हम भारतीय इतने भोले-भाले हैं कि कोई भी बिदेशी हमारे साथ कुछ चिकनी-चुपड़ी बातें कर हमें धोखा देकर सबकुछ लूट कर ले जाता है और फिर वह अपने संसाधनों के माध्यम से हमें ये समझाने में सफल रहता है कि वो हमारा हितैसी है उसने जो कुछ भी किया वो हमारे भले के लिए किया ।हमारे भोलेपन की चर्मसीमा देखो हम सबकछ लुटाने के बाबजूद उसकी बातों में आकर उसे अपना सर्वस्व देने को तैयार हो जाते हैं और उसके विरूद्ध कोई बात बात करने वाले हमारे वास्तविक हितैसी पर इतना दबाब बना देते हैं कि वो भी उसका समर्थन करने पर बाध्या हो जाता है।आज सेकुलर गिरोह व मिडीया ने हमारी इसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए वो सब सिर्फ कुछ बर्षों में कर डाला जो मुसलिम और ईसाई आक्रमणकारी सैंकड़ों बर्षों में न कर सके थे। आज चुन-चुन हर उस सांस्कृतिक मर्यादा पर हमला बोला जा रहा है जिस पर हर देशभक्त भारतीय को गर्व रहा है।
महाराष्ट्र में बांद्रा और बरली को जोड़ने बाले पुल के दूसरे चरण का उदघाटन मुख्यामन्त्री ने किया जिसमें महारास्ट्र सरकार के बुलाबे पर महानकलाकार अभिताभ बच्चन जी ने भी भाग लिया। इस कार्यक्रम में उनको पूरा मान सम्मान दिया गया जिसके वो हकदार हैं।उन्हें मुख्यामन्त्री के साथ विठाया गया ।दोनों कार्यक्रम के दौरान आत्मीयता से बातचीत करते हुए देखे गए।मिडीया ने इस समाचार को प्रमुखता से दिखाया। सामाचार दिल्ली मतलब एंटोनियो माईनो मारियो उर्फ सोनिया नेहरू के पास पहुंचा उसने महाराष्ट्र की सरकार व मुख्यामन्त्री को अपने विरोधी का इस तरह मान सम्मान करने पर धमकाया। गुलाम कांग्रेस अध्यक्ष ने कह दिया कि पार्टी को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उसमें अभिताभ जी को बुलाया जा रहा है। हद तो तब हो गई जब कार्याक्रम के दौरान अभिताभ जी के साथ अत्मीयता से बातचीत करने वाले गुलाम मुख्यामन्त्री अशोक चौहान जी ने यहां तक कह दिया कि अगर उन्हें पता होता कि इस कार्याक्रम में अभिताभ जी ने आना है तो वो इस कार्यक्रम में सामिल ही नहीं होते। साफ दिख रहा है कि सब के सामने मुख्यमन्त्री जी अपने पद व अपना जलूस निकाल रहे हैं। प्रश्न सिर्फ इतना पैदा होता है कि मुख्यामन्त्री इतना बड़ा झूठ किसके दबाब में वोले रहे हैं और क्यों ?
हम सब जानते हैं कि अशोक जी को मुख्यामन्त्री पद एंटोनियो की चापलुसी करने के बदले प्राप्त हुआ और एंटोनिया के इसारे पर वे कभी भी जा सकता है क्योंकि अधिकतर कांग्रेसी आज भी 1947 से पहले की मानसिकता में ही जी रहे है जब अंग्रेजों का आदेश मानना मजबूरी थी । इसीलिए इस एंटोनिया को खुश करने के लिए अशोक जी इस हद तक गिर गए कि उन्होंने अपना पद बचाने के लिए अपनी सरकार द्वार बुलाए गए अभिताभ जी के मान सम्मान का भी ख्याल तक नहीं रखा । एक गुलाम और कर भी क्या सकता है ?
