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मोदीराज लाओ

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गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

हिन्दूओं के खून से लथपक्ष अरबी टोपी और अरबी रूमाल (काफा) पहनने से बड़ी दुर्भावना और क्या हो सकती है?


आजकल भारत में ऐसे परजीवियों की भरमार सी आ गई है जो खुद को कहते तो बुद्धिजीवि हैं पर काम करते हैं परजीवियों(parasites) जैसे। मोदी जी, पिछले 10 वर्षों से हिन्दूविरोधी-देशविरोधी ISI ऐजेंटों द्वारा चलाए जा रहे, दुष्प्रचार से भारत खासकर गुजरात के देशभक्त लोगों को छुटकारा दिलवाने के लिए सदभावना व्रत के माध्यम से गुजरात में हुए अप्रतयासित परन्तु योजनावद्ध विकाश का प्रचार प्रसार कर देश को विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा फूट डालो और राज करो के माध्यम से पहुंचाए जा रहे नुकशान से मुक्त करना चाहते हैं। लेकिन ये परजीवि देशहित से जुड़े विकाश के मुद्दे की चर्चा करने के बजाए ये चर्चा कर रहे हैं कि मोदी जी ने पहले अरवी टोपी और अब अरबी रूमाल लेने से क्यों मना कर दिया।
इन चर्चा करने वालों को क्या ये समझाने की जरूरत है कि ये अरवी टोपी (टोपी पर कलिक करें)Arbi Topiऔर काफा दुनियाभर में कत्लोगरद और हिंसा का प्रतीक बन गए हैं। दुनिया में ऐसा कौन सा सांप्रदाय ऐसा है जो इस्लामिक हिंसा और अत्याचार का सिकार नहीं हुआ है।
केवल ईसाईयों ने ही योजनावद्ध तरीके से इस्लामिक हिंसा का मुकाबला करने व हिंसा फैलाने वाले मुसलमानों को उनके किए से हजारों गुणा ज्यादा सजा देकर इस्लाम के मानवताविरोधी कुकृत्यों को राजनीतिक व सामाजिक भेदों को भुलाकर एकजुट होकर हिंसक इस्लाम को समाप्त करने की रणनीति बनाने और उसको लागू करने में सफलता हासिल की है ।इसी का परिणाम है कि आज अमेरिका जैसे बड़े ईसाई देशों से लेकर रोम जैसे छोटे ईसाई देश भी अपने आप को न केवल सुरक्षित रखने में सफल हैं बल्कि इस्लामिक आतंकवादियों को उनके घर में घुसकर मारने में भी अग्रणी हैं। ये देशभक्ति और जागरूकता का ही परिणाम है कि फ्रांस जैसे ईसाई देश ने अरबी पहनावे पर न केवल रोक लगाई बल्कि उसे सख्ती से लागू भी किया। ईसाईयों द्वारा इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने में सफलता हासिल करने का सबसे बड़ा कारण है सबकेसब ईसाईयों द्वारा मुसलमानों के विरूद्ध लड़ रहे ईसाई क्रांतिकारियों व सरकारों का एक जुट होकर साथ देना।
ऐसा नहीं कि भारत ने इस्लामिक आतंकवाद का मुकावला नहीं किया। ये इस्लामिक आतंकवाद से मुकावले का ही परिणाम है कि हम आज तक भारतीय सभ्यता के अवशेषों को बचाकर रखने में कुछ हद तक सफल हुए हैं।अगर अब भी हमने एकजुट होकर इस हिंसक इस्लाम का खात्मा नही किया तो वो दिन दूर नहीं जब हम इन अवशेषों से भी हाथ धो बैठेंगे।
अब प्रश्न ये पैदा होता है कि जब हमने इस्लामिक आतंकवाद का मुकाबला किया तो फिर ये इस्लामिक आतंकवादी क्यों भारतीय सभ्यता और संस्कृति को नुकसान पहुंचाकर करोड़ों हिन्दूओं का कत्ल करने में सफल हुए।
