मित्रो आज हम सिर्फ आपको ये सप्षट करने के लिए लिख रहे हैं
कि किस तरह ये दो लोग जो आज हिमाचल की राजनीति का केन्द्र हैं अपनी-अपनी पार्टियों
में होते हुए भी पार्टियों के कार्यक्रमों से उपर उठ कर अपनी-अपनी सोच को आगे बढ़ा
रहे हैं...एक प्रखर राष्ट्रवाद का मार्ग
छोडकर और दूसरा उसे अपनाकर
ऐसा क्यों? |
आओ पहले बात करते हैं प्रमे कुमार धूमल जी की ...धूमल जी दो
वार हिमाचल के मुख्यमन्त्री रहे और अपने कार्यकाल में इन्होंने एक भी ऐसा धमाकेदार
काम ऐसा नहीं किया जिससे भाजपा के मूल वोटर से सबन्धित लोगों को कोई भी राहत मिल
सके...जैसे अधिकर Think Tank ये मानते हैं कि भाजपा को स्वर्ण
मतलब अगड़ी जातियों के ज्यादा बोट मिलते हैं लेकिन प्रेमकुमार धूमल ने एक भी
कार्यक्रम ऐसा नहीं चलाया जिससे इन जातियों से सबन्धित वेरोजगार नौजवनों को किसी
भी तरह की राहत मिल सके...उल्टा ऐसे कार्यक्रम जरूर चलाए जिससे इन जातियों से
सबन्धित वेरोजगार नौजवानों की मुसकिलें और बढ़ीं...
राजा साहब की पार्टी की हैं पर धूमल साहब यहां क्यों? |
हम सब जानते और सुनते हैं कि भाजपा
और संघ के रिस्ते बहुत अच्छे रहे हैं हिमाचल में लेकिन हमारे विचार में असलियत
इसके विलकुल विपरीत है...धूमल जी ने अपने 10 वर्ष के कार्यकाल में एक भी कानून ऐसा
नहीं बनाया जिससे हिन्दूत्वनिष्ठ वोटर खुलकर कह सके कि देखो हिन्दुत्वनिष्ठ सरकार
ने हिन्दू हित में ये काम किया है...हमारा मानना है कि जो सरकार हिन्दूहित में काम
न करे वो देशहित में काम नहीं कर सकती।
आप कहेंगे कि हिमाचल में ऐसा क्या
काम हो सकता था? आप सब जानते हैं कि हिमाचल के
अधिकतर बड़े मन्दिर सरकार के कब्जे में हैं और इन मन्दिरों में भक्तों द्वार दान
किया गया पैसा सरकार द्वार गैर धार्मिक कार्यक्रमों में खर्च किया जाता है
...हमारा साफ विचार है कि जब मसजिद-चर्च में होने वाली कमाई के मालिक सिर्फ मुसलमान
और ईसाई हैं तो फिर हिन्दूओं के मन्दिरों से होने वाली कमाई के मालिक सिर्फ हिन्दू
हैं और इस कमाई को सिर्फ हिन्दू हित में ही प्रयोग किया जाना चाहिए ...इसके लिए
हमने संघ के एक अधिकारी के माध्यम से सरकार तक ये बात पहुंचाई थी कि हिमाचल में
हिन्दू मन्दिर प्रबन्ध कमेटी(HMPC) का गठन कर सब मन्दिरों को उसके अधीन कर हिन्दूओं का हक हिन्दूओं के हबाले
किया जाए...बैसे भी जब सरकारें सेकुलर हैं तो फिर सांप्रदायिक(हिन्दू) पैसे पर कब्जा कैसे कर सकती हैं हमारे(हिन्दूओं)
लिए सेकुलर गद्दार इसी शब्द का प्रयोग करते हैं...हमारा विचार बिलकुल सपष्ट है कि
ऐसे महौल में जब केन्द्र सरकार की अधिकतर योजनायें हिन्दूओं के हक छीन कर गैर
हिन्दूओं के हबाले करने के लिए बनाई जा रही हैं तो फिर मन्दिरों के पैसे से गरीब
हिन्दूओं के बच्चों की पढ़ालिखाई, गरीब लड़कियों की शादी के लिए, व असहाय गरीब
