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मोदीराज लाओ

मोदीराज लाओ
भारत बचाओ

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

मनमोहन जो भी कमात है एंटोनिया डायन खाए जात है...


हमने ये शीर्षक कोई सनसनी पैदा करने के लिए नहीं वल्कि एक असलियत को सबके सामने रखने के लिए दिया है।इस बात में कोई सन्देह नहीं कि मनमोहन सिंह एक इमानदार अर्थसास्त्री हैं तो फिर क्या बजह है कि उनके सब प्रयत्नों के बाबजूद मंहगाई और भ्रष्टाचार भसमासुर की तरह आगे बढ़ते ही जा रहे हैं। बजह एक ही है कि जितने इमादार मनमोहन सिंह जी हैं उससे कहीं अधिक भ्रष्ट बईमान व कमीनी एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी है। परिणामस्वारूप जितनी इमानदारी से मनमोहन सिंह सरकार चलाना चाहते हैं उससे कहीं अधिक बईमानी की मांग एंटोनिया की जरूरतें करती हैं। पहले तो ये एंटोनिया सिर्फ अपने मित्र क्वात्रोची के लिए ही मनमोहन से गलत काम करवाती थी अब तो इस डकैत ने अपनी बहनों व अन्य रिस्तेदारों के लिए भी मनमोहन से काम करवाना शुरू कर दिया है। वेचारा मनमोहन प्रधानमन्त्री की कुर्सी के लालच में एंटोनिया के बिछाए जाल में इस हद तक उलझ चुका है कि अब सबकुछ वेसर्मी से सहन करने को मजबूर है।


आप और हम जिस मनमोहन से परिचित हैं उस मनमोन को तो सरकार बचाने के लिए विपक्ष के सांसदों को दिए गए धन का मामला सामने आने के बाद ही इसतीफा दे देना चाहिए था लेकि ऐसा नहीं हुआ वल्कि उसके बाद मनमोहन को इस गंदगी का मानो मजा आने लगा। हद तो तब हो गई जब CWG घोटाले में PMO का नाम सामने आया ।लेकिन नहीं मनमोहन के कान पर जूं तक न रेंगी । मनमोहन की वेशर्मी कह लो या लाचारी का सबसे बढ़ा प्रमाण तब सामने आया जब 2G spectrum घोटाले में माननीय न्यायालय ने मनमोहनखान की वेशर्मी की जमकर खिंचाई की पर फिर भी इस लाचार और गुलाम प्रधानमन्त्री ने इसतीफा देकर अपनी रही सही छवि बचाने की कतई कोशिस नहीं की। अब तो माननीय न्यायालय ने भ्रष्ट थामस को CVC बनाने पर भी इस गुलाम प्रधानमन्त्री की कलास लगा डाली लेकिन फिर भी ये जनाब टस से मस नहीं हुए। मन ही मन कह रहे होंगे हम जो भी कमात हैं सब एंटोनिया डायन खाए जात है....


सोमवार, 29 नवंबर 2010

आन्ध्र प्रदेश में उठा तुफान कुछ कहता है।


आप सब जानते हैं कि हम YSR रेड्डी के कतई प्रशंसक नहीं। कारण भी साफ है एक तो उन्होंने हिन्दू मत त्याग कर इसाई मत स्वीकार कर अपनी मौकापरसत सोच का प्रमाण दिया । दूसरे ईसाई हो जाने के बाद उन्होंने कई हिन्दूविरोधी-देशविरोधी कदम उठाए।


जिसके परिमामस्वारूप वो हिन्दूविरोधी-देशविरोधी विदेशी ताकतों को एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी से अधिक उपयोगी नजर आने लगे । क्योंकि चर्च ने ऐसे ही हिन्दूविरोधी-देशविरोधी कामों को करवाने के लिए एंटोनिया को चुना था लेकिन अब चर्च को लगने लगा कि एक विदेशी इसाई से भारतीय इसाई चर्च के भारतविरोधी कामों को अन्जाम देने के लिए जयादा उपयोगी है। लेकिन एंटोनिया जो कभी चर्च की कठपुतली मात्र थी अब एक दमदार खिलाड़ी बन चुकी है। YSR रेड्डी के तातकवर होने का खमियाजा उन्हें अपने प्राण देकर उठाना पड़ा। कुल मिलाकर जब आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई. एस. राजशेखर रेड्डी के पुत्र और कांग्रेसी सांसद जगनमोहन रेड्डी ये आरोप लगाते हैं कि उनके पिता का कत्ल करवाया गया तो उनकी बात में न केबल दम नजरआता है वल्कि उनकी बात ही सच्चाई प्रतीत होती है। वाई. एस. राजशेखर रेड्डी जी का कत्ल इससे पहले कत्ल किए गए 6-6 भारतीयों के कत्ल के समान प्रतीत होता है।(अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें )


