Pages

मोदीराज लाओ

मोदीराज लाओ
भारत बचाओ

रविवार, 15 अगस्त 2010

जब लोग अपनों की लाशों के ढेर पर बैठकर खुशियां मनायें ,मुबारकवाद दें तो भला कोई क्या जबाब दे?





इन्सान जिन्दगी में अक्सर ऐसे पलों से गुजरते हैं जिन्हें भूलकर भी भुलाया नहीं जा सकता।


भारत जिस पर पहला मुसलिम आतंकवादी हमला सातवीं सताब्दी में तब हुआ जब पहला मुसलिम आतंकवादी मुहमम्दविन कासिम भारत में अरब देशों से प्रवेश किया।



तब से लेकर आज तक मुसलिम आतंकवादियों ने पीढ़ी दर पीढ़ी पीछे मुढ़कर नहीं देखा । एक के वाद एक हिन्दूओं के नरसंहारों को अन्जाम दिया । हिन्दूओं की मां-बहन-बहु-बेटियों की इज्जत-आबरू से खिलवाड़ किया सो अलग।






मुसलमानों द्वारा किए गए हिन्दूओं के इतने कतलोगारद के बाबजूद भी कभी हिन्दूओं ने मुसलिम आतंकवादियों के विरूद्ध खुले युद्ध की घोषणा कर आक्रमणकारी इस्लाम को भारत से उखाड़ फैंकने की कसम नहीं उठाई ।


उल्टा आक्रमणकारी मुसलामन भारत के जिस हिस्से में भी 35 प्रतिशत से अधिक हो गए उस हिस्से से इन आतंकवादी मुसलमानों ने हिन्दूओं का नमोनिशान मिटा दिया।


हद तो तब हो गई जब 1946 में लगभग 15% मुसलामानों ने जिहादी आतंकवादी जिन्ना के नेतृत्व में हिन्दूओं के विरूद्ध खुले युद्ध की घोषणा कर डाली ।


जिसे नाम दिया गया DIRECT ACTION। जिसकी घोषणा होते ही कलकता में मुसलमानों ने 5000 हिन्दूओं का कत्ल कर एक बड़े क्षेत्र को हिन्दूविहीन किया उसके बाद बंगाल के ही नौखली नामक स्थन पर इससे बड़े पैमाने पर हिन्दूओं का कत्लयाम मुसलमानों द्वारा किया गया ।


जिसके बाद मुसलिम आतंकवादियों


 के सबसे बड़े हमदर्द मोहनदासकर्मचन्द गांधी को भी कहना पड़ा “ मुसलिम अत्याचारी राक्षस हैं व हिन्दू कायर” ।



ये आतंकवीदियों का हमदर्द भूल गया कि हिन्दूओं के इन नरसंहारों के लिए मुसलिम आतंकवादियों से ज्यादा जिम्मेदार नेहरू

व खुद गांधी जैसे मुसलिम आतंकवादियों के मददगार व हिन्दू एकता के विरोधी हैं जिन्होंने क्रांतिकारियों व हिन्दू संगठनों की हर उस कोशिश को अडंगा लगाया जिसमें देशभक्तों को गद्दारों के विरूद्ध संगठित करने की कोशिश की गई ।


परिणामस्वारूप गद्दार तो मस्जिदों व मदरसों के माध्यम से देशभक्तों के विरूद्ध युद्ध की तैयारी करते रहे लेकिन हिन्दू संगठनों द्वारा देशभक्तों को संगठित करने के लिए देशहित में उठाए गए किसी भी कदम को इन मुसलिम आतंकवादियों के समर्थकों ने देश के विरूद्ध बताकर मुसलिम आतंकवादियों को हिन्दूओं का एकतरफा नरसंहार अंजाम देने का खुला नयौता दे दिया।


क्योंकि हिन्दू किसी भी तरह से इन मुसलिम आतंकवादियों से लड़ने के लिए न तो तैयार थे न उन्हें ऐसी उम्मीद थी कि मुसलमान राक्षसों की तरह हिन्दूओं का कत्लयाम कर हिन्दूओं की मां-बहन-बहू-बेटियों को अपवित्र करने के लिए बैहसी जानवरों की तरह टूट पड़ेंगे।


ऐसा नहीं कि हिन्दूओं के साथ मुसलमानों ने ये राक्षसी व्यवहार पहलीबार किया हो लेकिन हिन्दूओं के अन्दर अपने जयचन्दों ने हमेशा मुलमानों से पड़ने वाले टुकड़ों के बदले अपने हिन्दू भाईओं को मुसलमानों के बारे में गलत जानकारी दी कि मुसलमान भी हिन्दूओं की तरह इन्सान हैं राक्षस नहीं।


लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी मुसलमानों को मौका मिला मुसलमानों ने सिद्ध कर दिया कि इस्लाम शैतानों और राक्षसों के समूह का दूसरा नाम है।


इस तहर 1946 में जिन्ना द्वारा DIRECT ACTION की घोषणा के साथ कलकता में 5000 निर्दोश निरीह हिन्दूओं का कत्ल कर जो हिन्दूओं का कत्लयाम शरू हुआ उसमें लाखों हिन्दूओं का कत्ल कर लाखों मां-बहन-बहू-बेटियों को अपवित्र किया गया।


जिसका परिणाम हुआ 14-15 अगस्त 1947 को भारत का तीन हिस्सों में विभाजन । आज के हालात में इसका सीधा सा उधारण है कशमीरघाटी जहां 60000 हिन्दूओं को कत्ल कर 500000 हिन्दूओं को वेघर कर आए दिन सैनिकों पर हमले किए जा रहे हैं।


हमें तो हैरानी होती है उन बौद्धिक गुलाम हिन्दूओं पर जो मुसलिम हिंसा के शिकार हुए लगभग 10000000 अपनों की लाशों व यातनाओं पर बैठकर इस दिन को स्वतन्त्रता दिवस कहकर संबोधित करते हैं व एक दूसरे को कत्लोगारत के इस दिन पर बधाईयों देते हैं।


वैसे भी शहीद भगत सिंह जी ने 23 वर्ष की आयु में अपनी कुर्बानी इसलिए दी थी ताकि शासन विदेशी इसाईयों से लेकर अपनी भारत मां की सन्तानों के हाथों में दिया जा सके लेकिन क्या आज देश आजाद है?
 आज भी तो बौद्धिक गुलाम हिन्दूओं की मूर्खता व कायरता की बजह से देश का प्रधानमंत्री एक विदेशी इटालियन अंग्रेज एंटोनिया का गुलाम है व देश को जिस मुसलिम आतंकवाद से छुटकारा दिलवाने के लिए नेहरू-गांधी ने देश का विभाजन स्वीकार किया आज देश का हर कोना उसी मुसलिम आतंकवाद का शिकार है।



भारत की आजादी तब तक अधूरी है जब तक हर आक्रमणकारी को देश से बाहर खदेड़ कर देश के हर कोने से आक्रमणकारियों की हर निशानी को तहश नहस नहीं कर दिया जाता


आओ आज के दिन देश को आक्रमणकारियों व उनकी कलंकित निशानियों से मुक्त करवाने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने का बीड़ा उठायें ..............


याद रखो


उस कौम का इतिहास नहीं होता जिसे मिटने का एहसास नहीं होता


एक जुट होकर मिलजुलकर कदम उठाओ ऐ हिन्दूओं


वरना तुम्हारी दास्तां तक न होगी दास्तानों में.......














3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
--
वन्दे मातरम्!

Unknown ने कहा…

डाकू, चोर, लुटेरे बैठे, संसद और सरकारों में।
आजादी पूँजीपतियों को, आजादी सामन्तवाद को,
आजादी ऊँची-खटियों को, आजादी आतंकवाद को,

सूबेदार ने कहा…

जब लाल किले पर पं.जवाहर लाल नेहरु तिरंगा फहरा रहे थे उस समय तक २० लाख हिन्दू मारा जा चुका था और हम खुसिया मानाने में ब्यस्त थे हिन्दुओ क़े रहने क़े स्थ्सं नहीं था वे जहा तह शरण लिए थे कुछ मस्जिदों में थे उन्हें बल पूर्बक निकाला गया ,बड़े दुःख की बात है कि आज प्रधान मंत्री ने अपने भाषण में एक बे भी किसी क्रन्तिकारी क़ा नाम नहीं लिया जैसे भगत सिंह, आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, वीर साबरकर, मालबिया जी इत्यादि क़ा कोई योगदान था ही नहीं केवल एक ही परिवार क़ा वर्णन करते रहे ,आज देश को पता नहीं है कि क्या था १५ अगस्त केवल सरकारी उत्त्सव बनकर रह गया है आम जानता से कोई मतलब नहीं है .
भारत क़े सामने केवल एक ही बिकल्प है वह है हिन्दू जागरण.