शायद दिगविजय सिंह भारत के ऐसे पहले राजनतिक ब्यक्ति हैं जो भारत के सत्रुओं के प्रति अपनी हमदर्दी को कभी छुपाते नहीं न ही अपने द्वारा दोवारा गद्दारों की मदद करने के लिए किसी लम्बे अन्तराल का इन्तजार करते हैं। ऐसा नहीं कि और नेता गद्दारों की मदद नहीं कर रहे हैं पर वो ये सब दबे-छुपे बचते-बचाते करते हैं। मतलब दिगविजय सिंह को इस बात से कोई पर्क नहीं पड़ता कि इनकी इस मदद से इन आतंकवादियों द्वारा मारे जा रहे भारतीयों व उनके परिवारों के मन पर क्या गुजरती है। इन्हें तो सिर्फ वो करना है जो इनकी आका एंटोनिया माइनो मारियो को पसन्द है।एंटोनियो को पसंद है देशभक्त लोगों का खून बहना क्योंकि यही वो देशभक्त है जिन्होंने इस इटालियन को भारत का प्रधानमन्त्री न वनने देने के लिए कड़ा विरोध किया था। प्रमाण क्या है कि दिगविजय सिंह ये गद्दारी एंटोनियो के इसारे पर कर रहे हैं क्या आपको नहीं पता कि गद्दारों का विरोध करने पर सत्व्रत चतुर्वेदी जी को दो वार कांग्रेस के प्रवक्ता पद से हटाया गया तो फिर दिगविजय सिंह द्वारा वार-वार सैनिकों का अपमान कर गद्दारों का समर्थन करने पर क्यों नहीं कांग्रेस के महासचिब पद से हटाया गया? क्या अब ये भी बताने की जरूरत है कि कांग्रेस की करता-धरता कौन है? खैर इस मुद्दे पर फिर कभी बात करेंगे।
आज हम बात कर रहे हैं गद्दारों के ठेकेदार दिगविजय सिंह द्वारा गृहमन्त्री चिदमबरम पर नकसल आतंकवादियों से निपटने के तरीके को लेकर। दिगवजय सिंह जी का कहना है कि नक्सल समस्या कानून और ब्यवस्था की समस्या नहीं है व इस समस्या के लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। हम दिगविजय सिंह से जानना चाहते हैं तो कि अगर पिछले पांच वर्ष निकाल दिय जायें तो उससे पहले लगातार 10 वर्ष तक वो खुद मध्यप्रदेश के मुख्यामन्त्री थे ।अगर ये राज्यसरकारों की जिम्मेदारी है तो फिर आपने उन 10 वर्षों में ये समस्या खत्म क्यों नहीं कर दी ।कौन नहीं जानता कि आपके शासनकाल में मध्यप्रदेश पाक समर्थक आतंकवादियों व चीन समर्थक आतंकवादियों का गढ़ बन चुका था। इसे समाजिक समस्या तब कह सकते थे जब ये लोग जनसहयोग से सड़कों पर उतरते ,चुनावों में हिस्सा लेते और अन्दोलन चलाते ।लेकिन ये तो मुंह से गरीबों की बात कर गरीवों का खून चूस कर उन्हें भूखा मारने पर उतारू हैं।गरीबों के बच्चे पढ़ाई न कर सकें इसलिए ये स्कूलों को डायनामाइट से उड़ा रहे हैं विमार गरीब हसपताल न जा सकें इसलिए हस्पतालों और सड़कों ,पुलों को उड़ा रहे हैं गरीबों को रोजगार न मिल सके इसलिए उद्योंगो का विरोध कर रहे हैं ।रेलों,पटरियों को उड़ा रहे हैं ।सैनिकों व गरीबों का खून बहाकर चीन के इसारे पर भारत सरकार को ललकार रहे हैं। युद्ध की इस घड़ी में आप देश की सरकार व सुरक्षाबलों के साथ खड़े होने के बजाय चीन समर्थक माओवादी आतंकवादियों के साथ खड़े हो रहे हैं।
शर्म करो आज देश का बच्चा-बच्चा जान चुका है कि सेकुलर गिरोह गद्दारों व आतंकवादियों के सरदारों का गिरोह है इस गिरोह को अगर चितमबरम जैसे लोग देशहित का काम करके कुछ मान-सम्मान दिलवाने की कोशिस कर रहे हैं तो आपके पेट में इतना दर्द पढ़ रहा है कि आप सीधे देश के शत्रुओं के साथ खड़ें हो रहे हैं ।
आपका ये कोई पहला गुनाह नहीं है इससे पहले भी आपने शहीद मोहन चन्द शर्मा की शहीदी का अपमान करते हुए पाक समर्थक आतंकवादी शहजाद का साथ दिया था आज तक दे रहे हो आपकी ही छत्र-छाया में आपके सेकुलर गिरोह के दो विधायकों एक अबु हाजमी व दूसरा अपकी ही पार्टी का था ने उस गद्दार को नेपाल भागने के लिए न केवल सलाह दी थी वल्कि पैसे भी दिए थे। क्योंकि आपके इस गद्दारों के गिरोह की सरदार एंटोनिया की सरकार गुलाम है इसलिए आपलोग आज खुले घूम-घूम कर अपने गद्दार साथियों की मदद कर रहे हैं । यह वही काम है जो जयचन्द ने किया था ।गद्दारी की इस परमपरा को खत्म कर दो नहीं तो न देश रहेगा न हम न तुम। हां एक बात ध्यान में रखना कि सरकार आपके आका की गुलाम है जनता की नहीं । जिस दिन जनता ने गद्दारों से सीधे निपटने का मन बना लिया उस दिन हमें नहीं लगता कि आप आपकी आका और आपके वाकी गद्दार साथी जनता के आक्रोस से बच पायेंगे। सबसे पहले जनता हबाई अड़डों पर दावा वोलेगी और सैनिक भी विरोद नहीं करेंगे ताकि गद्दार देश से बाहर न भाग सकें।
13 टिप्पणियां:
BAHUT KHOOB
भाई इतनी धार लाते कहाँ से हो? कमाल है!