हम वंसबाद के कट्टर विरोधी हैं । लेकिन जब कांग्रेस में वंशवाद के अधार पर ही उतराधिकारी तय किए जाते हैं तो फिर जगनमोहन रेड्डी के साथ ये वेइनसाफी क्यों? अगर वाई. एस. राजशेखर रेड्डी जी की मौत एक दुर्घटना होती तो कोई भी इस तरह जगनमोहन रेड्डी के रास्ते में रोड़े नहीं अटकाता जिस तरह अटकाए जा रहे हैं। आज आप हम सभी जानते हैं कि कांग्रेस में एंटोनिया के सिवाए किसी और में दम नहीं कि वो परिवारिक उतराधिकारियों के रास्ते में रोड़े अटका सके क्यों ऐसे किसी भी कदम को जोकर राहुल का विरोध माना जाएगा ।


अब प्रश्न यह उठता है कि एंटोनिया क्यों जगनमोहन रेड्डी के रास्ते में रोड़े अटका रहीं है?


चलो कारण कोई भी हो पर एक बात पक्की है कि जगमोहन में दम है विरोध करने व अपने हक की लड़ाई लड़ने का। हमें ये जानकर बहुत खुशी हुई कि जगनमोहन रेड्डी ने एंटोनिया व राहुल की वो सच्चाई जनता के सामने रखी जिन्हें वाकी डरपोक हिन्दूविरोधी-देशविरोधी चैनल रखने के वारे में सोच तक नहीं सकते। इस नाते जगनमोहन रेड्डी बधाई व शुभकामनाओं के पात्र हैं। वेशक उनके पिता ने कुछ हिन्दूविरोधी-देशविरोधी कदम उठाए थे लेकिन कुलमिलाकर उनके पिता एक अच्छे इनसान थे।भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे । हम भगवान से यही प्रार्थना करेंगे कि अगर जगनमोहन रेड्डी की लड़ाई देशहित की लड़ाई है तो उन्हें जरूर सफलता मिले वरना जो भगवान करेंगे सही ही करेंगे।






रविवार, 28 नवंबर 2010

एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी एक परिचय




सोनिया गांधी का वास्तविक नाम एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो है। एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो का जन्म 9 दिसम्बर 1946 को इटली के कौंटरा मैनी नामक स्थान पर हुआ। कौंटरा मैनी इटली के बैनीटो क्षेत्र के बीसंजा से 30 कि.मी. की दूरी पर लुसियाना शहर के पास है। एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो के पिता का नाम मिस्टर सटीफैनो था । सटीफैनो फासीवादी सैनिक थे। इनकी माता का नाम पाओला माईनो था। एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो की परवरिश एक कैथोलिक परिवार में टुरिन नाम के कस्वे के पास औरवेशानो में हुई। एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो की पढ़ाई-लिखाई कैथोलिक स्कूल में हुई।


आगे हम खुद न लिखकर मेल से प्राप्त जानकारी आप तक पहुंचा रहे हैं आशा है कि ये जानकारी आपको भी इस विदेशी के कुछ रहसयों से अबगत करवाएगी।