बेशक ये सच है कि छत्रपति शिवाजी जी से लेकर परमपूजनीय गुरूगोविन्द सिंह जी , साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर जी व लैफ्टिनैंट कर्नल पुरोहित जी तक सबके सब देशभक्त हिन्दू क्रांतिकारियों ने इस्लामिक आतंकवाद से डटकर मुकावला किया लेकिन ये भी उतना ही सत्य है कि जब-जब भी देशभक्त क्रांतिकारियों ने इस्लामिक आतंकवाद को कुचलने की कोशिश की तब-तब नेहरू, अर्जुन सिंह, दिगविजय सिंह, कुलदीप नैयर, राजेन्दर सच्चर, अग्निवेश, अरूंधति राय, प्रशांत भूषण व गौतम नवलखा जैसे जयचन्दों ने देशभक्तों का साथ देने के बजाए इन आतंकवादियों का साथ देकर ,हिन्दूओं का लहू बहाने में इनकी मदद की व कर रहे हैं।
आज जो खुद को बुद्धिजीवि, उदारवादी ,धर्मनिर्पेक्षतावादी, या फिर मानवाधिकारवादी कह रहे हैं वो बास्तव में गद्दार जयचन्द का ही वर्तमान स्वारूप हैं। जयचन्द ने भी मुसलमानों से मिलने वाले राज्य व शिवाजी से चोटी-मोटी इर्ष्या के बदले इस्लामिक आतंकवादियों का साथ दिया व ये बर्तमान गद्दार भी ISI से मिलने वाले माल के बदले इस्लामिक आतंकवादियों का साथ देकर हिन्दूओं को मरवा रहे हैं।
ये इन ISI ऐजेंटों के दुष्प्रचार का ही कमाल है कि आज बेसमझ परजीवि सदभावना का अर्थ कतलोगारद और बरबर अत्याचार की पहचान अरवी टोपी को ही सदभावना का प्रतीक मानने की मूर्खता कर रहे हैं।
बैसे भी इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब भी किसी समाज ने इन इस्लामिक आतंकवादियों के प्रति दयाभवना या सदभावना दिखाई है तो इस्लाम ने उस समाज का नामोनिशान मिटाकर अपनी दुष्टता व नीचता का परिचय दिया है।
हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि दुनिया के वाकी सभी वो देश, जिन पर इस्लाम ने विजय प्राप्त की , इस्लामी आक्रमण के दो दशकों के भीतर 100% इस्लाम में परिवर्तित हो गए। भारत एक अपबाद है । 800 वर्षों के अत्याचारी मुसलिम शासन के बाद भी अविभाजित भारत में 75% हिन्दू अबादी थी। मुसलमानों को यही बात आज तक सता रही है कि मुसलमानों द्वारा किए गए वेहिसाब जुल्मों के बाबजूद वो मुसलिम आतंकवादी हिन्दूओं का मनोबल तोड़ने में क्यों सफल न हो पाए।
इसीलिए ये मुसलमान, मोदी जैसे व्यक्ति को जो हिन्दूह्रदय सम्राट के रूप में जाना जाता है, को पाकिस्तान, बंगलादेश, कशमीरघाटी ,मऊ, असाम, केरल व अन्य मुसलिम बहुल क्षेत्रों में मारे गए करोड़ों हिन्दूओं के खून से लथपथ ये अरबी टोपी पहनाकर देशभक्त हिन्दूओं का मनोबल तोड़ना चाहते हैं।
हमारे विचार में ये खूनी टोपी पहनना या पहनाना सदभावना नहीं बल्कि जालिम इस्लामिक आतंकवादियों का समर्थन कर, भूतकाल में कत्ल हुए व भविष्य में कत्ल होने वाले हिन्दूओं ही नहीं बल्कि मानबता के प्रति दुर्भावना है।
जरा सोचो कहीं आप जाने-अनजाने इस हिन्दूविरोधी दुर्भावना का समर्थन तो नहीं कर रहे हैं?