खुले पृष्ठ ‘हिन्दू और मुसलिम परिपक्व हैं पर संघ परिवार नहीं।’ के लिेए एक खण्डन लेख।
द हिन्दु समाचार पत्र में में छपे उस अंश का ये खण्डन है जिसका शीर्षक है ‘हिन्दू और मुसलिम परिपक्व हैं पर संघ परिवार नहीं।’ (खुला पृष्ठ ,अगस्त 2011) जो कि खुद को मुसलमानों में उदारवादी सोच का प्रतिनिधि बताने वाले ए फैजुर रहमान द्वारा लिखा गया है।
यद्यपि रहमान द्वारा ये अंश पहले के एक अंश ‘हम मुसलमान परिपक्व हैं हम अलोचना सह सकते हैं’ (“खुला पृष्ठ”,अगस्त 7,2010 के संदर्भ में लिखा गया था। जो कि राजी रौफ द्वारा लिखा गया था क्योंकि राजी रऊफ ने मेरे द्वारा किसी अन्य समाचार पत्र में लिखित खुले पृष्ठ के वारे में दुष्प्रचार किया है इसलिए मेरे लिए ये जरूरी हो गया है कि मैं ‘द हिन्दु’ में रहमान द्वारा लिखित अंश का खण्डन करूं।
रहमान के अनुसार उदारवादी मुसलमान वो हैं जो उनके अनुसार मेरे द्वारा लिखित उत्तेजक लेखों पर प्रतिक्रिया नहीं करते। हालांकि रहमान ये बताने से चूक जाते हैं कि उदारवादी मुसलमानों की उन आतंकवादियों के प्रति क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए जो देश के विभिन्न हिस्सों में हजारों निर्दोष भारतीयों का कत्ल कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त रहमान ये भी नहीं बताते कि उदारवादी मुसलमानों की कशमीरघाटी में 60000 हिन्दूओं का कत्ल कर 500000 हिन्दूओं पर बरबर अत्याचार कर उन्हें अपने घर से बेघर करने वाले आतंकवादियों के प्रति क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए।
रहमान कहता है कि उदारवादी मुसलमान, आतंकवादी मुसलिम संस्थाओं द्वारा हथियार उठाकर डा. सुब्रमण्यम स्वामी सहित सब हिन्दूओं पर हमला करने “take up arms and to let all hell loose (sic).” के उकसावे पर अमल करने के बजाए इस बात से सन्तुष्ट हैं कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने मुझे(डा. सुब्रमण्यम स्वामी) को नोटिस भेजा है। विचार करने के लिए रहमान का धन्यवाद।
लेकिन रहमान की उदारवादी मुसलमान की अवधारणा मात्र एक दिखावा है क्योंकि इसका एकमात्र मकसद इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा किए जा रहे बरबर अत्याचारों से लोगों का ध्यान हटाना है। रहमान मुसलिमों को ऐसा कोई उपाए(कदम) नहीं बताते जो उन्हें मौन स्वीकृति त्याग कर हिन्दूओं पर अत्याचार कर रहे जिहादी आतंकवादियों के विरूद्ध उठाना चाहिए। मुझे “बराबर समय सिद्धांत" के अनुसार ये कहने का पूरा अधिकार है कि इस्लामिक आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए मेरे द्वारा लिखे गए खुले पृष्ठ में मैंनें सही तथ्य दिए थे। मेरे कहने का अर्थ है कि आतंकवाद इस्लाम की कत्लोगारद की परम्परा को ही आगे बढ़ा रहा है खासकर जिहाद को।
आतंकवाद हिंसा का वो हथियार है जो अपने राजनीतिक व वैचारिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संवैधानिक तरीके से चुनी गई सरकार और लोगों को भयभीत करने के लिए आम जनता को निशाना बनाता है।
संयुक्त राष्ट्र सुराक्षा परिषद ने 2004 में “अपराधिक कृत्य” से सबन्धित संकल्प संख्या 1566 में आतंकवाद को इस तरह परिभाषित किया है। आम जनता या लोगों के समूह में या विशेष व्यक्तियों , एक जनसंख्या समूह को दवाव में लाने या एक सरकार को वाध्य करने या अन्तरराष्ट्रीय संस्था को किसी काम को करने या न करने के लिए वाध्य करना।
इसलिए प्रत्येक सरकार का ये कर्तव्य है कि वह सामूहिक या अपने स्तर पर आतंकवादविरोधी ऐसे कड़े कदम उठाए जिससे कि भविष्य में होने वाले हमलों को रोका जा सके । सरकार का ये भी कर्तव्य है कि वो आतंकवादी गतिविधियों को अन्जाम देने वाले लोगों के विरूद्ध मुकद्दमा चलाकर सजा दें। इसके साथ ही आतंकवाद का मुकाबला करना मनावाधिकारों की रक्षा करने और बढ़ावा देने के लिए भी बड़ा खतरा पैदा करता है। इसलिए प्रत्येक देश से ये आहवान किया जाता है कि वे आतंकवाद का खात्मा और मानवाधिकारों की रक्षा करें।इन दोनों के बीच में रैखिक सबन्ध होने के बजाए अरैखिक सबन्ध है। अर्थात ये सत्य नहीं है कि हम मानवाधिकारों का जितना कम बचाव करेंगे आतंकवाद का मुकाबला करने में उतना ही अधिक सफल होंगे। इसका विलोम ये भी सत्य नहीं है कि हम आतंकवाद को जितनी कड़ाई से कुचलेंगे मानवाधिकारों का उतना ही कम पालन होगा। इसलिए हमें एक ऐसी रणनीति बनाकर अमल करने की जरूरत है जिसके अनुसार मानवाधिकरों की रक्षा करने के साथ-साथ मानवता विरोधी आतंकवाद को भी नेस्तनाबूद करने के लिए किए जाने वाले रक्षा उपायों में अनुकूलतम संयोजन किया जा सके। कम होते हुए लाभ का नियम इस प्रक्रिया पर लागू होता है। हमें उपरलिखित प्रक्रिया पर अमल करने की जरूरत है। इसलिए हमने जो लिखा उसका मकसद एक बहस शुरू करना था ना कि हमारे लिखे का कोई दुरूपयोग कर दुष्प्रचार करे जैसा कि रहमान ने किया।
रणनीति
आज मौलिक प्रश्न ये है कि क्योंकि हम भारत में जिहादी आतंकवादी हमलों से दुनिया में सबसे अधिक पीड़ित हैं इसलिए इस्लामिक आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए रणनीति कैसे बनाई जाए?
