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मोदीराज लाओ

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बुधवार, 28 सितंबर 2011

जब भगत सिंह जी ने भारत माँ की सेवा के लिए घर छोड़ दिया…

जब भगत सिंह जी पाँच वर्ष के हुए, तो पढ़ने के लिए गाँव की प्राईमरी पाठशाला में विठाये गये। वे पढ़ने लिखने में बढ़े तेज थे। खेलों में भी उनकी बड़ी रूची थी। प्राईमरी की शिक्षा के बाद उनके पिता जी ने उनका नाम लाहौर के खालसा स्कूल में लिखवा दिया।फलत: वे पढ़ने के लिए लाहौर चले गये।
भगत सिंहBhagat_Singh_1929 अधिक दिनों तक खालसा स्कूल में नहीं पढ़ सके। इसका कारण यह था कि स्कूल का बाताबरण विलकुल विदेशी था। लड़के अंग्रेजी बोलते थे और विदेशी ही पोशाक पहनते थे। खान-पान, रहन-सहन---सबकुछ अंग्रेजी ढ़ंग का था।
किशन सिंह जी को ये सब अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वे देशभक्त थे, भारतीयता उनकी रग-रग में समाई हुई थी। वे नहीं चाहते कि विदेशी बाताबरण में उनका बच्चा भारतीय संस्कृति से दूर चला जाए।
अत: किशन जी ने भगत सिंह का नाम खालसा स्कूल से कटवाकर डी.ए.वी. स्कूल में लिखवा दिया। भगत सिंह ने डी. ए. वी. से ही दशवीं की कक्षा पास की। 1920ई. में गाँधी जी का असहयोग अन्दोलन चला। अहसहयोग अन्दोलन में अंग्रेजों के नियन्त्रण वाली सरकारी संसथाओं का वहिष्कार किया गया और जगह-जगह राष्ट्रीय स्कूल व कालेज खोले गए।
लाहौर में भी भाई परमानन्द जी के प्रयत्नों से नेशनल कालेज की स्थापना की गई। भाई जी ही उस कालेज की देखरेख करते थे।
नेसनल काले की स्थापना होने पर भगत सिंह ने डी.ए.वी. कालेज छोड़ दिया व नेशनल कालेज में एफ.ए. में नाम लिखवाकर पढ़ने लगे।
नेशनल कालेज में ही भगत सिंह जी का शुखदेव जीsukhdev-colour
और
भगवती चरण जी Bhagwati_Charan_Vohra से परिचय हुआ। यह परिचय धीरे-धीरे घनिष्ठ मित्रता में बदल गया।वह मित्रता जीवनभर वनी रही।
एकवार कालेज में चन्द्रगुप्त नाटक खेला गया।उस नाटक में भगत सिंह ने शशिगुप्त अर्थात चन्द्रगुप्त का अभिनय किया था। उन्होंने उनके सैनिक जीवन से लेकर सम्राट होने तक का अभिनय इतनी खूबी के साथ किया कि दर्शक मुग्ध होकर रह गये। स्वयं भाई परमानन्द जी ने उनके अभिनय की प्रशंसा करते हुए कहा था “तुम एक दिन अवश्य अपना नाम ज्जवल करोगे।”
कालेज की पढ़ाई के दिनों में ही भगत सिंह के जीवन में एक ऐसी घटना घटी, जिसके कारण उनके जीवन के रंगमंच का पर्दा बदल गया।
