Pages

मोदीराज लाओ

मोदीराज लाओ
भारत बचाओ

शनिवार, 8 मई 2010

कहां हैं अधर्म के ठेकेदार?....... शर्मनाम की कोई चीज है तो चुलुभर पानी में डूबमरो...



सबसे पहले तो हम भगवान से प्रार्थना करेंगे कि निरूपमा की आत्मा को शांति प्रदान कर उसके परिवार वालों को निरूपमा की आसमयिक मौत के सदमे व अधर्म के ठेकेदारों के हमले को सहने की ताकत प्रदान करें। इसके साथ ही हम भगवान से ये प्रार्थना भी करेंगे कि जिन दुष्टों ने जानबूझकर बालात्कारी हत्यारे को बचाने के लिए प्रशासन को गुमराह करने की कोशिश की उन सब को सदबुद्धि दें ताकि वे अपने जैसे ब्याभिचारी जानवर के जूल्मों की शिकार किसी और निरूपमा को न्याय से महरूम रखने का ऐसा घोर षडयन्त्र दोबारा न करें।

सबसे पहले हम उन परिस्थितिजनय सबूतों की बात करते हैं जो इस बात के सपष्ट प्रमाण हैं कि प्रियभांसु ने निरूपमा को शादी का ललाच देकर उसका लम्बे समय तक शारीरिक व मानसिक शोषण किया ।इस शोषण के परिणामस्वारूप गर्भवती हुई निरूपमा से शादी तो दूर बल्कि इस शातिर अपराधी ने उसे सहारा तक देने से इनकार कर दिया। निरूपमा को अपने परिवार से प्यार का झांसा देकर दूर करने वाले इस दुष्ट से धोखा खाकर जब निरूपमा इस संसार से चली गई तो इस ब्लातकारी पत्रकार ने अपने साथी ब्याभिचारी पत्रकरों व पत्रकार अध्यापकों की सहायता से जाति को हथियार बनाकर पुलिस, प्रशासन व जनता को गुमराह करने की नौटंकी शुरू कर दी ।

ये लगभग बैसी ही नौटंकी थी जैसी किसी भी आतंकवादी हमले के बाद ये अपराधी मानसिकता से ग्रसित पत्रकार आतंकवादियों को कभी गरीब तो कभी अनपढ़ बताकर आतंकवादियों का बचाब करते हैं अगर आतंकवादी मुठभेड़ में मारे जायें तो उनके बच्चों को दिखाकर बताते नहीं थकते कि देखो अगर ये आतंकवादी नहीं मरता तो इसके बच्चे डाक्टर बनते या इंजिनियर बनते । कुलमिलाकर कोशिश जनता की सहानुभूति बटोरकर आतंकवादियो को बचाना व अपनी जान को जोखिम में डालकर जनता की रक्षा के लिए लड़ रहे सुरक्षा बलों के प्रति जनता के मन में अविस्वास पैदा करना।