आतंकवाद से लड़ने के लिए हमारी रणनीति ऐसी नहीं होनी चाहिए जो भविष्य में और अधिक मुसकिलें पैदा न करे। जैसा कि 1989 में रूबिया सईद अपहरण कांड व कंधार में आई-सी—814 विमान अपहरण कांड के दौरान हुआ। ततकालीन NF और राजग सरकारों द्वार आतंवादियों से सौदेवाजी करने के परिणामस्वारूप भारत में आतंकवाद ने और खतरनाक स्वारूप ले लिया। कन्धार में यात्रियों और जहाज के कर्मचारियों के वदले में मौलाना अजहर,उमर कुरैसी और जरगर जैसे दुर्दांत आतंकवादियों को छोड़े जाने के परिणामस्वारूप छुड़ाए गए लोगों से हजारों गुना ज्यादा निर्दोष लोग आज तक मारे जा चुके हैं। इन तीनों कुख्यात आतंकवादियों ने पाकिस्तान पहुंचने के बाद नायकों की तरह अपनी भारतविरोधी आतंकवादी हमलों को आगे बढ़ाया। इन हमलों में 26/11 का मुम्बई हमला भी सामिल है।
इसलिए हमें एक सपष्ट निती की जरूरत है मतलब एक उद्देश्यों को रेखांकित करने वाला सपष्ट घोषणा पत्र जिसमें कि इन उद्देश्यों की प्राथमिकताओं को सपष्टता से परिभाषित किया गया हो, इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अपनाई जाने वाली रणनीति का खुलासा हो और इन उद्देश्य की पूर्ति के लिए जरूरी आर्थिक,मानवीय और संरचनात्मक संसाधनों को जुटाने की प्रतिबद्धता हो।
हम भारतवासियों में से अधिकतर को इस्लामिक आतंकवाद से मुकाबले के लिए प्रतिरोधक रणनीति की जरूरत है। टैलीविजन चैनलों पर बैठकर धर्मनिर्पेक्ष परजिवी सच्चे इस्लाम को मानबीय और शांतिप्रिए बताकर लोगों को वरगलाने की कोशिश तो कर सकते हैं। परन्तु ये सपष्ट है कि इन धर्मनिर्पेक्ष परजिवीयों में से किसी ने भी ने कुरान,सुरा और हदीश का अधिकारिक अनुवाद नहीं पढ़ा है। इसलिए इस्लाम की सही ब्याख्या करने की बात करने के बजाए, जो लोग खुद को उदारवादी कहते हैं उन्हें इस्लाम के एक ऐसे नए सुधारे हुए स्वारूप की रचना करनी चाहिए जो लोकतान्त्रिक मूल्यों के साथ तालमेल बिठाने का आग्रह करता हो।
इस्लाम में पैगंबर के शब्द अंतिम है।कोई भी सच्चा मुसलमान समस्या की जड़ इन आयतों से अपने आपको अलग नहीं कर सकता और न ही सच्चा मुसलमान ये कह सकता है कि वो समस्या की जड़ कुरान की इन आयतों में सुधार कर इन्हें फिर से लिखेगा। क्योंकि ऐसा करने पर उसे जान बचाने के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी।
हम हिन्दूओं की स्वभाव से धार्मिक उदारवादी होने की सर्विदित मान्यता प्राप्त परम्परा है। जब भारत 100% हिन्दू राष्ट्र था तब भी हिन्दूओं ने दुनिया के विभिन्न भागों में प्रताड़ित पारसियों,यहूदियों,सिरियाईयों,इसाईयों और ऐहसान फरामोस अरब के मुसलमानों को न केवल शरण दी बल्कि उनका पालन पोषण भी किया। आज ऐहसान फरामोस इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाए जा रहे हिन्दूओं को अपनी रक्षा के लिए एकजुट होकर खड़े होना होगा।
आज 21वीं शताब्दी में हिन्दूओं के लिए संगठित होकर खड़ा होने का क्या मतलब है? अपनी रक्षा के लिए खड़े होने से मेरा मतलब है कि प्रभावशाली प्रतिशोधात्मक कार्यवाही कर देश की रक्षा करने के मुद्दे पर सब हिन्दूओं में पूरी मानसिक स्पष्टता होनी चाहिए।
इस संगठित प्रतिशोधात्मक कार्यवाही में अन्य धार्मिक समूहों का तर्कपूर्ण सहयोग, भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने में लेना भी, इस प्रतिशोधात्मक कार्यवाही का हिस्सा है। इसलिए मैंनें इस बात की वकालत की कि मुसलमानों को, इस सच्चाई जो कि वैज्ञानिक डीएनए आनुवंशिक अध्ययन द्वारा सिद्ध हो चुकी है ,को स्वीकार कर लेना चाहिए कि हम सबके पूर्वज एक हैं और महान हिन्दू संस्कृति हम सब की सांझी विरासत है।
(डा. सुब्रमनियम स्वामी जी जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)
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