कुंबर जी दुख तो इसी बात का है कि बलाग जगत के परजिवीयों ने भी इस मामले में वही किया जो सेकुलर गिरोह कर रहा है भारतीय संसकृति को नुकसान पहुंचाने के लिए। जब हमने इन बलागरस का विरोध किया इन्हें अधर्म के ठेकेदार कहकर तो इन्होंने हमारा बहिसकार शुरू कर दिया। दुख की बात तो यह है कि जब हमने भारतीय संस्कृति व सुरक्षा बलों को हर वक्त गाली गलौच करने वाले जानवरों का बहिसकार करने को कहा था जिनका बहिसकार करने का कहा बाद में फिरदौस जी ने भी समर्थन किया तब ऐसा वो कर न सके । खैर आपने टिप्पणी की उसके लिए धन्याबाद। आप खुद देखो कि निरूपमा के केश को इन परजीवियों ने किस हद तक उलझा दिया है।
अब उस मुद्दे पर आते हैं जिस पर हम बलाग जगत की प्रतिक्रिया का पिछले कई दिनों से इन्तजार कर रहे हैं।
प्यार के वारे में हमारा विचार था कि
Love is slow poison
Poison can take our live
Life is nothing but bunch of emotions
Emotions are meaningless without the emotion of love
हम समझते थे कि प्यार में प्राणी सर्वस्व नयौछाबर करने का दमखम रखता है लेकिन जो स्वारूप आज देखने को मिलता है उसे देखकर मन घबरा जाता है पहले शिमला में होटल में MBA के छात्र ने प्रेमिका का कत्ल शिर्फ संका के आधार पर कर दिया अब प्रियभांशु ने प्रेमिका को गर्भवती कर दगा दे दिया ऐसे कितने ही किस्से हैं जो चीख –चीख कर कह रहे हैं कि इन पढ़े लिखे लोगों ने एक तरह से प्यार में भी मिलाबट कर सैक्स को ही प्यार का नाम दे दिया इन्हीं के लिए हम ये कबिता लिख रहे हैं...
जो Sex को जो प्यार का नाम दे देते हैं वही तो अपनी मासूक को सबकी निगाह में गिराह देते हैं।
मासूक तो आसिक की आन वान शान होती है पर जीवन भर साथ निभाने की बात ही तो Sex को प्यार का नाम देने वालों के जी का जंजाल होती है।।
मासूक तो आसिक की निगाहों में मन तन में सारा जहान होती है पर प्यार को Sex का नाम देने वालों के लिए तो वो सिर्फ शारीरिक शोषण की खान होती है।
मासूक पर आसिक तो जान देते हैं पर प्यार को Sex का नाम देने वाले ही तो उसको शादी का लालच देकर शादी से पहले गर्भवती बनाकर जीते जी मार देते हैं।।
Sex को जो प्यार का नाम देते हैं वही तो भीख को दहेज के नाम से मांग लेते है रिश्पत को सिर्फ लेन देन कहकर चोरबजारी को व्यापार कहकर वेशर्मी से अंजाम दे देते हैं।
हम पूछतें हैं इन प्यार के दुशमनों से कि अगर Sex ही प्यार है तो फिर क्यों न ये प्यार की जगह Sex की बात कर खुद को प्रेमी कहने के बजाए ब्याभिचारी या बलात्कारी कहकर सच्चाई को मान लेते हैं।।
ये वही हैं जो आटे में रेत और भूसा मिला देते हैं मिर्चों में लाल रेत और दालों में पत्थर मिलाकर भोली-भाली जनता को वेवकूफ बना देते हैं ये वही हैं जो Sex को जो प्यार का नाम दे देते हैं।
हल्दी में ये पीला रंग मिलाकर पकड़े जाने पर इसे व्यापार कहकर अपनी झूठी शान बचा लेते हैं। ये वही हैं जो Sex को जो प्यार का नाम दे देते हैं।।
ये वही हैं जो पुलिस में भर्ती होकर भी चोर का साथ देते हैं मीडिया में बैठकर ये आतंकवादियों को हीरो बना देते हैं ।
कुलमिलाकर Sex को जो प्यार का नाम देते हैं वही हर तरह के भ्रष्टाचार को अंजाम दे देते हैं।।
ये वही हैं जो PWD में नौकरी लगने पर सीमेंट निर्माण में लगाने के बजाए बाजार में बेचकर लोगों की जान ले लेते हैं। ये वही हैं जो Sex को जो प्यार का नाम दे देते हैं।