हम सब जानते हैं कि अभिताभ जी के एंटोनियो से पहले के नहरू परिबार के साथ अच्छे रिस्ते थे। लेकिन एंटोनियो के साथ अभिताभ जी की नहीं बनती।अब असल बात क्या है ये अरूण नहैरू जी व अभिताभ जी ही बता सकते हैं पर फिर भी यह सत्या है कि अभिताभ जी का अपराध उस नलिनी से ज्यादा नहीं हो सकता जिसने राजीब गांधी जी की हत्या की थी। इस बात से भी आप परिचित हैं कि एंटोनिया परिबार ने नलिनी को माफी देने की सक्रियता से बकालत की थी। मिडीया ने इनकी इस करतूत को मानबता की मिसाल बताकर एंटोनिया परिबार को हीरो बनाने की कोशिस की थी। हमारा प्रश्न विलकुल साधारण है कि जो परिबार इतना महान है कि अपने मुखिया का कत्ल करने वाले तक को माप कर सकता है वो भला अभिताभ जैसे ब्यक्ति को जलील करने के लिए इस हद तक कैसे जा सकता है ? हमारे विचार में नफरत और लोभ ही इस एंटोनिया का ट्रेड मार्क है जिसे ईसाईयों के हाथों बिका मिडीया तरह-तरह के कुतर्क देकर त्याग का रूप देकर प्रस्तुत करने का लगातार असफल प्रयास कर रहा है। अब आप सोचेंगे कि जब इनकी सोच इतनी छोटी है तो फिर इस परिबार ने नलिनी को माफी की बात क्यों की इसका उतर जानने के लिए हमारी पुस्तक नकली धर्मनिर्पेक्षता का हिस्सा एंटोनियो के हिन्दुविरोधी षडयन्त्र जरूर पढ़ें। ये बहुत बड़ी भारत विरोधी साजिस है जिसका राजीब जी सिकार हुए।
मिडीया खुद तो गुलामी की मानसिता से ग्रस्त हैं और इस मानसिकता को किस तरह भारतीयों के दिमाग में उतार रहा है उसका एक उधाहरण आपके सामने रख रहा हूं। जब चुनाब प्रचार चल रहा था तो समाचार चैनल आज तक पर आधी सक्रीन पर एंटोनिया को पर्चा भरते हुए दिखाया जा रहा था और आधी पर इंदिरा जी को।साथ में इनके बीच कपड़ों,चलने ,वोलने व सोचने के वीच समानता दिखाने का प्रयत्न किया जा रहा था ।आप और हम जनते हैं कि जींस का असर उन्हीं लोगों पर होता है जो एक दूसरे का साथ खून का रिस्ता रखते हैं पर एंटोनियो व इन्दिरा जी के वीच कोई खून का रिस्ता नहीं था ये उतना ही बड़ा सत्या है जितना ये कि एंटोनियो एक इटालियन विदेशी है जिसे सम्राज्यावादी ताकतों द्वारा यहां योजनबद्ध तरीके से पलांट किया गया है। अधिक जानकारी के लिए राष्ट्रपति जी को सुब्रामनयम स्वामी जी द्वारा सौंपा गया पत्र जरूर पढ़ें।
आपको ये भी जानकारी होगी कि 2004 में चुनाबों के वाद एंटोनियो खुद प्रधानमन्त्री बनना चाहती थी लेकिन राष्ट्रपति जी द्वारा उनको संविधान (सुब्रामनयम स्वामी जी द्वारा राष्ट्रपति जी को सौंपा गया पत्र पढ़ें ) के प्रवधानों व संघ परिवार द्वारा किए जा रहे विरोध को देखते हुए ऐसा सम्भव न होने की सूचना दी और एंटोनियो इस पद से दूर रहने पर मजबूर हो गई लेकिन विदेशी ताकतों के हाथों विके इस मिडीया ने अपने आकाओं के इसारे पर उसे त्याग की देवी के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया ।प्रधानमन्त्री पद को ठोकर मार दी ऐसा मुख्या समाचार बनाया गया। यह झूठ ये गुलाम मिडीया आज तक दोहराह रहा है। अगर ये एंटोनिया इतनी ही त्याग की देवी थी तो 1998 में खुद प्रधानमंत्री बनने के लिए अपने पास 272 सांसदों का समर्थन होने का झूठा दावा करके क्यों आई थी जिसका पर्दाफास तब हो गया था जब राष्ट्रपति जी ने सूची मांगी और ये सिर्फ 237 सांसदों की सूची दे पायी ।
आगे चलकर इस विदेशी एंटोनिया की असलियत तब भी सामने आई जब दो लाभ के पदों पर होने की बजह से इसे एक पद छोड़ना पड़ा। असलियत तब भी उजागर हुई जब नटबर सिंह जी ने इस बात का पर्दाफास किया कि अनाज के बदले तेल कार्यक्रम में पैसा एंटोनिया ने खाया था जिसके लिए एंटोनिया ने सदाम हुसैन को वाकायदा एक पत्र लिखा था। ध्यान रहे ये कार्यक्रम इराक में मर रहे मुलमानों के बच्चों को बचाने के लिए चलाया जा रहा था। अरे जो एंटोनिया वहां से पैसा लूट सकती है तो वो और क्या छोड़ेगी। इस विदेशी के लूटेरे होने का प्रमाण तब भी मिला जब उसने कानूनमंत्री हंसराज भारद्वाज जी को अपने इटालियन हमबतन व बोफोर्श कांड के मुख्या अभियुकत के पैसे जो भारत सरकार द्वारा जब्त करवाय गए थे को छुड़वाने लिए विशेष रूप से लंदन भेजा । बाद में इस अभियुक्त जो भारतीयों की निगाह में राजीब जी का कत्ल करने का संदिगध भी है ,पर चल रहे सारे केस समाप्त करवा दिए।
जरा सोचो जिस डकैत का पर्दाफास कई-कई बार हो चुका हो वो बचा कैसे ठीक बैसे ही जैसे भारत पर हमला करवाने वाले संजय दत्त, अबु हाजमी, अफजल जैसे लोग बचाए जा रहे हैं ।इसीलिए तो कहा गया है कि चोर-चोर मौसेरे भाई । जब सता ही देशविरोधियों के हाथों में हो तो फिर गद्दारों का कोई क्या विगाड़ सकता है। कहते हैं कि जब सईयां भए कोतवाल तो फिर डर काहे का।
आप कह सकते हैं कि फिर जनता क्यों ऐसे गद्दारों को चुनती है वजह साफ है आज का ये गुलाम मिडीया भारतीयों के हित की बात भारतीयों तक पहुंचने ही नहीं देता ।इन सब मुद्दों को भारत-विरोधियों के हाथों विक चुके इस मिडीया ने दबा दिया । जरा सोचो कि जिस तरह बार-बार गुजरात में हुई हिंसा की बात की जाती है वो भी सिर्फ एक सांप्रदाए के पक्ष को रखने के लिए ठीक उसी तरह कशमीर में हुई बर्बर हिंसा की बात क्यों नहीं की जाती। जिस तरह बार-बार कंधार मामले को ठाकर अडवानी जी को निशाना बनाया जाता है ठीक उसी तरह बार-बार क्वात्रोची, अनाज के बदले तेल घूसकांड, विदेशी मूल,दो लाभ के पद,राष्ट्रपति के सामने प्रधन्मन्त्री बनने के लिए झूठे आंकड़े देने , को उठाकर एंटोनिया की असलियत जनता के सामने क्यों नहीं रखी जाती ? सिर्फ इसलिए कि भारतीय संस्कृति को बदनाम कर समाप्त करने के जिस षडयन्त्र के लिए इस विदेशी को भारतविरोदियों द्वारा यहां पलांट किया गया है उस षडयन्त्र में खुद मिडीया के मालिक सामिल हैं।
जिस समाज में अपनों का मान सम्मान करने के स्थान पर उनके हर कार्या पर अंगुली उठाने की आदत होती है वो समाज अक्सर इस भ्रम का सिकार हो जाता है कि अपने अच्छे नहीं विदेशी अच्छे हैं,अपने उतत्पादन अच्छे नहीं विदेशीयों के अच्छे हैं,अपना देश अच्छा नही विदेश अच्छा है अपना धर्म और संस्कृति अच्ची नहीं विदेशीयों की अच्छी है । जो समाज इस भ्रम का सिकार होता है वो अक्सर गुलाम रहता है। यही वजह है कि भारतीयों को जो आंसिक आजादी 1947 में मिली उसे 2004 में बौद्धिक गुलाम भारतीयों ने अपने हाथों एक विदेशी एंटोनियो माइनो मारियो के हवाले कर दिया। गुलमों के साथ कैसा सलूक होता है आप खुद महसूस कर सकते हैं....
3 टिप्पणियां:
विचारणीय......पोस्ट......
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यह पोस्ट केवल सफल ब्लॉगर ही पढ़ें...नए ब्लॉगर को यह धरोहर बाद में काम आएगा...
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_25.html
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से....
हो सकता है मुख्यमंत्री को वाकई जानकारी न रही हो. जिस तरह से पाकिस्तानी आतंकवादी मुम्बई में घुस आते है इस बात पर भरोसा किया जा सकता है मुख्यमंत्री को कोई भी जानकारी नहीं रहती होगी.
अशोक चव्हाण को 23 मार्च टाइम्स आफ इंडिया मुम्बई में पेज 21 पर मुम्बई सरकार द्वारा दिया विज्ञापन पढना चाहिये जिसमें मुम्बईकर को बताया गया है कि पुल के समारोह में अमित मुख्य अतिथि होंगे..
लेकिन क्या मुख्यमंत्री को पढना आता भी है? शायद नहीं आता होगा
बात सही है. यहाँ गुलामी तो शुरू से एक ही राज परिवार की हो रही है.
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