सोनिया गाँधी भारत की प्रधानमंत्री बनने के योग्य हैं या नहीं, इस प्रश्न का "धर्मनिरपेक्षता", या "हिन्दू राष्ट्रवाद" या "भारत की बहुलवादी संस्कृति" से कोई लेना-देना नहीं है। इसका पूरी तरह से नाता इस बात से है कि उनका जन्म इटली में हुआ, लेकिन यही एक बात नहीं है, सबसे पहली बात तो यह कि देश के सबसे महत्वपूर्ण पद पर आसीन कराने के लिये कैसे उन पर भरोसा किया जाये। सन १९९८ में एक रैली में उन्होंने कहा था कि "अपनी आखिरी साँस तक मैं भारतीय हूँ", बहुत ही उच्च विचार है, लेकिन तथ्यों के आधार पर यह बेहद खोखला ठहरता है। अब चूँकि वे देश के एक खास परिवार से हैं और प्रधानमंत्री पद के लिये बेहद आतुर हैं (जी हाँ) तब वे एक सामाजिक व्यक्तित्व बन जाती हैं और उनके बारे में जानने का हक सभी को है (१४ मई २००४ तक वे प्रधानमंत्री बनने के लिये जी-तोड़ कोशिश करती रहीं, यहाँ तक कि एक बार तो पूर्ण समर्थन ना होने के बावजूद वे दावा पेश करने चल पडी़ थीं, लेकिन १४ मई २००४ को राष्ट्रपति कलाम साहब द्वारा कुछ "असुविधाजनक" प्रश्न पूछ लिये जाने के बाद यकायक १७ मई आते-आते उनमे वैराग्य भावना जागृत हो गई और वे खामख्वाह "त्याग" और "बलिदान" (?) की प्रतिमूर्ति बना दी गईं - कलाम साहब को दूसरा कार्यकाल न मिलने के पीछे यह एक बडी़ वजह है, ठीक वैसे ही जैसे सोनिया ने प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति इसलिये नहीं बनवाया, क्योंकि इंदिरा गाँधी की मृत्यु के बाद राजीव के प्रधानमंत्री बनने का उन्होंने विरोध किया था... और अब एक तरफ़ कठपुतली प्रधानमंत्री और जी-हुजूर राष्ट्रपति दूसरी तरफ़ होने के बाद अगले चुनावों के पश्चात सोनिया को प्रधानमंत्री बनने से कौन रोक सकता है?)बहरहाल... सोनिया गाँधी उर्फ़ माइनो भले ही आखिरी साँस तक भारतीय होने का दावा करती रहें, भारत की भोली-भाली (?) जनता को इन्दिरा स्टाइल में,सिर पर पल्ला ओढ़ कर "नामास्खार" आदि दो चार हिन्दी शब्द बोल लें, लेकिन यह सच्चाई है कि सन १९८४ तक उन्होंने इटली की नागरिकता और पासपोर्ट नहीं छोडा़ था (शायद कभी जरूरत पड़ जाये) । राजीव और सोनिया का विवाह हुआ था सन १९६८ में,भारत के नागरिकता कानूनों के मुताबिक (जो कानून भाजपा या कम्युनिस्टों ने नहीं बल्कि कांग्रेसियों ने ही सन १९५० में बनाये) सोनिया को पाँच वर्ष के भीतर भारत की नागरिकता ग्रहण कर लेना चाहिये था अर्थात सन १९७४ तक, लेकिन यह काम उन्होंने किया दस साल बाद...यह कोई नजरअंदाज कर दिये जाने वाली बात नहीं है। इन पन्द्रह वर्षों में दो मौके ऐसे आये जब सोनिया अपने आप को भारतीय(!)साबित कर सकती थीं। पहला मौका आया था सन १९७१ में जब पाकिस्तान से युद्ध हुआ (बांग्लादेश को तभी मुक्त करवाया गया था), उस वक्त आपातकालीन आदेशों के तहत इंडियन एयरलाइंस के सभी पायलटों की छुट्टियाँ रद्द कर दी गईं थीं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर सेना को किसी भी तरह की रसद आदि पहुँचाई जा सके । सिर्फ़ एक पायलट को इससे छूट दी गई थी, जी हाँ राजीव गाँधी, जो उस वक्त भी एक पूर्णकालिक पायलट थे । जब सारे भारतीय पायलट अपनी मातृभूमि की सेवा में लगे थे तब सोनिया अपने पति और दोनों बच्चों के साथ इटली की सुरम्य वादियों में थीं, वे वहाँ से तभी लौटीं, जब जनरल नियाजी ने समर्पण के कागजों पर दस्तखत कर दिये। दूसरा मौका आया सन १९७७ में जब यह खबर आई कि इंदिरा गाँधी चुनाव हार गईं हैं और शायद जनता पार्टी सरकार उनको गिरफ़्तार करे और उन्हें परेशान करे। "माईनो" मैडम ने तत्काल अपना सामान बाँधा और अपने दोनों बच्चों सहित दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित इटालियन दूतावास में जा छिपीं। इंदिरा गाँधी, संजय गाँधी और एक और बहू मेनका के संयुक्त प्रयासों और मान-मनौव्वल के बाद वे घर वापस लौटीं। १९८४ में भी भारतीय नागरिकता ग्रहण करना उनकी मजबूरी इसलिये थी कि राजीव गाँधी के लिये यह बडी़ शर्म और असुविधा की स्थिति होती कि एक भारतीय प्रधानमंत्री की पत्नी इटली की नागरिक