रत्नेश
lajwaab hai
ji bahut badhiya,
aise hi nage karte raho in ...... ko.
kunwar ji,
शायद यह टिपण्णी यहाँ के लिए नहीं है, किन्तु है इस पूरी विचारधारा के परिप्रेक्ष्य में आप संस्कृति पर बेहद जोर देते हैं, कृपया स्पष्ट करें कि संस्कृति से क्या आशय है... हिन्दू संस्कृति और भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में हो हल्ला करके आप क्या कहना चाहते हैं.... आपके परिवेश, परिधान, क्षेत्र में किन संस्कृतियों का सम्मिश्रण है आप बेशक इस बात से परिचित नहीं होंगे...अतुल्य भारत में ऐसी कितनी चीज़ें हैं जो सनातन चली आ रही हैं, वह कौन सा भय है जो एक अँगरेज़ के आने से आपको सताने लगता है. ...आपके आधुनिक परिधान, आपके द्वारा प्रयोग किये जाने वाले दैनिक प्रधोयोगिक संसाधन, संस्कृति की बात करना है तो..सिगरेट जो अंग्रेजों की है उसे बंद कर दीजिये..सिगार जो कि गल्फ देशों की वास्तु है, छोड़ दीजिये तम्बाकू पुर्तगालियों की है उसे छोड़ दीजिये, हुक्का भी हमारा नहीं है..हाँ बीडी पीजिये ये हमारी है. कुतुबमीनार,विक्टोरिया मेमोरियल,लाल किला,ताज महल यह सब एतिहासिक जगहों को ख़त्म कर दीजिये ये सब मुगलों और अंग्रेजो की बनाई हुई हैं. भारतीय रेलवे की नींव भी अंग्रेजो ने रखी....उसे भी खत्म कर दीजिये.....मैक्समुलर जो वेदों का संशोधित संस्करण लेकर आया उन वेदों को प्रयोग मत करिए.....आपकी हिंदी भाषा में जितने उर्दू,अरबी,तुर्की,फ्रांसीसी, जापानी शब्द है सब निकाल फेंकिये...हाँ अबदुल कलाम को मारिये गोली, और ऐ आर रहमान को भी सूली पर चढ़ा दीजिये .और अपनी बचे खुचे समान को रखिये संभालकर...और इसी के सहारे..लड़िये जब तक लड़ना है जीना है.....और अगर संस्कृति का अर्थ नियम में बंधकर जीना है, असमानता है ... तो ऐसी संस्कृति गई भाड़ में....संस्कृति की आत्मा न आप बचाते हैं न आप बनाते हैं. बल्कि इसकी आड़ में गोरखधंधा कर रहे हैं....संस्कृति अपने अनुसार बदलती है...अपने अनुसार रूकती है...इतनी कमज़ोर नहीं की एक बटालियन खड़ी करके उसकी रक्षा की जाए....आपको शिकायत है कि सामने आकर कोई इस तरह टिपण्णी नहीं देता...मेरा नाम निशांत कौशिक है...और मेरी आई डी यही है..बेख़ौफ़ प्रतिवाद करें..मैं तैयार हूँ...लेकिन तर्क के सामान नियमों और भाषा की शालीन प्रतिबद्धता के साथ...