लेकिन आज तो  अपराधी मानसिकता से ग्रसित इन नीच पत्रकारों ने हद ही कर दी एक बालातकारी को जनता के सामने प्रेमी के रूप में पेश कर । इस तथाकथित प्रेमी की वेशर्मी देखो कि एक विन ब्याही लड़की को गर्भवती बनाकर मरने को अकेला छोड़ देने के वाद उसकी मौत को भुनाकर खुद को हीरो बनाने के लिए खुद ही कभी एक मिडीया चैनल तो कभी दूसरे मिडीया चैनल पर जाकर निरूपमा व मां-बाप की इज्जत को तार-तार करने में जुट गया ।
हमें तो हैरानी तब हुई जब IBN7 पर देवेन्द्र और चन्दन जी के वीच जाति को लेकर हो रही बहस के दौरान ये दुष्ट दांत निकाल रहा था वो भी तब जब अभी निरूपमा के इस दुनिया से गए तीन दिन भी नहीं हुए हैं। कैसा प्यार है कि प्रेमिका की मौत को तीन दिन से पहले ही सबकुछ भूल गया ये राक्षस अपनी प्रेमिका की जगहसाई कराने में जुट गया ये ब्याभिचारी पत्रकार खुद को जातिबाद का शिकार बताने में फख्र महसूस करने लग पड़ा ये धोखेवाज। हद तो तब हुई जब एक और ब्याभिचारी पत्रकार खुद को एसे बलातकारियों का गुरू बताते हुए ये जताने लगा कि किस तरह इन लोगों ने निरूपमा के दिमाग से जातिवाद को निकाल कर उसे इस बहसी के साथ प्रेम करने के लिए मजबूर किया खुद इस बलातकारी ने कहा कि शुरू- शुरू में उसके दिमाग में जाति की बात थी जो बाद में दूर कर दी गई मतलब इस बयाभिचारी व इसके अपराधी मानसिकता से ग्रस्त साथियों ने निरूपमा को सिर्फ इसलिए टारगेट किया क्योंकि वो अलग जाती की थी बाद में उसके गर्भवती बनने पर उससे खुद को अलग कर मरने के लिए अकेला छोड़कर सबूतों को मिटाकर खुद को हीरो बनाने की त्यारी जोर-शोर से शुरू कर दी।

• अब हम बात करते हैं उन सबूतों की जिन्होंने पुलिस को इस बलातकारी के द्वारा निरूपमा को आत्महत्या के लिए बजबूर करने की बात पर विस्वास करने का आधार दिया।

• सबसे पहला सबूत ये कि जब ये अपने व निरूपमा के परिवार की सहमति के विना निरूपमा के साथ रहकर उसे गर्भवती बना सकता था तो इसने कोर्ट जाकर शादी क्यों नहीं की?

• क्यों इसने कोर्ट जाकर शादी करने के बजाए खुद को निरूपमा से दूर करने की कोशिश की?
• निरूपमा गर्भवती है ये प्रियभांसु को जानकारी नहीं थी सिर्फ कोई पागल ही मान सकता है ये जानकारी उसे अच्छी तरह से थी।
• आत्महत्या से पहले निरूपमा ने 56 SMS इस बालातकारी को किए जिन में से एक को छोड़ कर सब इस बयाभिचारी ने हटा दिए क्यों क्योंकि वो 55 SMS  इस दरिंदे द्वारा निरूपमा पर किए गय अत्याचारों का सपष्ट प्रमाण थे ।
• अपने विरूद्ध सबूतों को मिटाने की इसी कड़ी को जारी रखते हुए इस दरिंदे ने निरूपमा की डायरियों को उसके कमरे से चुरा लिया।
• अपने अपराध की इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए इस दरिंदे ने निरूपमा के लैपटौप को भी उसके घर से चुराकर उसके साथ भी छेड-छाड़ की सबूतों को मिटाने के लिए।
• सबसे बढ़ी बात यह कि जब निरूमपा की मृत्यु झारखंड के कोडरमा में हुई तो इस दुष्ट को सबसे पहले कैसे प्राप्त हुई ।हमारे विचार में निरूपमा ने SMS के माध्यम से इसे अपने द्वारा आत्महत्या करने की जानकारी दी थी।इसी जानकारी के आधार पर इसने अपने साथी बयाभिचारी पत्रकारों के माध्यम से DIG,SP स्तर के अधिकारियों के माध्यम से पुलिस के निचले स्तर के अधिकारियों व डाकटरों पर दबाब बनाकर इस आत्महत्या के मामले को हत्या का मामला बनाकर निरूपमा की माता को फंसाने की कोशिश की क्योंकि बाकी निरूपमा के जिन रिस्तेदारों पर शक किया गया था या किया जा सकता था वो सब किसी भी तरह से हत्या के वक्त निरूपमा के घर पर नहीं थे नही हो सकते थे क्योंकि उनकी काल डिटेलस ने सारा मामला साफ कर दिया है जबकि इस दरिंदे प्रियभांसु की काल डिटेलस ने ये साफ कर दिया है कि मौत के लिए सिर्फ यही दरिंदा जिम्मेदार था।
अन्त में हम ये उम्मीद करते हैं कि बलागजगत के जिन पत्रकारों ने अज्ञानबस या जल्दवाजी में विना किसी पूर्वाग्रह के इस दरिंदे बालातकारी को बचाने में सहायक हो सकने वाले लेख लिखे थे वो खुद आगे आकर माफी मांगकर अपने निष्पक्ष होने का प्रमाण अपने पाठकों के सामने रखें।