है ? भारत की नागरिकता लेने की दिनांक भारतीय जनता से बडी़ ही सफ़ाई से छिपाई गई। भारत का कानून अमेरिका, जर्मनी, फ़िनलैंड, थाईलैंड या सिंगापुर आदि देशों जैसा नहीं है जिसमें वहाँ पैदा हुआ व्यक्ति ही उच्च पदों पर बैठ सकता है। भारत के संविधान में यह प्रावधान इसलिये नहीं है कि इसे बनाने वाले "धर्मनिरपेक्ष नेताओं" ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आजादी के साठ वर्ष के भीतर ही कोई विदेशी मूल का व्यक्ति प्रधानमंत्री पद का दावेदार बन जायेगा। लेकिन कलाम साहब ने आसानी से धोखा नहीं खाया और उनसे सवाल कर लिये (प्रतिभा ताई कितने सवाल कर पाती हैं यह देखना बाकी है)। संविधान के मुताबिक सोनिया प्रधानमंत्री पद की दावेदार बन सकती हैं, जैसे कि मैं या कोई और। लेकिन भारत के नागरिकता कानून के मुताबिक व्यक्ति तीन तरीकों से भारत का नागरिक हो सकता है, पहला जन्म से, दूसरा रजिस्ट्रेशन से, और तीसरा प्राकृतिक कारणों (भारतीय से विवाह के बाद पाँच वर्ष तक लगातार भारत में रहने पर) । इस प्रकार मैं और सोनिया गाँधी,दोनों भारतीय नागरिक हैं, लेकिन मैं जन्म से भारत का नागरिक हूँ और मुझसे यह कोई नहीं छीन सकता, जबकि सोनिया के मामले में उनका रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है। वे भले ही लाख दावा करें कि वे भारतीय बहू हैं, लेकिन उनका नागरिकता रजिस्ट्रेशन भारत के नागरिकता कानून की धारा १० के तहत तीन उपधाराओं के कारण रद्द किया जा सकता है (अ) उन्होंने नागरिकता का रजिस्ट्रेशन धोखाधडी़ या कोई तथ्य छुपाकर हासिल किया हो, (ब) वह नागरिक भारत के संविधान के प्रति बेईमान हो, या (स) रजिस्टर्ड नागरिक युद्धकाल के दौरान दुश्मन देश के साथ किसी भी प्रकार के सम्पर्क में रहा हो । (इन मुद्दों पर डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी काफ़ी काम कर चुके हैं और अपनी पुस्तक में उन्होंने इसका उल्लेख भी किया है, जो आप पायेंगे इन अनुवादों के "तीसरे भाग" में)। राष्ट्रपति कलाम साहब के दिमाग में एक और बात निश्चित ही चल रही होगी, वह यह कि इटली के कानूनों के मुताबिक वहाँ का कोई भी नागरिक दोहरी नागरिकता रख सकता है, भारत के कानून में ऐसा नहीं है, और अब तक यह बात सार्वजनिक नहीं हुई है कि सोनिया ने अपना इटली वाला पासपोर्ट और नागरिकता कब छोडी़ ? ऐसे में वह भारत की प्रधानमंत्री बनने के साथ-साथ इटली की भी प्रधानमंत्री बनने की दावेदार हो सकती हैं। अन्त में एक और मुद्दा, अमेरिका के संविधान के अनुसार सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले व्यक्ति को अंग्रेजी आना चाहिये, अमेरिका के प्रति वफ़ादार हो तथा अमेरिकी संविधान और शासन व्यवस्था का जानकार हो। भारत का संविधान भी लगभग मिलता-जुलता ही है, लेकिन सोनिया किसी भी भारतीय भाषा में निपुण नहीं हैं (अंग्रेजी में भी), उनकी भारत के प्रति वफ़ादारी भी मात्र बाईस-तेईस साल पुरानी ही है, और उन्हें भारतीय संविधान और इतिहास की कितनी जानकारी है यह तो सभी जानते हैं। जब कोई नया प्रधानमंत्री बनता है तो भारत सरकार का पत्र सूचना ब्यूरो (पीआईबी) उनका बायो-डाटा और अन्य जानकारियाँ एक पैम्फ़लेट में जारी करता है। आज तक उस पैम्फ़लेट को किसी ने भी ध्यान से नहीं पढा़, क्योंकि जो भी प्रधानमंत्री बना उसके बारे में जनता, प्रेस और यहाँ तक कि छुटभैये नेता तक नख-शिख जानते हैं। यदि (भगवान न करे) सोनिया प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुईं तो पीआईबी के उस विस्तृत पैम्फ़लेट को पढ़ना बेहद दिलचस्प होगा। आखिर भारतीयों को यह जानना ही होगा कि सोनिया का जन्म दरअसल कहाँ हुआ? उनके माता-पिता का नाम क्या है और उनका इतिहास क्या है? वे किस स्कूल में पढीं? किस भाषा में वे अपने को सहज पाती हैं? उनका मनपसन्द खाना कौन सा है? हिन्दी फ़िल्मों का कौन सा गायक उन्हें अच्छा लगता है? किस भारतीय कवि की कवितायें उन्हें लुभाती हैं? क्या भारत के प्रधानमंत्री के बारे में इतना भी नहीं जानना चाहिये!






