धर्मनिर्पेक्ष आतंकवादियों द्वारा रचे जा रहे हिन्दूविरोधी-देशविरोधी षडयन्त्रों को उजागर करने की कोशिश। हमारा मानना है कि भारत में कानून सांप्रदाय,जाति,भाषा,क्षेत्र,लिंग अधारित न बनाकर भारतीयों के लिए बनाए जाने चाहिए । अब वक्त आ गया है कि हिन्दूमिटाओ-हिन्दूभगाओ अभियान चलाने वाले भारतविरोधी धर्मनिर्पेक्ष आतंकवादियों को उनके समर्थकों सहित खत्म करने के लिए सब देशभक्तों द्वारा एकजुट होकर निर्णायक अभियान चलाया जाए।
रविवार, 22 अगस्त 2010
NGOs के माध्यम से चर्च के भारत-विरोधी षड्यन्त्र-2
इसी पोलो प्रेरो नाम के पादरी ने मार्कसवाद तथा चर्च दोनों का घोलमेल किया। यह पादरी एक स्थान पर लिखता है कि “मैं ब्राजील की गन्दी बस्तियों में मार्क्श के कारण नहीं अपितु ईसा के कारण आया। बस्ती के लोगों ने मुझसे कहा, कि जाइए “ मार्क्स को जानिए” उनकी जिद ने मुझे मार्क्स के पास भेजा।अब में सहज रूप से दोनों को जानता हूं।”
WCC (WORLD COUNCIL OF CHURCHES) की 1969 में नई दिल्ली में बैठक हुई जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि “चाहे हम स्वीकार करें या न करें लेकिन भारत में कायकल्प हो रहा है और इसाई नेतृत्व के बिना यहां सब उल्टा हो जायगा मतलब लोग चर्च की पकड़ से बहुत दूर चले जायेंगे।” यहां चर्च की पकड़ बनाने के लिए अत्याचार,भेदभाव,और पक्षपात को बढ़ाबा देना अति आवश्यक है। इससबके बाद जो संघर्ष उत्पन्न होगा उसमें चर्च उत्पीड़ित के साथ खड़ा होकर हिन्दू समाज का विनाश सुनिश्चित करेगा। इसी फूट डालो और पकड़ बनाओ के भाव से प्रेरित होकर पेरू के विशप “गुस्ताव गुतिरेज” ने मुक्ति दर्शन नामक किताब लिखी और सारे विचार को गम्भीरता से आगे बढ़ाने का षडयन्त्र रचा।1969 में ही वंगलौर में ALL INDIA CATHOLIC SEMINAR में इस विभाजनकारी विचार को पूर्ण रूप से सवीकार कर लिया गया। हिन्दू समाज को विखण्डित करने वाले इसी विचार को पोप पालVI ने अपने पत्रों के माध्यम से इस षडयन्त्र को प्रोत्साहित किया।
1970 में पश्चिमी जर्मनी के आनाल्ड शैन में WCC (WORLD COUNCIL OF CHURCHES)की कार्यसमिति ने इस षडयन्त्र को आगे बढ़ाने के लिए विशेषकोष से अनुदान देने के आदेश जारी किए। कोष की आय का उपयोग कल्याणकारी कार्यों की अपेक्षा हिन्दू समाज के विरूद्ध रचे गए षडयन्त्र को अंजाम देने में किया जायगा ऐसा निर्णय लिया गया। इसी बैठक में इस षडयन्त्र को अंजाम देने वाली योजना के परिणामस्वरूप होने वाली हिंसा का विरोध भी हुआ लेकिन उसे दबा दिया गया। 1970 में ही आकलैंड में हुई कार्यशाला में षडयन्त्र को अमलीजामा पहनाने के लिए सूत्र दिया गया “ लोग अपने स्वार्थ से संगठित होते हैं यही पद्धति ही जनसंघर्ष को जन्म देती है।”
इसी षडयन्त्र को अंजाम देने के लिए चर्च ने ऐसे कार्यक्रम और कार्यविधी अपनाने के आदेश दिए जिनका कि नैतिकता,धर्म और आध्यातमिकता से दूर का भी बास्ता नहीं था। प्रभु से प्रेम का पाठ छोड़ कर अपने पड़ोसी को प्रेम के नाम पर भगाने, शांति की जगह हिंसा का उपयोग करने की राजनैतिक भूमिका चर्च ने स्वीकार कर ली। जिसकी पृष्ठ भूमि में चर्च का गरीबों के प्रति प्यार नहीं अपितु चर्च ने अपने अस्तित्व को बनाय रखने के लिए हिन्दू को हिन्दू से लड़वाकर-मरवाकर अपनी ईसाईयत को आगे बढ़ाने का षडयन्त्र रचा जिसे नाम दिया गया सेवा कार्य का।
“भारतीय चर्च एवं उपलब्धियां” नामक पुस्तक के सम्पादकीय में स्वीकार किया गया है “आज यीशु का संदेश घोषित करने के पुराने परंम्परावादी तरीके अर्थहीन हो गए हैं ।इसलिए हम ईसाईत के प्रचार के लिए नये विभाजनाकरी तरीके नए क्षेत्रों में अपना रहे हैं”
II
भारत में जड़ें जमाने के लिए चर्च की नजर इन्दिरा नेहरू-गांधी परिवार पर थी जो कि अपने आप को इस देश में एक राज परिवार के रूप में स्थापित कर चुका था।एक योजनाबद्ध तरीके से एंटोनिया उर्फ सोनिया को इस परिवार में स्थापित (PLANT) किया गया मतलब प्रवेश कराया गया।
चर्च ने अपने लोगों का प्रयोग कर पुराने कांग्रेसी नेताओं को कांग्रेस से अलग कर कांग्रेस का विभाजन करवाया ।इन्दिरा गांधी से “ गरीबी हटाओ ” का नारा चर्च ने दिलवाया अन्ततोगत्वा देश में आपातकाल की घोषणा के पीछे भी चर्च का ही हाथ था।
आपातकाल की आड़ में सारे निर्णय इन्हीं सलाहकारों ने लिए तथा सारा दोषारोपण संजय गाधी तथा वंसीलाल के सिरमढ़ दिया। बाद में संजय गांधी की हत्या करवा दी क्योंकि संजय गांधी एक देश भक्त होने के नाते चर्च की योजनाओं को साकार होने में बाधा उतपन्न कर रहा था।
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3 टिप्पणियां:
चर्च क़ा भारत बिरोधी चेहरा तो बहुत पहले ही उजागर हो गया था देश आज़ादी क़े पश्चात् पं.नेहरु क़ा मध्यप्रदेश आज क़े छत्तीसगढ़ दौरा हुवा तो चर्च ने बिरोध ही नहीं बल्कि ईशयियो ने कला झंडा भी दिखाया ,याद करिए [नियोगी कमीशन ] इसी पर बैठाया गया था जिसकी रिपोर्ट आज भी उपयोगी है .
