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मोदीराज लाओ

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भारत बचाओ

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

समरसता के प्रेरणास्त्रोत हमारे डा. भीमराव अम्बेडकर जी---1





19वीं शताब्दी में अनेक अवतारी महापुरूषों ने भारत की धरती पर जन्म लिया। 14 अप्रैल 1881 का दिन ऐतिहासिक दिन था। इस दिन डा. भीमराव अम्बेडकर जी का जन्म हुआ। वर्षप्रतिपदा 1889 को डा. हैडगेवार जी का जन्म हुआ । 1983 में डा. हेडगेवार जी के जन्मदिन वर्षप्रतिपदा पर समरसता शब्द डा. अम्बेडकर जी की ही देन है। परमपूजनीय गुरूगोविन्द सिंह ने क्रांति का सूत्रपात किया। “सिंह” शब्द नाम ने न्यूनता ग्रंथि से ग्रसित करोंड़ों के समाज को आन्दोलित , प्रेरित करने का यशस्वी प्रयत्न किया।


अवतारीमहापुरूषों का जीवन वाल्यकाल से ही संकटों में गुजरता है जिस प्रकार भगवान राम ,भगवान कृष्ण , स्वामी विवेकानन्द व गुरूगोविन्द सिंह जी का बाल्यकाल संकटों व संघर्षों में गुजरा---डा हेडगेवार जी का वाल्यकाल भी संकटों के दौर से ही गुजरा----डा. हेडगवार जी ने 13 वर्ष की आयु में ही अपने माता-पिता को एक ही चिता में मुखाग्नि देने के बाद सारा जीवन कष्टों व संघर्षों में बिताया।घर में चाय तक पीने के लिए पैसे उपलब्ध नहीं रहते थे।


उसी प्रकार डा. भीमराव अम्बेडकर जी का जीवन भी कष्टों व संघर्षों के लिए ही जाना जाता है। डा भीमराव अम्बेडकर जी ने भी न्यूनता ग्रंथि से ग्रसित करोंड़ों हिन्दूओं को एक नई राह दिखाई वो राह जो उनके अन्दर आत्मविश्वास व आशा का संचार करती थी।


डा. भीम राव जी के एक प्रिय गुरू जी का अन्तिम नाम अम्बेडकर था उन्हीं के नाम पर डा. भीमराव जी का नाम भीम राव अम्बेडकर हुआ। डा. भीमराव अम्बेडकर जी की माता जी का देहांत तो 5वर्ष की आयु में ही हो गया । फिर भी उन्हें अपने पिता जी से घर में ही अच्छे संस्कार मिले। मुम्बई में एक ही कमरे में दोनों रहते थे ।एक सोता था तो एक पढ़ता था इतना छोटा कमरा था वो। आगे चलकर इन्हें केअसकर नाम के व्यक्ति( सज्जन) मिले जिन्होंने इनका परिचय बड़ौदा के महाराजा सहजराव गायकवाड़ जी से करवाया ।गायकवाड़ जी ने इन्हें छात्रवृति लगा दी । गायकवाड़ जी ने अम्बेडकर जी को विदेश भेजा बाद में लन्दन गए। लन्दन में खरीदी पुस्तकें मालबाहक जहाज में भेजने के कारण डूब गईं जिनका मुआवजा 2000 रूपए मिला फिर बड़ौदा गए। Ph. D करने पर बड़ौदा आने के बाद अम्बेडकर जी को तरह तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। जिससे उनके मन में पीड़ा तो हुई पर कभी उनके मन में कटुता पैदा नहीं हुई।


फिर उनके मन में LAW की पढ़ाई करने का विचार आया। कोहलापुर के महाराजा ने उन्हें लंदन भेजा। डा. अम्बेडकर जी ने संस्कृत सीखी ।स्पृश्य-अस्पृश्य क्या है जानने का प्रयत्न किया।वेद, उपनिषद् , भगवद गीता सबका डटकर अध्ययन किया --साहित्य लिखा। डा.अम्बेडकर जी अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि छुआ-छूत मुगलकाल की देन है । हिन्दू धर्म में इसका कोई स्थान नहीं। आर्य-द्रविड़ भेद पैदा करना अंग्रेजों की हिन्दूओं को आपस में लड़वाने की चाल है ऐसा उन्होंने खुद महसूस किया व ये सब उन्होंने लोगों को समझाने का भी प्रयत्न किया। आर्य बाहर से नहीं आए ये डा. अम्बेडकर जी ने कहा।


WHO ARE SHUDRAS में अम्बेडकर जी ने कहा जिस हिन्दू धर्म का ज्ञान इतना श्रेष्ठ है कि उस ज्ञान के प्रभाव से चींटी, सांप, तुलसी मतलब छोटे से चोटे जीव से लेकर पेड़-पौधों तक की पूजा करने वाला हिन्दू, हिन्दू को न छुए ऐसा कैसे हो सकता है ?


उन्होंने सपष्ट कहा कि समस्या धर्म की नहीं समस्या मानसिकता की है खासकर स्वर्ण मानसिकता की जो गुलामी के प्रभाव के कारण विकृत हो चुकी है जिसे बदलने की जरूरत है । यदि स्वर्ण मानसिकता बदलेगी तो हिन्दू समाज बदलेगा ।

                                                                                                  क्रमश:


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