहते कि विदेशी बाताबरण में उनका बच्चा भारतीय संस्कृति से दूर चला जाए।
अत: किशन जी ने भगत सिंह का नाम खालसा स्कूल से कटवाकर डी.ए.वी. स्कूल में लिखवा दिया। भगत सिंह ने डी. ए. वी. से ही दशवीं की कक्षा पास की। 1920ई. में गाँधी जी का असहयोग अन्दोलन चला। अहसहयोग अन्दोलन में अंग्रेजों के नियन्त्रण वाली सरकारी संसथाओं का वहिष्कार किया गया और जगह-जगह राष्ट्रीय स्कूल व कालेज खोले गए।
लाहौर में भी भाई परमानन्द जी के प्रयत्नों से नेशनल कालेज की स्थापना की गई। भाई जी ही उस कालेज की देखरेख करते थे।
नेसनल काले की स्थापना होने पर भगत सिंह ने डी.ए.वी. कालेज छोड़ दिया व नेशनल कालेज में एफ.ए. में नाम लिखवाकर पढ़ने लगे।
नेशनल कालेज में ही भगत सिंह जी का शुखदेव जी
और
भगवती चरण जी से परिचय हुआ। यह परिचय धीरे-धीरे घनिष्ठ मित्रता में बदल गया।वह मित्रता जीवनभर वनी रही।
एकवार कालेज में चन्द्रगुप्त नाटक खेला गया।उस नाटक में भगत सिंह ने शशिगुप्त अर्थात चन्द्रगुप्त का अभिनय किया था। उन्होंने उनके सैनिक जीवन से लेकर सम्राट होने तक का अभिनय इतनी खूबी के साथ किया कि दर्शक मुग्ध होकर रह गये। स्वयं भाई परमानन्द जी ने उनके अभिनय की प्रशंसा करते हुए कहा था “तुम एक दिन अवश्य अपना नाम ज्जवल करोगे।”
कालेज की पढ़ाई के दिनों में ही भगत सिंह के जीवन में एक ऐसी घटना घटी, जिसके कारण उनके जीवन के रंगमंच का पर्दा बदल गया।
भगत सिंह तो भाई थे । उनके दूसरे भाई का नाम जगत सिंह था। अल्पावस्था में ही जगत सिंह की मृत्यु हो गई। कुछ दिनों में घर के लोगमृत्यु के शोक को भूल गए और घर में नई बहार लाने के लिए भगत सिंह का विवाह करने की बात सोचने लगे।
किशन सिंह जी ने भगत सिंह का विवाह करने का निश्चय कर लिया।उन्होंने विवाह के लिए एक लड़की को भी देख लिया।
भगत सिंह उन दिनों बी. ए. पास कर चुके थे। उन्होंने बी. ए. पास करने से पहले ही देश की सेवा करने का ब्रत ले लिया था। उन्होंने निश्चय किया था कि वे अपने चाचा अजित सिंह की तरह आजीबन देश की सेवा करेंगे, भारत की स्वातन्त्रता के लिए संघर्ष करेंगे।
भगत सिंह को जब अपने विबाह की बात मालूम हुई तो उन्होंने अपने पिता जी को पत्र लिखा, “पिता जी, मैंनें चाचा अजित सिंह जी की तरह देश सेवा का ब्रत लिया है। यह प्रेरणा मुझे आप से ही मिली है। अत: कृपा करके आप मुझे विवाह के बन्धन में न बाँधें । मैं विबाह नहीं करना चाहता।”
भगत सिंह के पत्र ने उनके घर में खलबली पैदा कर दी। उनकी माँ और उनकी दादी बहुत दुखी हुईं। वे किसी तरह भगत सिंह को विबाह करने के लिए राजी करना चाहतीं थीं। क्योंकि भगत सिंह ही अब उस घर के जीवनावलम्ब थे। अत: वे उन्हें छोड़ना नहीं चाहती थीं, उन्हें शीघ्र से शीघ्र गृहस्थ जीवन में लाना चाहती थीं।
फलत: किशन जी ने भगत सिंह को पत्र लिखा ,“मैंनें तुम्हारा विवाह करने का निश्चय कर लिया है। विवाह के लिए लड़की भी पसन्द कर ली है। तुम्हें अपना निश्चय बदलकर मेरी बात माननी चाहिए। तुम्हारी माँ और तुम्हारी दादी की भी यही इच्छा है कि तुम विबाह करके गृहस्थ जीवन व्यतीत करो ।”
पिता का पत्र पाकर भगत सिंह संकट में पड़ गये-वे सोचने लगे, अब करें तो क्या करें? पिता जी की बात मानकर विबाह करें या भारत माँ की सेवा करने के अपने व्रत को पूरा करने के लिए मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करें?