(प्रस्तुत लेख सुश्री कंचन गुप्ता द्वारा दिनांक २३ अप्रैल १९९९ को रेडिफ़.कॉम पर लिखा गया है, बेहद मामूली फ़ेरबदल और कुछ भाषाई जरूरतों के मुताबिक इसे  संकलित, संपादित और अनुवादित कर हमारे मित्र

महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar)



जी  ने इसे लोगों को भेजा।  मित्रों जनजागरण का यह महाअभियान जारी रहे, अंग्रेजी में लिखा हुआ अधिकतर आम लोगों ने नहीं पढा़ होगा इसलिये सभी का यह कर्तव्य बनता है कि महाजाल पर स्थित यह सामग्री हिन्दी पाठकों को भी सुलभ हो, इसलिये इस लेख की लिंक को अपने इष्टमित्रों तक अवश्य पहुँचायें, क्योंकि हो सकता है कि कल को हम एक विदेशी द्वारा शासित होने को अभिशप्त हो जायें !














सोनिया गांधी का सच


एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी एक परिचय

सोनिया गांधी का वास्तविक नाम एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो है। एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो का जन्म 9 दिसम्बर 1946 को इटली के कौंटरा मैनी नामक स्थान पर हुआ। कौंटरा मैनी इटली के बैनीटो क्षेत्र के बीसंजा से 30 कि.मी. की दूरी पर लुसियाना शहर के पास है। एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो के पिता का नाम मिस्टर सटीफैनो था । सटीफैनो फासीवादी सैनिक थे। इनकी माता का नाम पाओला माईनो था। एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो की परवरिश एक कैथोलिक परिवार में टुरिन नाम के कस्वे के पास औरवेशानो में हुई। एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो की पढ़ाई-लिखाई कैथोलिक स्कूल में हुई।

आगे हम खुद न लिखकर मेल से प्राप्त जानकारी आप तक पहुंचा रहे हैं आशा है कि ये जानकारी आपको भी इस विदेशी के कुछ रहसयों से अबगत करवाएगी।