जिन अधर्म के ठेकेदारों ने जानबूझकर इस घटना को सहारा बनाकर धर्म को निशाना बनाने की कोशिश की उनके लिए यही उचित रहेगा कि वो चुलुभर पानी में डूब मरें...





8 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

tumhare naam se yahan kisi ne ek jagah benami jaisee tippani ki hai jakar dkeh lo

http://laraibhaqbat.blogspot.com/2010/05/why-he-always-wears-bhagwa-dress.html

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

मै तो बस यही कहुंगा कि इन ही लोगो की भाति किसी भी निश्कर्श पर पहुचंने से बजा जाये अभी जब तक जांच चल रही है, लेकिन हा इन लोगो की प्रतिक्रिया एकपक्षीय थी, फिर कह्ता हूम इन्होने उस्के माता-पिता को बुरा भला कह कर उस्की आत्मा को और दुखी किया !

Mithilesh dubey ने कहा…

bahut badhiya likha hai aapne

... ने कहा…

nice

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

ईश्वर शिव है , सत्य है , सुन्दर है , शान्ति और आनन्द का स्रोत है । ईश्वर सभी उत्कृष्ट गुणों से युक्त हैं । सभी उत्तम गुण उसमें अपनी पूर्णता के साथ मौजूद हैं । सभी गुणों में सन्तुलन भी है ।
प्रकृति की सुन्दरता और सन्तुलन यह साबित करता है कि उसके सृष्टा और संचालक में ये गुण हैं । प्राकृतिक तत्वों का जीवों के लिए लाभदायक होना बताता है कि इन तत्वों का रचनाकार सबका उपकार करता है ।
http://vedquran.blogspot.com/2010/03/universe-is-sign-of-lord-shiva.html

Unknown ने कहा…

अनबर जी जब आप जानते हैं कि हम आप जैसे तरकविहीन बात करने वालों को पसन्द नहीं करते तो फिर क्यों फिर आप बार-बार हमारे बलाग पर आकर सम्परक् करने की कोशिश कर हमें अपनी टिपणियां मिचाने पर मजबूर कर रहे हैं।
आप इस्लाम का प्रचार प्रसार करो अपने तरीके से हमें कोई दिक्कत नहीं आप हिन्दूओं को गाली गलौच करो तब भी हमें फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हिनदू बुराईयों से भरे पड़े है
लेकिन जब आप सुरक्षा बलों व हमारी आस्था के प्रतीकों का अपमान करते हैं तो सच कहें तो अगर हम हिन्दू न होते तो आपका नमोनिशान मिटा देते लोकिन क्या करें हम मजबूर हैं अपने संस्कारों से.अपनी कमियों से
इसलिए बेहतर यही होगा कि या तो आप बायदा करो कि भविष्य में आप हमारे आस्था के प्रतीकों से खिलबाड़ नहीं करेंगे या फिर किसी अनहोनी से बचने के लिए हमारे से समपर्क करना छोड़ दो

बेनामी ने कहा…

धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है ।
धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
ईश्वर के अवतार एवं स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । लोकतंत्र में न्यायपालिका भी धर्म के लिए कर्म करती है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस परिस्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
अधर्म- असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है । अधर्म के लिए कर्म करना, अधर्म है ।
कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म (किसी में सत्य प्रबल एवं किसी में न्याय प्रबल) -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मंत्रीधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक एवं परमात्मा शिव की इच्छा तक रहेगा ।
धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर के किसी रूप की उपासना, दान, परोपकार, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है ।
by- kpopsbjri

बेनामी ने कहा…

वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।