भगत सिंह तो भाई थे । उनके दूसरे भाई का नाम जगत सिंह था। अल्पावस्था में ही जगत सिंह की मृत्यु हो गई। कुछ दिनों में घर के लोगमृत्यु के शोक को भूल गए और घर में नई बहार लाने के लिए भगत सिंह का विवाह करने की बात सोचने लगे।
किशन सिंह जी ने भगत सिंह का विवाह करने का निश्चय कर लिया।उन्होंने विवाह के लिए एक लड़की को भी देख लिया।
भगत सिंह उन दिनों बी. ए. पास कर चुके थे। उन्होंने बी. ए. पास करने से पहले ही देश की सेवा करने का ब्रत ले लिया था। उन्होंने निश्चय किया था कि वे अपने चाचा अजित सिंह की तरह आजीबन देश की सेवा करेंगे, भारत की स्वातन्त्रता के लिए संघर्ष करेंगे।
भगत सिंह को जब अपने विबाह की बात मालूम हुई तो उन्होंने अपने पिता जी को पत्र लिखा, “पिता जी, मैंनें चाचा अजित सिंह जी की तरह देश सेवा का ब्रत लिया है। यह प्रेरणा मुझे आप से ही मिली है। अत: कृपा करके आप मुझे विवाह के बन्धन में न बाँधें । मैं विबाह नहीं करना चाहता।”
भगत सिंह के पत्र ने उनके घर में खलबली पैदा कर दी। उनकी माँ और उनकी दादी बहुत दुखी हुईं। वे किसी तरह भगत सिंह को विबाह करने के लिए राजी करना चाहतीं थीं। क्योंकि भगत सिंह ही अब उस घर के जीवनावलम्ब थे। अत: वे उन्हें छोड़ना नहीं चाहती थीं, उन्हें शीघ्र से शीघ्र गृहस्थ जीवन में लाना चाहती थीं।
फलत: किशन जी ने भगत सिंह को पत्र लिखा ,“मैंनें तुम्हारा विवाह करने का निश्चय कर लिया है। विवाह के लिए लड़की भी पसन्द कर ली है। तुम्हें अपना निश्चय बदलकर मेरी बात माननी चाहिए। तुम्हारी माँ और तुम्हारी दादी की भी यही इच्छा है कि तुम विबाह करके गृहस्थ जीवन व्यतीत करो ।”
पिता का पत्र पाकर भगत सिंह संकट में पड़ गये-वे सोचने लगे, अब करें तो क्या करें? पिता जी की बात मानकर विबाह करें या भारत माँ की सेवा करने के अपने व्रत को पूरा करने के लिए मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करें?
कई दिनों तक सोचने और विचार करने के बाद भगत सिंह जी ने निश्चय किया कि वे विबाह नहीं करेंगे, भारतमाता Bharat manकी सेवा में ही अपना जीवन व्यतीत करेंगे।
भगत सिंह जी ने पिता जी को उतर दिया , “पिता जी मातामही मुझे पुकार रही है। मैंनें उसकी पुकार पर अपने जीवन की डोर उसके हाथ दे दी है। अत: मैं आपकी बात न मानने पर विवश हूँ। वाद-विवाद अधिक न बढ़े और मैं कठिनाई में न पड़ूं, इसलिए अब मैं लाहौर छोड़ रहा हूँ। कहाँ जाऊँगा-कुछ कह नहीं सकता।”