बीमार हिन्दूओं के इलाज के लिए उपयोग किया जाना चाहिए ।
आप सबको जानकारी है कि पिछले पांच
वर्ष सरकार चलाकर धूमल जी ने ऐसा कुछ नहीं किया उल्टा हिन्दू संगठनों के
कार्यकर्ताओं को असुविधा पैदा करने के लिए उच्च सरकारी पदों पर गैर हिन्दूत्वनिष्ठ
अधिकारियों(खासकर बामपंथियों) को बिठाकर इन संगठनों के लोगों द्वारा अपने प्रभाव
का प्रयोग कर कमजोर हिन्दूओं की सहायता करने की किसी भी मन्शा पर पानी फेर दिया।
दूसरी तरफ राजा साहब एक ऐसी पार्टी
में हैं जिसका मूल ऐजेंडा हिन्दूविरोध खासकर स्वर्ण जातियों के विरोध पर अधारित है
लेकिन राजा साहब ने कभी भी केन्द्रीय नेतृत्व की हिन्दूविरोधी नितीयों का अनुशरण न
करते हुए ऐसे कामों को अंजाम दिया जो एक प्रखर देशभक्त ही अन्जाम दे सकता है।
सच कहें तो हमने कभी भी जाति
अधारित संरचना का समर्थन नहीं किया लेकिन जब हम देखते थे कि स्वर्ण जातियों के लोग
1983 में कार्यालय में नाम दर्ज करवाने के बाबजूद वेरोजगार हैं व उनके लिए सोचने
वाल कोई नहीं ऐसे में राजा साहब एक ऐसी निती बनाकर सामने आए जिसमें कि योग्य वेरोजगार
लोगों से कुछ जिलों में नौकरी के लिए आबेदन मांगे गए और मजेदारबात ये है कि जिसने
भी आबेदन किया उसकी नौकरी लग गई...
इसी तरह राजा साहब कई बार ऐसी
योजनायें लेकर सामने आए जिसमें कि पार्टी के लिए काम करने वाले लोगों को रोजगार का
अबसर प्रदान हुआ जबकि धूमल जी ने एकबार भी अपने कैडर की परवाह नहीं की ..
हो सकता है कि कुछ लोगों को हमारी
ये बात सही नहीं लगे लेकिन उन्हें समझना होगा कि राजनीतिक दलों का आधार उनका कैडर
होता है और जब कैडर भूखा मरेगा तो उस दल का वोट बैंक अपने आप कम हो जाएगा..यही
गलती अटल जी ने की थी अपने कैडर को खुश करने के बजाए उर्दू शिक्षकों की भर्ती,
राममन्दिर के वाकी बचे परिसर को सरकारी कब्जे में करने जैसी घोषणायें कर
हिन्दूविरोधियों को खुश करने के लिए
हिन्दुत्वनिष्ठों की छाती पर मूंग दलने जैसी स्थिति का निर्माण कर दिया परिणाम
सबके सामने है पिछले 10 वर्ष से भाजपा सता के बाहर है और अगर मोदी जी को आगे नहीं
किया तो तीसरी बार भी कोई सम्भावना नहीं कयोंकि भाजपा अपने हिन्दूत्वनिष्ठ ऐजेन्डे
को छोड़कर सेकुलर गद्दारों के ऐजेन्डे पर काम कर रही है।
राजा साबह का हिन्दूहित देशहित में
सबसे बड़ा काम है धर्मस्वतन्त्रता बिधेयक पारित करवाना ...ये ऐसा काम है जिसके लिए
हिन्दू समाज राजा साहब को हमेशा याद करेगा...आपको हम बता दें कि 1990-2000 तक
हिमाचल को ईसाई मिसनरियों ने उसी तरह हिन्दूविहीन करने का षडयन्त्र आगे बढ़ाया जिस
तरह धर्मांतरण के इन ठेकेदारों ने उतरपूर्व के कई राज्यों को हिन्दूविहीन कर दिया
मतलब वहां पर 98-100% अबादी ईसाई हो गई जिन हिन्दूओं ने
बिरोध किया उन्हें चर्च ने ईसाई आतंकवादियों का उपयोग कर या तो मरवा दिया गया या