कई दिनों तक सोचने और विचार करने के बाद भगत सिंह जी ने निश्चय किया कि वे विबाह नहीं करेंगे, भारतमाता की सेवा में ही अपना जीवन व्यतीत करेंगे।
भगत सिंह जी ने पिता जी को उतर दिया , “पिता जी मातामही मुझे पुकार रही है। मैंनें उसकी पुकार पर अपने जीवन की डोर उसके हाथ दे दी है। अत: मैं आपकी बात न मानने पर विवश हूँ। वाद-विवाद अधिक न बढ़े और मैं कठिनाई में न पड़ूं, इसलिए अब मैं लाहौर छोड़ रहा हूँ। कहाँ जाऊँगा-कुछ कह नहीं सकता।”
भगत सिंह अधिक दिनों तक खालसा स्कूल में नहीं पढ़ सके। इसका कारण यह था कि स्कूल का बाताबरण विलकुल विदेशी था। लड़के अंग्रेजी बोलते थे और विदेशी ही पोशाक पहनते थे। खान-पान, रहन-सहन---सबकुछ अंग्रेजी ढ़ंग का था।
किशन सिंह जी को ये सब अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वे देशभक्त थे, भारतीयता उनकी रग-रग में समाई हुई थी। वे नहीं चाहते कि विदेशी बाताबरण में उनका बच्चा भारतीय संस्कृति से दूर चला जाए।
अत: किशन जी ने भगत सिंह का नाम खालसा स्कूल से कटवाकर डी.ए.वी. स्कूल में लिखवा दिया। भगत सिंह ने डी. ए. वी. से ही दशवीं की कक्षा पास की। 1920ई. में गाँधी जी का असहयोग अन्दोलन चला। अहसहयोग अन्दोलन में अंग्रेजों के नियन्त्रण वाली सरकारी संसथाओं का वहिष्कार किया गया और जगह-जगह राष्ट्रीय स्कूल व कालेज खोले गए।
लाहौर में भी भाई परमानन्द जी के प्रयत्नों से नेशनल कालेज की स्थापना की गई। भाई जी ही उस कालेज की देखरेख करते थे।
नेसनल काले की स्थापना होने पर भगत सिंह ने डी.ए.वी. कालेज छोड़ दिया व नेशनल कालेज में एफ.ए. में नाम लिखवाकर पढ़ने लगे।
नेशनल कालेज में ही भगत सिंह जी का शुखदेव जी
और
भगवती चरण जी से परिचय हुआ। यह परिचय धीरे-धीरे घनिष्ठ मित्रता में बदल गया।वह मित्रता जीवनभर वनी रही।
एकवार कालेज में चन्द्रगुप्त नाटक खेला गया।उस नाटक में भगत सिंह ने शशिगुप्त अर्थात चन्द्रगुप्त का अभिनय किया था। उन्होंने उनके सैनिक जीवन से लेकर सम्राट होने तक का अभिनय इतनी खूबी के साथ किया कि दर्शक मुग्ध होकर रह गये। स्वयं भाई परमानन्द जी ने उनके अभिनय की प्रशंसा करते हुए कहा था “तुम एक दिन अवश्य अपना नाम ज्जवल करोगे।”
कालेज की पढ़ाई के दिनों में ही भगत सिंह के जीवन में एक ऐसी घटना घटी, जिसके कारण उनके जीवन के रंगमंच का पर्दा बदल गया।
भगत सिंह तो भाई थे । उनके दूसरे भाई का नाम जगत सिंह था। अल्पावस्था में ही जगत सिंह की मृत्यु हो गई। कुछ दिनों में घर के लोगमृत्यु के शोक को भूल गए और घर में नई बहार लाने के लिए भगत सिंह का विवाह करने की बात सोचने लगे।
किशन सिंह जी ने भगत सिंह का विवाह करने का निश्चय कर लिया।उन्होंने विवाह के लिए एक लड़की को भी देख लिया।
भगत सिंह उन दिनों बी. ए. पास कर चुके थे। उन्होंने बी. ए. पास करने से पहले ही देश की सेवा करने का ब्रत ले लिया था। उन्होंने निश्चय किया था कि वे अपने चाचा अजित सिंह की तरह आजीबन देश की सेवा करेंगे, भारत की स्वातन्त्रता के लिए संघर्ष करेंगे।
भगत सिंह को जब अपने विबाह की बात मालूम हुई तो उन्होंने अपने पिता जी को पत्र लिखा, “पिता जी, मैंनें चाचा अजित सिंह जी की तरह देश सेवा का ब्रत लिया है। यह प्रेरणा मुझे आप से ही मिली है। अत: कृपा करके आप मुझे विवाह के बन्धन में न बाँधें । मैं विबाह नहीं करना चाहता।”
भगत सिंह के पत्र ने उनके घर में खलबली पैदा कर दी। उनकी माँ और उनकी दादी बहुत दुखी हुईं। वे किसी तरह भगत सिंह को विबाह करने के लिए राजी करना चाहतीं थीं। क्योंकि भगत सिंह ही अब उस घर के जीवनावलम्ब थे। अत: वे उन्हें छोड़ना नहीं चाहती थीं, उन्हें शीघ्र से शीघ्र गृहस्थ जीवन में लाना चाहती थीं।
फलत: किशन जी ने भगत सिंह को पत्र लिखा ,“मैंनें तुम्हारा विवाह करने का निश्चय कर लिया है। विवाह के लिए लड़की भी पसन्द कर ली है। तुम्हें अपना निश्चय बदलकर मेरी बात माननी चाहिए। तुम्हारी माँ और तुम्हारी दादी की भी यही इच्छा है कि तुम विबाह करके गृहस्थ जीवन व्यतीत करो ।”
पिता का पत्र पाकर भगत सिंह संकट में पड़ गये-वे सोचने लगे, अब करें तो क्या करें? पिता जी की बात मानकर विबाह करें या भारत माँ की सेवा करने के अपने व्रत को पूरा करने के लिए मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करें?
कई दिनों तक सोचने और विचार करने के बाद भगत सिंह जी ने निश्चय किया कि वे विबाह नहीं करेंगे, भारतमाता की सेवा में ही अपना जीवन व्यतीत करेंगे।
भगत सिंह जी ने पिता जी को उतर दिया , “पिता जी मातामही मुझे पुकार रही है। मैंनें उसकी पुकार पर अपने जीवन की डोर उसके हाथ दे दी है। अत: मैं आपकी बात न मानने पर विवश हूँ। वाद-विवाद अधिक न बढ़े और मैं कठिनाई में न पड़ूं, इसलिए अब मैं लाहौर छोड़ रहा हूँ। कहाँ जाऊँगा-कुछ कह नहीं सकता।”