ये ईशाई बगुला भगत क़े समान है ..................
सुनील दत्त जी,
आपसे पुर्व में बाते भी हुई। हाल ही में पुणें में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक श्री मोहन भागवतजी के देश के प्रती विचार सुनने को मिले। जो व्यक्ती संघशाखामें नियमित रुपसे नही जाते परंतु संघ कार्य के प्रति आस्था तथा हिंदुत्व में श्रद्धा ऱखते है उनके लिए संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। तथा आने वाले समय में संघ द्वारा किए जानेवाली गतिविधियों का, प्रयासों का वर्णन सुना। अत्यंत प्रभावी भाषाशैली में, विनम्र भाव से उन्हों ने अपनी बातें कही। उन्हों ने कहा "संघ एक सांस्कृतिक संगठन है। अपने दायरे में रह कर काम कर रहा है। राष्ट्र निर्माण का काम व्यक्तीगत स्तरपर, सामाजिक स्तरपर तथा राष्ट्र के स्तरपर किया जाता है। संघ व्यक्ती या घर के स्तरपर काम करने के लिए बना है। । ऐसे काम बहुत धीरे से होते है। इसलिए संघ से इससे जादा अपेक्षा करना सही नही है।"
प्रश्नोत्तर के काल में निवृत्त ब्रिगेडियर हेमंत महाजन जी ने पुछा, "आजकल के आतंक वाद, नक्षलवाद तथा कश्मीर घाटी में उत्पन्न परिस्थिती में संघ का क्या रवैया है?" पुछने पर उन्होंनें कहा देश की सुरक्षा तथा अंगरुनी शांती तथआ सुरक्षा का भार सरकार के उप्पर होने के कारण संघ उस पर कुछ सीधे तौर पर कुछ नही कर सकता फिर भी हमारी राय ली जाती है" ऐसा कहा।
पुछने पर की देश में शिक्षा के विषय में, जाती-जनजाती के आधारपर दी जानेवाली आरक्षण की सुविधाओं पर तथा स्कूलों की बड़ी बड़ी फीज,पर संघ की क्या राय है?
उत्तर में उन्होने कहा," हर पार्टी की मानसिकता वोट की राजनिती कराने की होने के कारण आरक्षण का मुद्दा संघ के परिधि के बाहर है। तथा जहां केंद्रीय शिक्षा मंत्री कह रहे हो की फीज के मामले में हम डायरेक्ट एक्शन नही लेना चाहते । हायकोर्ट तथा सर्वोच्च न्यायालय ने भी उसपर अलग राय रखते है तो मैं क्या कर सकता हूँ?"
नई शिक्षा प्रणाली पर जो बहस चल रही है उस पर संघ की क्या राय है?" इस प्रश्न के उत्तर में उन्हों ने कहा ," अभाविप - अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद - संघ की इस कार्यपर बनी उप शाखा ने भारत के ५६ विश्वविद्यालयों मं जाकर अपनी एक सुझाव सुचि बनाई तथा अनेक सुझाव शिक्षा मंत्री के पास विचारार्थ रखे है। सभी प्रस्ताव मंत्रीजीने सोचने के लिए मंत्रालय के प्रभारियों के पास दिये है। देखते है वे अब कृति करते है!"
जब पुछा गया, " संघ अनेक बदलाव लाने के पक्ष में होते हुए भी इतने सालों से संघ का गण वेष चड्डी, चमडे का पट्टा तथा लाठी क्यों? इस पर उन्हों ने कहा, "इस पर जरूर विचार किया गया। संघ का काम करने के लिए किसी भी प्रकार के ड्रेस कोड़ की आवश्यकता नही। मात्र संघ स्थानपर खेलों का आयोजन भी होता है । जैसे खेल के अनुकूल खिलाड़ी चड्डी जैसे वेष पहनते है ते संघ शाखापर चड्डी पहननेपर आपत्ति होनी नही चाहिए। रही बात चमडे की खाल के पट्टे की, हम सहमत है की पशुओं के प्रति भावना रखते हुए आनेवाले समय में उसमें बदलाव किया जा रहा है।"
बहुत बढीया खाने की प्रबंध था । २०० से जादा आमंत्रितगण सोचते हुए कह रहे थे की फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सामायिकता अब क्या रही है?
Shashikant Oak जी हमारे विचार में संघ का एकमात्र काम व्यक्तिनिर्माण का है उसेस अधिक न कुछ था न कुछ है न कुछ होने वाला है।
वर्ना हमारे जैसे लोग अलग रास्ते अपनाने पर क्यों मजबूर होते।
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