डाक्टर बन कर कमीशन के बदले घटिया दवाई खिलाकर खुद को भगवान मानने वालों को मौत की नींद सुला देते हैं ये वही हैं जो Sex को प्यार का नाम दे देते हैं।।
Sex को जो प्यार का नाम देते हैं वही तो अध्यापक बनकर बच्चों को संस्कृति व आत्मउत्थान की जगह ब्याभिचार और आत्मगलानि का पाठ पढ़ा देते हैं।
Sex को जो प्यार का नाम देते हैं वही तो चंद टुकड़ों के बदले देश के दुशमनों के हाथों बिककर अपने हमवतनों को मौत की नींद सुला देते हैं।।
Sex को जो प्यार का नाम देते हैं वही तो जिन्दगीभर मां-बाप की सेवा की जगह मां-बाप को वृद्धा आश्रम में छोड़कर Mother Day और Father Day की नई रीत चलाकर अपनी मक्कारी छुपा लेते हैं।
ये वही हैं Sex को जो प्यार का नाम देकर बिनब्याही को मां बनाकर उसे जीते जी मार देते हैं।।
ये वही हैं जो लूट-खसूट का पाठ लेन-देन के नाम से।
भीख का पाठ दहेज के नाम से।।
देशद्रोह का पाठ मजबूरी व गरीबी के नाम से।।।
शिक्षा के बहाने पढ़ा देते हैं ।।।।
ये वही हैं जो Sex को प्यार का नाम देकर बिनब्याही को मां बनाकर उसे जीते जी मार देते हैं।
ये वही हैं जो देशद्रोह को धर्मनिर्पेक्षता का नाम देकर देश में गद्दारी की एक नई रीत चला देते हैं ये वही हैं जो Sex को जो प्यार का नाम दे देते हैं।।
आओ मिलकर इन इन मक्कारों का पर्दाफाश कर प्यार को प्यार ही रखकर फिर से प्यार की प्यारी सी रीत को बहाल इन Sex को प्यार का नाम देने वाले मानबता के इन शत्रुओं का शमूल नास करें
13 टिप्पणियां:
hum aapke sath hain
धन्याबाद मिथलेश जी शुक्र है कोई तो हमारे साथ है ।
सुनील जी,
आपने किस सन्दर्भ में हमारे नाम का ज़िक्र किया है, हम नहीं समझ सके हैं... हो सके तो बताइएगा (आप मेल कर सकते हैं)
पिछले दिनों हमारे कुछ लेखों को लेकर जो बिना वजह का हंगामा खड़ा किया गया...उससे हमें बेहद अफ़सोस हुआ कि ख़ुद को पढ़-लिखा कहने वाले लोग भी किसी समस्या के समाधान के बारे में सोचने की बजाय 'ओछेपन' पर उतर आए...
हम पत्रकार हैं... हमारा काम है समाज की हर अच्छी और बुरी बात को अवाम तक पहुंचाना...
हमें अपने हिन्दुस्तानी मुसलमान होने पर फ़क्र हैं... हमने पहले भी कहा है कि हम मज़हब से ज़्यादा रूहानियत और इंसानियत में यक़ीन करते हैं...
हमारी यही बात 'कुछ लोगों' को बुरी लग गई और उन्होंने हमें 'काफ़िर' घोषित कर दिया...
ख़ैर, हमें अपने ईमान के बारे में 'उन लोगों' से 'सर्टिफ़िकेट' लेने की ज़रूरत नहीं... अल्लाह बेहतर जानता है...
अलबत्ता हमने 'उन लोगों' का बहिष्कार कर दिया... अपने स्तर पर... और ब्लोगर्स के बारे में हमें जानकारी नहीं, क्योंकि हम 'उन लोगों' के ब्लोग्स पर नहीं जाते...
अभी हाल ही में एक महोदय अपनी पोस्ट में अश्लील तस्वीरें लगा राखी थीं... हमने उस पर कमेन्ट लिखकर अपनी शिकायत दर्ज करा दी...अगले दिन उन महाशय ने हमें निशाना बनाते हुए ही पोस्ट लिख डाली...
फिर हमने तय किया कि चुनिन्दा लोगों के ब्लोग्स पर ही कमेन्ट लिखेंगे...
निरुपमा मामले में हम इतना ही कहना चाहते हैं कि ग़लती दोनों की ही थी... अगर उनसे ग़लती हुई थी तो उन्हें उसे सुधार लेना चाहिए था... इससे दोनों परिवारों इज्ज़त रह जाती...
ज़ाती (निजी) तौर पर हमारा मानना है कि "फ़र्ज़ का मुक़ाम प्रेम से बड़ा होता है"... ज़िन्दगी में उसूल नाम की भी कोई चीज़ होती है...
कमेन्ट लंबा हो गया है...उसके लिए मुआफ़ी चाहते हैं...