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

सोनिया गांधी का मनमोहन सिंह पर जबरदस्त हमला।




आप और हम लगातार देख रहे हैं कि किस तरह एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सोनिया गांधी अपने गुलाम प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के माध्यम से भारत को तबाह करने की चर्च की योजना को अन्जाम देती रही । लेकिन अब जब ऐसा लगने लगा कि ये गुलाम प्रधानमन्त्री एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सोनिया गांधी के लिए गद्दारी और चोरी करते-करते खुद ही चोर और गद्दार नजर आने लगा है तो इस इटालियन एंटोनिया ने बजाए उसका साथ दने के उस पर ही हमला वोल दिया।


बैसे USE AND THROW अंग्रेजों की पुरानी आदत है। भारत पर अपने कब्जे के दौरान अंग्रेजों ने अपनी इसी निती का प्रयोग कर बेबकूफ हिन्दूओं को लालच देकर उनसे अपने ही भाईयों के विरूद्ध युद्ध करवाए।जिनमें हजारों देशभक्त हिन्दू अपने इन गुलाम हिन्दू भाईयों की बजह से अंग्रेजों के अत्याचारों व हिंसा के सिकार बने।


आज विभाजित भारत में मनमोहन सिंह ने जयचन्द के मार्ग पर चल कर इस इटालियन अंग्रेज के कहने पर हर वो हिन्दूविरोदी-देशविरोधी कुकर्म अन्जाम दिया जो बरबर आतंकवादी मुगलों ने अन्जाम देने का साहस नहीं किया था।


कहां से शुरू करें।


1)भारत के इतिहास में पहलीवार इस गुलाम की सरकार ने कोर्ट में हलफनामा देकर मर्यादा पुर्षोत्तम भगवान श्रीराम के अस्तिव को नकारने का पाप किया।


2)निर्दोष साध्वी व सैनिक को जेल में बन्द कर हिन्दू आतंकवाद की काल्पनिक अबधारणा को जन्म देने की कोशिश की। इस पर आगे बढ़कर इस गुलाम की सरकार ने आज दर्जनों हिन्दू नौजवानों को झूठे आरोप लगाकर जेलों में वन्द करने का अभियान चलाया हुआ है।


3)इस गुलाम ने भारतीय सेना में सांप्रदायिक आधार पर गिनती करवाने की शर्मनाक कोशिस कर सेना को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने का षडयन्त्र किया।


4) माननीय न्यायालय द्वारा सुनवाई गई मुसलिम आतंकवादी अफजल की फांसी को लगातार चार वर्ष तक रोककर गद्दारी का एक न्या आयाम स्थापित किया।


5)आतंकवाद विरोधी कानून पोटा हटाकर चार वर्षों तक न्या कानून न बनाकर मुसलिम आतंकवादियों को खुली छूट देकर अपनी देशविरोधी-हिन्दूविरोधी सोच का एक बहुत बड़ा प्रमाण दिया।


6)आतंकवादियों को मार-गिराने वाले सुरक्षावलों के जवानों को जेलों में डालकर इस गुलाम की सरकार ने अपनी गुलाम मानसिकता को उजागर किया।हद तो तब हो गई जब सेना की एक पूरी बटालियन पर ही केश दर्ज कर दिया गया।


ऐसे दर्जनों काम हैं जो एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सोनिया गांधी के गुलाम प्रधानमन्त्री ने अपनी इस आका के इसारे पर अन्जाम दिए।


हां देश के साथ सबसे बढ़ी गद्दारी व एंटोनिया के प्रति बफादरी का प्रमाण इस गुलाम ने तब दिया जब इसने इस इटालियन अंग्रेज एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सोनिया गांधी के इटालियन मित्र क्वात्रोची के लन्दन में जब्त धन को छुड़वाकर उसके उपर भारत में चल रहे सब मुकद्दमे समाप्त करवा दिए।


देश से इन सब गद्दारियों व एंटोनिया के प्रति इन सब बफादारियों का सिला मनमोहन सिंह को एंटोनिया द्वारा मनमोहन सरकार को महाभ्रष्ट व कमजोर बताकर दिया गया।