Nishant kaushik
यूँ तो मैं संस्कृति से कुछ और अर्थ लेता हूँ...किन्तु...आप जिस तरह संस्कृति को प्रचारित करते हैं..उसके ह्रास की बात करते हैं...तो उसके अनुसार में ने कमेन्ट दिया है.....संस्कृति से मेरा आशय ये तो बिलकुल नहीं है.ये वे बातें हैं जिनके बारे मैं अक्सर प्रचार किया जाता है.जानना चाहें आशय तो बताएं वो भी बता दूंगा...किन्तु......जो संस्कृति में प्रायोगिक और त्याज्य की बातें चल रही हैं..उसके अनुसार मैंने लिखा है...संस्कृति इन सब से बिलकुल भी सम्बद्ध नहीं है..हाँ भाषा को छोड़कर...
Nishant
kaushiknishant2@gmail.com
भाई निशांत यह भी पूछा जाना चाहिये कि आज़ादी के लड़ाई के गद्दार अचानक राष्ट्रभक्ति का सर्टिफ़िकेट कैसे बांटने लगे? इन्हें देखकर अपने साथ पढ़ा और दसवीं में तीन बार फेल हुआ वह लड़का याद आता है जिसके बाप ने पैसे के बल पर उसके लिये इन्टर कालेज़ खुलवा दिया और अब वह नक़ल का धंधा करता है और पास-फेल का सर्टिफ़िकेट…
इनसे बहस की उम्मीद बेकार है…ये बस गाली-गलौच कर सकते हैं…और करेंगे ही!
अशोक सही कहा.सांकेतिक तौर पर ही आपका उदाहरण काफी है..
दरअसल इन्हें साम्यवादी या धार्मिक या फिर वैश्विक स्तर का इतिहास भी उतना ही मालूम है जितना परोसा गया है इन्हें अपने अजीब तर्क मजबूत करने के लिए.....ये छोटे छोटे अधूरे तर्क देना बंद करिए युगोस्लाविया या नेपाल या रूस..ये सिर्फ थोथी बौद्धिक अय्याशी है...अगर इस पर बहस की सम्भावना है तो ज़रूर होनी चाहिए...और अगर इनपर होती है तो राष्ट्रवादी विचारधारा और तमाम धार्मिक वांग्मय के पन्ने भी खुलेंगे...जिसमें वेद,उपनिषद,वेदांग,दर्शन सभी पर खुलकर चर्चा हो....वेद और संस्कृति या साम्यवाद किसी की भी जागीर नहीं है...अध्ययन भी किसी की पनौती नहीं है...मगर आधी अधूरी बातों से अपने ही अधूरेपन को प्रस्तुत किया जा सकता है....कृपया आप अगर चाहते हैं...इस तरह की बातों को उठाना..तो सिर्फ उन्हें ही नहीं ये सांस्कृतिक तर्क दीजिये जो आपके समर्थक हैं, उन्हें भी जो आपके धुर विरोधी हैं....प्रतिवाद के सामानांतर चलते हुए...
Nishant
हमारे विचारमें बौद्धिक गुलाम हिन्दूओं के मार्गदर्शन के लिए गांधी जी की ये दो पंक्तियां एकदम उतम हैं
‘‘ मैं नहीं चाहता कि मेरा मकान चारो तरफ से बंद हो और खिड़कियां भी बंद होने से मेरा दम घुटे। मैं चाहता हूं कि सब जगह की संस्कृतियों की हवा मेरे मकान के अंदर स्वतंत्रतापूर्वक बहती रहे। किन्तु मैं ऐसी हवा नहीं चाहता हूं कि मेरे पैर ही उखड़ने लगे। मैं दूसरों के घर में घुसपैठिये, भिखारी या गुलाम के रुप में रहने से इंकार करता हूं।’’
अच्छी पोस्ट हेतु आपका साधुवाद.
Shukriya jawab dene hetu...
मैं दूसरों के घर में घुसपैठिये, भिखारी या गुलाम के रुप में रहने से इंकार करता हूं।’’
Aisa to kuch bhi nahi kaha hamne...na hi aap kah rahe hai....gandhi ji ki baat na hamare bas ki nikli na aapke...
बौद्धिक गुलाम हिन्दूओं....... bauddhikta ka gulam nahi hua jaata bandhu...bauddhikta ek stage hai...aur yah nirantar increase hoti hai...is ka gulam na hua ja sakta hai, na hi sambhav hai...na ye gulami se sambaddh koi vivechna hai..
दिग्गी राजा का पोलिटिकल कैरियर लगभग ख़त्म हो चुका है.
सुर्खियों में रहने के लिए वे यह सब कर रहें हैं. आपने सही लिखा १० साल जब
वे मुख्यामंत्री थे तब तो उन्होंने कुछ नहीं किया.
निशांत के रूप में कौन है?? जानते हैं इन्हीं का एक मददगार...
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