शनिवार, 24 सितंबर 2011

जब बालक भगत सिंह ने उतर दिया “मैं बंदूकें बनाता हूं।”

आज से लगभग सौ वर्ष पहले लायपुर जिले के गांव वंगा में एक हिन्दू-सिख कुटुम्ब रहता था।यह कुटुम्ब अपनी देशभक्ति के लिए प्रसिद्ध था। गांव के लोग इस कुटुम्ब का बड़ा आदर करते थे।
कुटुम्ब में तीन भाई थे--- सरदार किशन सिंह जी,सरदार स्वर्ण सिंह जी और सरदार अजीत सिंह जी। भारतविरोधी–हिन्दू विरोधी अंग्रेज सरकार ने तीनों भाईय़ों को देशभक्ति के अपराध में जेल भेज दिया था। इनमें से अजीत सिंह जी को काले पानी की सजा दी गई थी।
घर में किशन सिंह जी की मां जी और पत्नी को छोड़कर और कोई नहीं था।
1907 ई. के सितम्बर माह में किशन जी की पत्नी ने एक बालक को जन्म दिया । बालक देखने में शुन्दर था हष्टपुष्ट था ।
बालक के जन्म लेने से घर में हर्ष और उत्साह की लहर दौड़ पड़ी। गाना-बजाना होने लगा। गांव के लोग किशन सिंह जी की मां जी को बधाईयां देने आने लगे।
जिस समय किशन जी के घर में गाने बजाने का क्रम चल रहा था उसी समय वे जेल से छूटकर आ गये। उनके आने से हर्ष और उत्साह में पंख लग गये। किशन जी की मां की खुशी का तो कहना ही क्या था। मां तो खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी। मां जी के मुख से निकल पड़ा “ये लडका तो बड़े भागों वाला है । इसके पैदा होते ही इसके पिता जेल से छूट कर आ गये।”
किशन सिंह जी की मां ने इस बालक का नाम भगत सिंह रखा। यही बालक भगत सिंह वे अमर शहीद भगत सिंह जीshaeed ji हैं, जिन्होंने अपनी देशभक्ति से मातृभूमि का मस्तक ऊँचा करने के लिए सर्वोत्तम वलिदान दिया था।
भगत सिंह का लालन-पालन बड़े प्यार से हुआ। घर में सब लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे। ये चंचल बालक हमेशा हंसता रहता था।
भगत सिंह ज्यों-ज्यों उमर की सीढ़ियां चढ़ने लगे ,त्यों-त्यों उनकी सुन्दरता निखरने लगी, उनकी चंचलता में पंख लगने लगे। जब वे कुछ और बड़े हुए, तो संगी साथियों के साथ खेलने लगे।
बालक भगत सिंह साथियों को दो दलों में बाँट दिया करते थे और बीरता के खेल खेला करते थे।
भगत सिंह का कुटुम्ब बड़ा धार्मिक था। घर में भजन और कीर्तन प्राय प्रतिदिन हुआ करते था। बालक भगत सिंह बड़े प्रेम से भजन और कीर्तन सुना करते थे। उन्होंने सुन करके ही बहुत से गीत याद कर लिए थे। वे अपने पिता जी को बड़े प्रेम से गायत्री मन्त्र सुनाया करते थे।
एक दिन भगत सिंह के पिता जी अपने मित्र के घर गये। आनन्द किशोर जी बड़े देशभक्त थे। उन्होंने बालक भगत सिंह से पूछा “तुम कौन सा काम करते हो?”
बालक भगत सिंह ने उतर दिया “मैं बंदूकें बनाता हूं।”
आनन्द किशोर जी ने पुन: दूसरा प्रश्न किया “तुम बन्दूकें क्यों बनाते हो?”
बालक ने सहज भाव से उतर दिया “मैं बन्दूकों से भारत मांab1_thumb[2] को स्वतन्त्र करूँगा”
आनन्द किशोर बालक भगत सिंह के उतर से बड़े प्रसन्न हुए।उन्होंने उनके पिता से कहा “तुम बड़े भाग्यशाली हो। तुम्हारा यह पुत्र अपने साहस और अपनी बीरता से तुम्हारे पूर्बजों का नाम उज्जल करेगा।”
आनन्द किशोर जी की कही हुई बात सत्य सिद्ध हुई। भगत सिंह ने बड़े होकर अपने साहस और वीरता से सिर्फ अपने पूर्बजों का ही नहीं वल्कि सारे देश का मुख उज्जवल किया।
दूसरी वार बालक भगत सिंह अपने पिता के साथ खेत पर गये। खेत में हल चल रहा था।
बालक भगत सिंह ने अपने पिता से पूछा, “पिता जी ,यह क्या हो रहा है?”
पिता ने उतर दिया,“खेत में हल चला रहा है। खेत की जुताई हो रही है। जुताई के बाद खेत में गेहूं के बीज बोये जायेंगे।”
बालक भगत सिंह ने सहज भाव से कहा, “पिता जी आप पिस्तौलों और बन्दूकों की खेती क्यों नहीं करते, guns_thumb[1]आप गेहूं के बीज न वोकर, बन्दूकों के बीज क्यों नहीं बोते?”
पिता जी आश्चर्यचकित होकर बालक भगत सिंह के मुख की ओर देखने लगे। उन्हें क्या मालूम था कि उनका यह बालक बड़ा होने पर सचमुच बन्दूंकों की खेती करेगा। सचमुच बन्दूकों और पिस्तौलों pistols_thumb[2]के बल पर आक्रमणकारी अंग्रेज लुटेरों के अन्दर दहशत पैदा कर भारत माता की आजादी का नायक बनेगा।