सिर्फ एक पक्ष को देखकर इस पर फैसला किया जाए तो ये मामला विलकुल साधारण दिखता है लेकिन अगर इस बिषय को बिस्तार से समझने की कोशिश की जाए तो यही मामला भारत की बर्बादी और भारत की रक्षा का आधारशूत्र है।
इस बहस का मूल तत्व है भारत के अस्तित्व को मानना या न मानना। जो भी भारत के अस्तित्व को मानता है उसे हिन्दूत्व के अस्तित्व को भी मानना पढ़ेगा और जो हिन्दूत्व के अस्तित्व को मानता है उसे ये भी मानना पड़ेगा कि हिन्दूओं पर हमला भारत पर हमला है और जो भी हिन्दूओं पर हमला करता है वो भारत का शत्रु है और जो भी भारत के शत्रु को मारता है वो भारतीयों के लिए क्राँतिकारी है व भारत के शत्रुओं के लिए आतंकवादी है।
इसी सन्दर्भ में अगर गाँधी की भूमिका का अवलोकन किया जाए तो आप पायेंगे कि गाँधी मुसलमानों को साथ लेने के चक्कर में इस हद तक हिन्दूविरोधी हो चुके थे कि उन्हें गद्दारी और देशभक्ति का अन्तर समझना मुस्किल हो चुका था इसी के परिणामस्वारूप गाँधी ने अंग्रजों द्वारा अपनाई जा रही फूट डालो और राज करो की नीति का कभी विरोध नहीं किया यहाँ तक कि भारतमाता की अस्मिता की खातिर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने पर उतारू भक्त सिंह, चन्द्र शेखर आजाद जैसे क्राँतिकारियों का साथ देना तो दूर गांधी भारत माता के इन सच्चे देशभक्तों को उग्रवादी कहने से भी न चूके …बाद में गद्दारी की यही मानसिकता काँग्रेस की बिचारधारा बन गई ….काँग्रेस की इसी भारतविरोधी-हिन्दूविरोधी मानसिकरता के परिणामस्वारूप आज भारत वहीं पहुंच चुका है जहां पहुंच कर वो 1947 को विभाजन के जख्म शहने को मजबूर हुआ था…
अगर क्राँतिकारी और आतंकवादी के इस अन्तर को और भी स्पष्टता से समझना है तो वर्तमान में घट रही घटनाओं को समझना पड़ेगा।
आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि भारत आज दो खेमो में बंट चुका है एक खेमा फूट डालो और राज करो की नीति अपनाकर खुद को सेकुलर कहता है और हर तरह के भारतविरोधी आतंकवाद का समर्थन करता है व किसी भी तरह की भारत समर्थक क्राँति की आवाज का डटकर विरोध करता है ये आवाज चाहे कोई भी क्यों न उठाए..
दूसरा खेमा भारतविरोधी आतंकवाद का डटकर विरोध करता है व हिन्दू एकता पर जोर देते हुए सांस्कृतिक राष्ट्रबाद पर जोर देता है …देशभक्त क्राँतिकारियों को आज की जरूरत मानता है…शहीदों की कुर्बानियों को याद कर उनका कर्ज चुकाने के लिए खुद भी कुर्बानी होने के लिए तत्पर दिखता है…ऐसे ही 4 दर्जन क्रांतिकारीयों को सेकुलर खेमे ने जेलों में बन्दकर सभी हिन्दूओं को हिन्दू आतंकवादी कहकर भारत को कमजोर करना शुरू कर दिया है …
प्रश्न ये उठता है कि क्यों ये सेकुलर गिरोह देशभक्त क्राँतिकारियों को आतंकवादी कहकर बदनाम करता है व उसी वक्त क्यों ये सेकुलर गिरोह भारत सहित दुनियाभर में कतलोगारद मचाने वाले इसलामिक आतंकवादियों को कभी जी …तो कभी साहब… तो कभी भाई कहकर सम्मानित करता है यही नहीं इस सेकुलर गिरोह का प्रधानमन्त्री भारतीय सुरक्षाबलों को मानवता के हत्यारे इन इसलामिक आतंकवादियों को गिर्फतार न करने का सुझाव देता है…
जरा अपने दिमाग पर जोर देकर सोचो कि वो कौन सी मानसिकता है जिसके परिणाम स्वारूप सेकुलर गिरोह को देशभक्त क्राँतिकारी तो आतंकवादी नजर आते हैं और मानवता के हत्यारे भारतविरोधी इसालिक आतंकवादी इस सेकुलर गिरोह को माननीय…सम्माननीय….बेचारे जिहादी नजर आते हैं…
कौन किसके लिए क्राँतिकारी है और कौन किसके लिए आतंकवादी है ये इस बात पर निर्भर करता है कि मन से वो किसके साथ है और किसके विरोध में
जैसे कि अगर इसलामिक आतंकवादियों व उनके समर्थकों के नजरिए से देखा जाए तो ओसामा विन लादेन क्योंकि उनके लिए लड़ते हुए गैर मुसलमानों का कत्लयाम कर बरबर इसलामिक राज्य का विस्तार कर रहा है इसलिए वो बरबरता के सब समर्थकों के लिए जिहादी है मतलब सम्मानीय है जबकि क्योंकि वो गैर मुसलमानों का कत्लयाम कर रहा है इसलिए वो देशभक्त भारतीयों व ईसाईयों के लिए आतंकवादी है..
क्योंकि सेकुलर गिरोह का वास्तविक मकसद मानबता के मूल हिन्दुत्व को बदनाम कर भारत को खत्म करना है इसीलिए सेकुलर गिरोह से जुड़े भारतविरोधियों को भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार व बचाव में लगे देशभक्त क्रांतिकारी आतंकवादी नजर आते हैं और भारतीयता को समाप्त करने के लिए लगातार भारत को लहुलूहान कर रहे भारतविरोधी इसलामिक आतंकवादी कभी सगे भाई… तो कभीबेचारे… तो कभी जी …तो कभी साहब नजर आते हैं
जो भी भारतीय अपनी भारत माता के प्रति बफादार है अगर उसे गाँधी के सब भारतविरोधी-हिन्दूविरोधी कुकर्मों की जानकारी है तो उसके लिए नथुराम गोडसे जी एक क्राँतिकारी है व जो भी गद्दार इस पावन भारतमाता को लहुलूहान होता हुआ देखकर खुश होता है जो भारत की …हिन्दूओं की बरबादी चाहता है उसके लिए भारत माता व हिन्दूओं की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाला नथुराम गोडसे किसी आतंकवादी से कम नहीं …
3 टिप्पणियां:
वास्तव में नाथूराम गोत्से ने गलती की यदि गाँधी का बढ़ नहीं हुआ होता तो आज भारत में उनके ऊपर जूता और चप्पल चलता.
आप सही कह रहे हैँ लेकिन उस वक्त भी भारतीय उतने ही बौद्धिक गुलाम थे जितने आज हैं इसकी कोई गारंटी नहीं कि वो गाँधी के भारतविरोधी हिन्दूविरोधी रूख को पहचान पाते
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