जिनक जानवरों का आपने बहिसकार किया उन्हीं की बात हम कर रहे हैं।
उस तसवीर को हटाने के लिए उन महोदय को हमने भी कहा था । अब उन्होंने वो तसवीर हटा भी दी है रही उनके द्वारा आपको गाली गलौच करने की बात तो उसके लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं ।
फिरदौस जी जो हमला आप पर है उससे कहीं जयादा बड़ा हमला हम पर उन जानबरों के मित्र सेकुलर हिन्दूओं का है।
हम आपसे यही कह सकते हैं कि जब तक ये सेकुलर गिरोह समाप्त नहीं हो जाता तब तक हम और आप चैन से नहीं बैठ सकते ।
रही जाती की बात तो हम जाति-सांप्रदाय पर आधारित हर तरह के भेदभाव के खिलाफ हैं ।
जिस तरह आप मुसलमानों मे अलपसंख्यक हैं उसी तरह हम हिन हिन्दूओं में अलपशंखयक है
ऐसा नहीं कि हिन्दूओं और मुसमानों में हमारे जैसे लोगों की कमी है पर उनकी अभी मिडीया में पकड़ नहीं। जिस दिन हो जायेगी उस दिन लोग खुद सेकुलर गिरोह से जुड़े लोगों को पत्थर मार-मार कर भगा देंगे...
हम तो चाहते हैं कि आप जैसे लोग दिल खोल कर लिखें
1) सुनील दत्त जी की पोस्ट की मूल भावना से सहमत हूं… (यदि प्रियभांशु वाकई निरुपमा से प्यार करता होता तो वह उसके अन्तिम संस्कार में शामिल होने अवश्य जाता, भले ही वहाँ पुलिस द्वारा खदेड़ा जाता। और प्रियभांशु-निरुपमा तो पत्रकारिता के छात्र हैं, क्या उन्हें इतना भी नहीं पता कि भारत अभी "भारत" ही है, अमेरिका नहीं बना है?)
2) फ़िरदौस जी आपको स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता नहीं है… कुछ "खास लोगों" को छोड़कर हिन्दी ब्लॉग जगत में कोई भी आपके खिलाफ़ नहीं है… बल्कि आपने समय-समय पर कट्टरता के खिलाफ़ आवाज़ बुलन्द करके अपनी ही साख बढ़ाई है…
पहले तो सुरेश जी आपका स्वागत और साथ ही मार्गदर्शन के लिए धन्यावाद
हम आपसे सहमत हैं।
सुनील जी सर्वप्रथम तो आपका मै आभारी हूँ जो आपने मेरे नाम का जिक्र अपनी पोस्ट के शीर्षक में कर दिया!मुझ तुच्छ को ये सम्मान देने के लिए आपका धन्यवाद है जी!
समस्या बढती जा रही है जी!ये आम जन-मानुस कि भी बात है!पहले जो कोई कुछ समाज के हिसाब से गलत करता था तो वाह तो स्वय में ग्लानी महसूस करता ही था,समाज भी उसका यथोचित बहिष्कार करता था!लेकिन आज कल नजारा कुछ अलग सा है!बुरा या गलत करने वाला पहले की भाँती खुल कर जी रहा है,गलत को गलत कहने वाले बहुत कम दिखाई पड़ रहे है!
हाँ!उसकी पीठ के पीछे जितनी मर्जी बुराई किसी की करवा लो पर उसके सामने आते ही नजारा बदल जाता है!
आपके प्रयास सही दिशा में बढ़ रहे है!हर कोई जो सच और समाज के बारे में खुद को चिंतित मानता है वो आपके साथ है!
कुंवर जी,
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार प्यार और वासना में वैसा ही अंतर है जैसा गंगा के जल और पोखर के कीचड़ में होता है |
लेकिन आज इस विज्ञापन के युग में और दिखावे के भ्रम में इस देश के कुछ लोग वासना को ही प्यार समझ बैठे हैं |
इसमें सिनेमा और आज के तथाकथित बुद्धिजीवी जो भारतीय मान्यताओं के वास्तव के विरोधी हैं इस बात को बढ़ावा दे रहे हैं |
बहार हाल... भारतीयता के लिए समर्पित हम आपके साथ हैं |
अब समय आ गया है जब भारतीयता को बाबा रामदेव पुनर्प्रतिष्ठित कर रहे हैं और मैं समझता हूँ कि हम और आप जैसे लोगों को अपने ब्लौग द्वारा भी उनके समर्थन में भी आवाज उठानी चाहिए |
प्रेम और सेक्स दोनो सहज हैं। असहज अगर कुछ है तो यही कि ये पढे-लिखे लोग कई बार अनपढों से भी ज्यादा बेवकूफ साबित होते हैं।
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