फिर भगा दिया गया...संघ के कई प्रचारक इन ईसाई आतंकवादियों के हाथों मारे
गए...कमोबेश यही स्थिति हिमाचल में थी जगह-जगह हिन्दूओं और ईसाई मिनरियों के बीच
लड़ाई हो रही थी और हैरानी की बात तो ये है कि धूमल जी की सरकार के समय भी ये
संघर्ष जारी रहा और संघ के लाख कहने पर ऐसा कानून नहीं बना लेकिन राजा साहब ने एक
ऐसे कानून का निर्माण किया जिसके अनुशार अगर किसी भी हिन्दू को ईसाई या मुसलमान
बनना है तो उसे बनने से एक महीना पहले प्रशासन के पास प्रार्थना पत्र देना होगा
जिसके बाद उसके मित्रों व परिजनों के पास ये पता लगाने का समय़ होगा कि वो ऐसा कदम
क्यों उठा रहा है और वो उसे रोक सकते हैं उसकी समस्य़ा है तो निराकरण कर और दबाब है
तो उसके साथ खड़ा होकर ...इसी कानून का दूसरा हिस्सा ये है कि जो भी हिन्दू किसी
दबाब या लालच में मुसलमान या ईसाई बन चुका है उसे घर बापसी के रास्ते हमेशा खुले
रहेंगे विना किसी सरकारी हस्तक्षेप के...
धर्मातरण करवाने वाले ईसाईयों को गले लगाओ सन्तों को दूर भगाओ |
जैसे ही राज साहब ने ये कानून
बनाया चर्च ने उनपर हर तरफ से मतलब एडबीज एंटोनिया अलवीना माइनो से लेकर UK US तक से दबाब डलवाया और राजा साहब ने इनसब हिन्दूविरोधियों की एक न सुनते हुए इस
कानून को अमलीजामा पहनाया... राजा साहब के इस हि्नदूहित-देशहित समर्थक कदम से संघ
ने अपने मुखपत्र में राजा साहब को हिमाचल का लौहपुरूष करार दिया...ये बात अलग है
कि राजा साहब को इस भारतसमर्थक कदम की कीमत चुकानी पड़ रही है... अन्त में चर्च ने इस कानून को माननीय न्यायलय में चुनौती दी और मजेदार बात ये है कि न्यायलय ने इस कानून को सही पाया..
जब से राजा साहब ने हिन्दूहित-भारतहित
में ये कदम उठाया है तब से उन्हें हिमाचाल की राजनिती से बंचित करने की हर सम्भव
कोशिश की जा रही है...पहले तो कानून बनाने के बाद जब राजा साहब अमेरिका में इलाज
करवाने गए थे तो चर्च ने अपने ऐजेन्ट के माध्यम से चुनाब आयोग पर दबाब बनाकर 6
महीने पहले ही चुनाब करबा दिए...और राजा साहब को हरबा दिया...फिर राजा साहब को विपक्ष
का नेता भी नहीं बनने दिया गया वल्कि एक धर्मांतरित ईसाई को विपक्ष का नेता बनाया
गया ...फिर दो तिहाई बहुतमत से जीते राजा साहब के बेटे को उनके पद(President Youth
Congress) से हटाकर उसके चुनाब लड़ने पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया गया और 2013 के
चुनाब में भी पूरी कोशिश की गई कि चर्च के ही एक और ऐजेन्ट को हिमाचल की कमान
सौंपी जाए लेकिन हिमाचल के लौहपुरूष के सामने किसी की एक न चली ...हाल ही का इस्तीफा भी इसी साजिस का हिस्सा प्रतीत होता है हमें
अब आप ही बताओ ऐसे प्रखर देशभक्त बीरभद्र
सिंह जी का कौन बिरोध कर सकता है और क्यों?
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