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मोदीराज लाओ

मोदीराज लाओ
भारत बचाओ

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

क्या आप मानते हैं कि चोरी और गद्दारी के लिए विषकन्या जिम्मेदार है?


आप सबने खुद अपने कानों से सुना व आंखों से देखा कि किस तरह महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष अपनी ही पार्टी के नेता को बता रहे थे कि मुख्यमन्त्री पहले तो 200 करोड़ देने के लिए तैयार नहीं हुए लेकिन मैडम एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी का फोन आते ही उन्होंने 200 करोड़ देने की सहमती दे दी। आगे आपने ये भी सुना होगा कि वाकी मन्त्रियों से 10-10 लाख लिए गए। अब आप बताओ जो मन्त्री इस विषकन्या की एक यात्रा के दौरान अपनी कुर्सी बचाने के लिए 200 करोड़ देने के लिए मजबूर हो वो इतनी बड़ी रकम पूरी करने के लिए क्या नहीं करेगा ?


उसके पास दो ही रास्ते हैं या तो वो भ्रष्ट तरीकों से इस रकम की भरपाई करे या फिर भारतविरोधी आतंकवादियों से पैसा लेकर प्रदेश की सुरक्षा उनके हाथों में गिरवी रख दे। महाराष्ट्र सरकार ने दोनों ही हथकंडे आपना लिए इस रकम की भरपाई कर अपनी जेब भी भरने के लिए।


आपने वो स्टिंग आपरेसन जरूर देख होगा जिसमें राज्य के गृहमन्त्री व इस विषकन्या के खासमखास एहमद पटेल और आतंकवादियों के सरगना मिलकर ये तय कर रहे थे कि राज्य का पुलिस प्रमुख किसे बनाया जाए।


आपने वो समाचार भी देखा होगा जिसमें मुख्यमन्त्री दो-दो आतंकवादियों के साथ इफतार पार्टी कर रहा था। मतलब साफ है कि विषकन्या एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी के इसारे पर पूरी की पूरी महारष्ट्र सरकार देशद्रोह व भ्रष्टाचार के चर्म पर पहूंच चुकी है।


भर्ष्टाचारियों व भारतविरोधी आतंकवादियों के इसी गठजोड़ की बजह से लैप्टीनैंट कर्नल पुरोहित व साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर जैसे देशभक्तों को जेल में डालकर उन पर दो-दो वार मकोका लगाकर हिन्दू आतंकवाद की झूठी अबधारणा तैयार करने के षडयन्त्र रचे जा रहे हैं।


आप खुद सोच सकते हैं कि जो सरकार आतंकवादियों के साथ मिलकर पुलिस प्रमुख तैय कर रही हो वो देशभक्त सैनिकों व नागरिकों या फिर संगठनों के साथ क्या सलूक करेगी? वही सलूक आज देशभक्त संगठनों भारतीय सेना व साधु-सन्तों के साथ किया जा रहा है।


अब आप खुद तय करो कि आदर्श सोसायिटि घोटाले व आतंकवादियें के साथ गठजोड़ के लिए अशोक चहान से जयादा जिम्मेदार विषकन्या एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी है कि नहीं।


2 टिप्‍पणियां:

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

ji nahin

बेनामी ने कहा…

करकरे के हत्यारे कौन ?

भारत में आतंकवाद का असली चेहरा

यह उन शक्‍तियों के बारे में पता लगाती है जिनका महाराष्ट्र ए टी एस के प्रमुख हेमंत करकरे ने पर्दाफ़ाश करने की हिम्मत की और आख़िरकार अपने साहस, और सत्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की क़ीमत अपनी जान देकर चुकाई।

एक पुस्तक जो साफ़ तौर पर यह कहती है कि ये “ब्राह्‌मणवादियों” का “ब्राह्‌मणवादी आतंकवाद” है, इस्लामवादियों का “इस्लामी आतंकवाद” नहीं...

From the back Cover:

राज्य और राज्यविहीन तत्त्वों द्वारा राजनीतिक हिंसा या आतंकवाद का एक लम्‍बा इतिहास भारत में रहा है। इस आरोप ने कि भारतीय मुसलमान आतंकवाद में लिप्त हैं, 1990 के दशक के मध्य में हिंदुत्ववादी शक्‍तियों के उभार के साथ ज़ोर पकड़ा और केंद्र में भाजपा की सत्ता के ज़माने में राज्य की विचारधारा बन गया। यहाँ तक कि “सेक्यूलर” मीडिया ने सुरक्षा एजेंसियों के स्टेनोग्राफ़र की भूमिका अपना ली और मुसलमानों के आतंकवादी होने का विचार एक स्वीकृत तथ्य बन गया | हद यह कि बहुत-से मुसलमान भी इस झूठे प्रोपेगण्डे पर विश्‍वास करने लगे।

पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एस.एम. मुशरिफ़ ने, जिन्होंने तेलगी घोटाले का भंडाफोड़ किया था, इस प्रचार-परदे के पीछे नज़र डाली है, और इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र व अपने लम्बे पुलिस अनुभव से प्राप्त ज़्यादातर जानकारियों (शोध-सामग्री) का उपयोग किया है। उन्होंने कुछ चौंकाने वाले तथ्यों को उजागर किया है, और अपनी तरह का पहला उनका यह विश्‍लेषण तथाकथित “इस्लामी आतंकवाद” के पीछे वास्तविक तत्त्वों को बेनक़ाब करता है। ये वही शक्‍तियां हैं जिन्होंने महाराष्ट्र ए टी एस के प्रमुख हेमंत करकरे की हत्या की, जिसने उन्हें बेनक़ाब करने का साहस किया और अपनी हिम्मत व सत्य के लिए प्रतिबद्धता की क़ीमत अपनी जान देकर चुकाई।

यह पुस्तक भारत में “इस्लामी आतंकवाद” से जोड़ी गयीं कुछ बड़ी घटनाओं पर एक कड़ी नज़र डालती है और उन्हें आधारहीन पाती है।

About the author

एस.एम. मुशरिफ़ महाराष्ट्र के एक पूर्व आई जी पुलिस थे जो सबसे ज़्यादा अब्दुल करीम तेलगी फ़र्ज़ी स्टांप पेपर घोटाले को उजागर करने के लिए याद किये जाते हैं। वह 1975 में महाराष्ट्र के लोक सेवा आयोग द्वारा सीधे पुलिस उपाध्यक्ष नियुक्‍त किये गये थे; और 1981 में भारतीय पुलिस सेवा में ले लिए गए थे।

श्री मुशरिफ़ को वर्ष 1994 में सराहनीय सेवा के लिए “राष्ट्रपति पुलिस पदक” से सम्मानित किया गया था । शानदार सेवा के लिए उन्हें पुलिस महानिदेशक का प्रतीक चिह्‌न भी दिया गया और बेहतरीन कार्यप्रदर्शन के लिए सीनियर अधिकारियों की तरफ़ से उन्हें बहुत सराहा गया। अक्‍तूबर 2005 में उन्होंने रिटॉयरमेंट लिया। अब वह सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 को लागू कराने, भ्रष्टाचार के ख़ात्मे, साम्प्रदायिक सौहार्द्र और किसानों व दलितों के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं।