धर्मनिर्पेक्ष आतंकवादियों द्वारा रचे जा रहे हिन्दूविरोधी-देशविरोधी षडयन्त्रों को उजागर करने की कोशिश। हमारा मानना है कि भारत में कानून सांप्रदाय,जाति,भाषा,क्षेत्र,लिंग अधारित न बनाकर भारतीयों के लिए बनाए जाने चाहिए । अब वक्त आ गया है कि हिन्दूमिटाओ-हिन्दूभगाओ अभियान चलाने वाले भारतविरोधी धर्मनिर्पेक्ष आतंकवादियों को उनके समर्थकों सहित खत्म करने के लिए सब देशभक्तों द्वारा एकजुट होकर निर्णायक अभियान चलाया जाए।
बुधवार, 17 फ़रवरी 2010
धर्म के आधार पर आरक्षण कांग्रेस की हिन्दुविरोधी-देशविरोधी मानसिकता का एक और प्रमाण
1857 का स्वतन्त्रता संग्राम एक एक ऐसी घटना थी जिसने अंग्रेजों को इतना डरा दिया कि उन्हें हर पल भारत में क्राँति की नइ सम्भावनायें दिखाइ देने लगी ।उन्हें लगा कि अब भारत को गुलाम बनाए रखना उनके बस की बात नहीं। क्योंकि यहां के लोग महरानी लक्ष्मीवाई,मंगलपांडे जैसे क्रांतिकारियों की आत्मा की आवाज को समझकर अपने आप को मातृभूमि को आजाद करवाने के लिए बलिदान करने की राह पर निकलने लगे हैं। बस इसी डर ने उन्हें भारत में एक एसा दल त्यार करने पर बाद्य किया जो देखने में हिन्दुस्थानियों का लगे लेकिन बफादार अंग्रेजों के प्रति रहे।
1885 में ऐ ओ हयूम के नेतृत्व में अंग्रेजों के स्वपनों को भारत में साकार करने के लिए कांग्रेस की स्थापना की गई। 1885 से आज तक कुछ अपबादों को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस भारत में अंग्रेजियत के प्रचार-प्रसार व हिन्दूत्व के विरोध का सबसे बड़ा अधार सत्मभ है। यही वो दल है जिसने 1947 में गोरे अंग्रेजों के चले जाने के बाद भी आज तक कभी भारतीयों को आजादी का एहसास नहीं होने दिया। इसी दल की कढ़ी मेहनत और दृड़ निस्चय के परिणाम स्वरूप आज सब भारतीय जात-पात, सांप्रदाय, भाषा, क्षेत्र के नाम पर एक दूसरे का खून बहा रहे हैं। जब कभी भी इस दल को लगता है कि देश में शांति-एकता और भाई-चारे का दौर शूरू हो रहा है तो ये दल अपनी फूट डालो और राज करो की निति में से कोई न्या तीर चलाकर एसी आग लगाता है जिसकी तपस बर्षों तक हिन्दुस्थानियों को जलाती रहती है।
इसी फूट डालो और राज करो की निति के परिणामस्वरूप 1947 में भारत का विभाजन हो गया। दो हिस्से मुसलमानों के लिए एक हिस्सा हिन्दुओं के लिए। विभाजन की भूमिका त्यार की अंग्रेजों ने कांग्रेसियों के साथ मिलकर ।जिसे सिरे चढ़ाया पुराने कांग्रेसी मुहम्द अली जिन्ना ने 1946 में मुसलमानों को हिन्दूओं के विरूद्ध सीधी कार्यवाही का आदेश देकर। जिसके परिणाम स्वरूप मुसलमानों ने सारे देश में हिन्दूओं पर हमले शुरू कर दिए सारा देश हिन्दूओं की कब्रगाह बनने लगा धारे-धीरे हिन्दूओं को समझ आने तगा कि अगर बचना है तो मुकाबला करना पड़ेगा । धीरे-धारे हिन्दूओं ने अपने आप को संगठित कर मुसलिम जिहादियों का मुकाबला करना शुरू किया । जैसे ही हिन्दूओं ने मुसलिम जिहादियों को उन्हीं की भाषा में जबाब देना शुरू किया तो कांग्रेसियों से बर्दास नहीं हुआ और कांग्रेसियों के नेता ने मुसलिम जिहादियों को बचाने के लिए अनसन शुरू कर दिया। बेचारे बौद्धिक गुलाम हिन्दु कांग्रेसियों के बनाए मकड़जाल में ऐसो फंसे कि आज तक निकल न पाये।
मुसलमानों ने एकजुट होकर सारे पाकिस्तान से हिन्दू-सिखों का लगभग नमोनिसान मिटा दिया ।जो गिने-चुने रह गए उनका कत्लयाम आज तक जारी है।बर्तमान भारत से भी मुसलमान धीरे-धीरे पाकिसस्तान जा रहे थे तभी कांग्रेसियों ने हिन्दूओं को लहूलुहान करने के लिए एक और चाल चली और मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से रोक दिया। जिहादियों के रणनितीकार तो पहले ही त्यार बैठे थे अपने जिहादी बीज का कुछ हिस्सा बर्तमान भारत में छोड़ देने के लिए ताकि बचे खुचे भारत को भी लगातार तहुलुहान करने के बाद हिन्दूविहीन कर दिया जाए।
1947 में भारत विभाजन के बाद मुसलिम जिहादियों की एकमात्र नीति रही अधिक से अधिक बच्चे पैदा कर भारत में अपनी जनशंख्या बढ़ाना व अलगावबाद की भावना जागृत रखना । इन उदेश्यों की पूर्ति के लिए ही जिहादियों ने हमेशा परिबार नियोजन व बन्देमातरम् का बार-बार विरोध किया । उन की इस रणनिती को सफल बनाने के लिए कांग्रेसियों ने उन्हें न केबल लोजिसटिक सहायता उपलब्ध करबाइ बल्कि उनकी अलगावबादी नीतियों को सहारा देने के लिए हर तरह के कानून बनाए। मतलब अंग्रेजों द्वारा सौंपी गई भूमिका को कांग्रेस आज तक निभाती चली आ रही है।
अब आप समझ सकते हैं कि क्यों कांग्रेस मुसलमानों व इसाईयों को धर्म के आधार पर आरक्षण की बात कर रही है। कांग्रेस का 1885 से आज तक जो उदेश्य सपष्ट दिखता है वो है हिन्दुविरोध-देशविरोध वोले तो गद्दारी। बरना हर कोई जानता है कि अंग्रेजों और इसाईयों को आरक्षण देने की बात तो केबल गद्दार हिन्दुविरोधी ही कर सकते हैं की देशभक्त नहीं। आओ जरा विचार करें कि मुसलमानों और इसाइयों को आरक्षण क्यों नहीं मिलना चाहिए ।
संविधान धर्म(सांप्रदाए) के आधार पर आरक्षण की इजाजत नहीं देता। क्योंकि धर्म के आधार पर फूट डालो और राज करो की नितीयों के परिणामस्वरूप ही भारत का एक से अधिक बार विभाजन(अफगानीस्तान,पाकिस्तान,बंगलादेश) हो चुका है। आज कोइ भी विवेकशील ब्यक्ति इस आग से खेलने का दुहसाहस नहीं कर सकता। एसा केबल गद्दार ही कर सकते हैं। जो लोग कह रहे हैं कि संविधान की इस पंक्ति को हटा देना चाहिए उन्हें समझना चाहिए कि अगर ये पंक्ति हटानी ही है तो देश की 100% नौकरियां हिन्दूओं के लिए आरक्षित कर देनी चाहिए।
मुसमानों और इसाईयों ने हिन्दुओं को लगभग 1000 वर्ष तक गुलाम बनाकर रखा। इस दौरान मुसलमानों व इसाइयों ने हिन्दूओं पर अनगिनत जुल्म ढाए। हिन्दुओं के आस्थास्थल मन्दिर गिराए। मां-बहन-बेटियों की इज्जत से खिलबाड़ किया। नौकरियों पर हर तरह से पहला अधिकार मुसलमानों व इसाईयों को दिया गया ।हिन्दुओं के साथ जानबरों से भी बदतर बरताव किया गया।इन ईसाईयों और मुसलमानों को आरक्षण देना न हिन्दूओं की हैसियत है न इन्हें आरक्षण की जरूरत है। बैसे भी कोई गुलाम(हिन्दू) अपने सासक (मुसलमान और इसाइ ) को आरक्षण देने की हैसियत कहां रखता है।
मुसलमानों ने तो न केबल हिन्दुओं को गुलाम बनाकर रखा बल्कि अखण्ड भारत के चार टुकड़े कर तीन पर अपना 100% कब्जा कर लिया। जब भारत के बाकी तीन हिस्सों अफगानिस्तान,पाकिस्तानव बंगलादेश में मुसलमानों को 100% आरक्षण प्राप्त है तो फिर भारत में 100% आरक्षण हिन्दूओं को क्यों नहीं।
जो इसाइ आज भी धन-बल के जोर पर हिन्दूओं को धर्मपरिबर्तन करने पर बाध्य कर रहे हैं उन इसाइयों को आरक्षण कैसा। आज भी देश के अधिकतर शिक्षण संस्थान जिनमें भारत के अधिकतर प्रभावशाली लोगों के बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं ईसाईयों के खब्जे में हैं। जो इसाइ आज भी देश के हर बड़े पद पर विराजमान हैं उन्हें आरक्षण की क्या जरूरत।
आज जब भारत सरकार एक इसाई एंटोनिये माइनो मारियो की गुलाम है देश का रक्षामन्त्री एक इसाइ है। एंटोनियों के सब के सब सलाहकार या तो इसाइ हैं या फिर मुसलमान । ऐसे में मुसलमानों और इसाईयों को आरक्षण की बात करना हिन्दुविरोध- देशविरोध के सिवा और कुछ नहीं ।
कुछ लोग ये तर्क देते हैं कि ये इसाइ और मुसलमान वो नहीं जिन्होंने हिन्दुओं को गुलाम बनाया था ये तो हिन्दुओं से ही इसाइ व मुसलमान बने हैं । प्रशन पैदा होता है कि ये मुसलमान और ईसाई इसलिए बने ताकि इन्हें गरीवी व छुआछूत से छुटकारा मिल सके जो कि नहीं मिल सका फिर तो इन्हें बापस हिन्दु बन जाना चाहिए क्योंकि जिस उद्देशय को लेकर ये धर्मभ्रष्ट हुए बो उदेशय ही पूरा नहीं हुआ। कम से कम धर्म का पालन तो करें और आरक्षण का फायदा भी लें । बैसे भी संस्सार का एकमात्र मानब धर्म हिन्दुधर्म ही तो है बाकी सब तो राजनितीक विचारधारायें हैं आज नहीं तो कल विलुप्त हो जांयेंगी।
जो मुसलमान बन्देमातरम् का विरोध कर रहे हैं वो राष्ट्रवाद के हर पैमाने से गद्दार हैं अत: गद्दारों को आरक्षण की बात गद्दार ही कर सकते हैं देशभक्त नहीं। इसे समय का न्याय ही कहेंगे कि जो लोग आईबीएन7 पर वन्देमातरम् का विरोध कर रहे थे वो ही आरक्षण की मांग भी उठा रहे थे। मतलब आप समझ सकते हैं।
रही बात गरीवी की तो इस संसार में हिन्दूओं से ज्यादा गरीब और बदनसीब कौन है जिनके देश पर मुसलमानों और इसाइयों ने कब्जा कर लिया और वो वेचारा कुछ न कर सका। हिन्दुओं के देश को मुसलमानों ने चार हिस्सों में बांट कर उनमें से तीन पर अपना कब्जा जमाकर हिन्दू को वहां से निकाल दिया। अब उसे चौथे हिस्से से निकालने की त्यारी चल रही है। पांच लाख से अधिक हिन्दू तो अकेले कशमीर घाटी से बेघर कर दिए गए बचारा हिन्दू कुछ न कर सका ।मां-बहन बेटियों की इज्जत तार-तार की की गई बेचारा हिन्दू कुछ न कर सका नबालिग बच्चों को हलाला कर दिया गया बेचारा हिन्दू कुछ सका। न्याय की बात तो दूर कोइ दुनिया में सन्तावना तक देने वाला कोई नहीं । अगर बास्तब में मुसलमान गरीब होते तो वो परिबार नियोजन का विरोध नहीं करते ।देशभर में बम्मविस्फोट कर हिन्दुओं का खून नहीं बहाते। अगर इसाइ गरीब होते तो वो बड़ी शिक्षण संस्थाओं व सेवा के नाम पर प्रलोभन देकर हिन्दूओं को धर्मपरिबर्तन कर इसाई बनने पर बाध्या नहीं करते। बास्तब में अगर कोई गरीब है तो वह हिन्दु है । लेकिन हिन्दू की बदनशीवी यह है कि उसकी गरीवी पर कोइ ध्यान देने बाला नहीं उल्टा ये गद्दार उसे और गरीव दीन हीन बनाने पर तुले हैं।
रही बात अल्पसंख्यक होने की तो दुनिया में अगर कोई अल्पसंख्यक है तो वो हिन्दू है । अगर अकेले देश की बात की जाए तो दुनिया के लगभग 200 देशों में हिन्दू अलपसंख्यक है बताओ जरा कितने देशों में हिन्दूओं को विसेषा अधिकार प्राप्त हैं या आरक्षण प्राप्त है आरक्षण या विशेषा अधिकार तो दूर समान अधिकार तक प्राप्त नहीं हैं।
अन्त में हम तो यही कहेंगे कि जो भी भारत के नागरिक हैं और देश के प्रति बफादार हैं उन्हें वो सब अधिकार मिलने चाहिए जो भारतीय नागरिक को प्राप्त हैं लेकिन धर्म के आधार पर किसी को भी कोई विशेषाधिकार नहीं देना चाहिए ।इसी में हम सब का भला है।
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