एंटनिया ने कहा कि वेशक आर्थिक प्रगति हुई है लेकिन सराकर भर्ष्टाचार के दल-दल में पूरी तरह डूब चुकी है। इस अंग्रेज ने आगे कहा कि हमें एक ताकतवर सरकार की जरूरत है। मतलब मनमोहन सिंह गुलाम के दिन पूरे हो चुके हैं।


अभी ताजा मामला है DMK को लिखित ग्रांटी देकर भर्ष्टाचार की खुली छूट देने का ।क्योंकि DMk के साथ सबन्ध एक राजनीतिक फैसला है व आज तक 100% राजनैतिक फैसले एंटोनिया ने ही किए हैं । तो जनता समझ रही है कि गारंटी मनमोहन ने एंटोनिया के आदेश पर ही दी है । मतलब इस 1,76,000 करोड़ के घोटाले में एंटोनिया का ही हाथ है।


जनता को इस सच्चाई से दूर रखने के लिए ही इस अंग्रेज ने मनमोहन सिंह पर हमलावोल कर खुद को पाक-साफ करार देने की असफल कोशिस की है। आपको याद होगा कि CWG घोटाने में भी हजारों करोड़ रूपए जारी करने के लिए भी PMO का ही नाम समाने आया था।


मनमोहन वेशक गुलाम है,कमजोर है लालची है पर चोर तो नहीं है। बैसे भी जो प्रधानमन्त्री एक चपड़ासी तक खुद नहीं रख सकता वो भला तने बड़े फैसले कैसे कर सकता है?


मतलब CWG घोटाला भी PMO के माध्यम से ऐंटोनिया ने ही अन्जाम दिया। मुम्बई के आदर्श सोसायटी घोटाले में इसी अंग्रेज के बेटे के चहेते मुख्यमन्त्री का नाम सामने आया वही मुख्यमन्त्री जिसे इस अंग्रेज ने अपनी रैली के लिए 200 करोड़ रूपए देने को मजबूर किया। अनाज के बदले तेल कार्यक्रम में भी घोटाले के लिए चिट्टठी इसी अंग्रेज ने नटवर सिंह के पास दी थी।


अब चोरों और गद्दारों की सरदार एडवीज एंटोनिया अलवीना माईनो उर्फ सोनिया गांधी मनमोहन पर हमला कर ये जता रही है कि इन सब घोटालों में इसका अपना कोई हाथ नहीं। बैसे इस अंग्रेज को याद रखना चाहिए कि वेशक हिन्दू थोड़े समय के लिए भावुक होकर मूर्ख बन जायें लेकिन आगे चलकर वो अच्छी तरह समझ जाते हैं कि उनका असली शत्रु कौन है और जब वो शत्रु को पहचान लेते हैं तो उसका नमोनिशान मिटाकर ही दम लेते हैं। हमारे विचार में ऐटोनिया को मनमोहन पर हमला करने के बजाए खुद इटली जाकर छुपने की तैयारी कर लेनी चाहिए ।






रविवार, 14 नवंबर 2010

अलकायदा के मददगारों को आप आतंकवादी नहीं तो और क्या कहेंगे?




आप देख रहे हैं कि किस तरह एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो की गुलाम UPA सरकार एक के वाद एक ऐसे कदम उठाती जा रही है जिनसे इस बात में कोई सन्देह नहीं रह जाता कि ये सरकार हिन्दूरोधी-देशविरोधी आतंकवादियों की सरकार है।


आप देख रहे हैं कि वर्षों से ये कांग्रेसी दाऊद इबरहाहीम जैसे मुसलिम आतंकवादियों की मदद कर न्हें कानून से बचा रही है ।


इतनी ही नहीं यही धर्मनिर्पेक्ष गिरोह कशमीरघाटी को भारत से अलग करने के लिए लगातार षडयन्त्र करने वाले वाले जिलानी,गिलानी व यासीन मलिक जैसे मुसलिम आतंकवादियों की भी मदद करता चला आ रहा है।


अब तो इस धर्मनिरपेक्ष गिरोह की UPA सरकार ने सारी हदें लांघते हुए अलकायदा जैसे आतंकवादी गिरोह की भी मदद करना शुरू कर दी ।



उम्मीद है कि इस समाचार को पढ़ने के बाद आप भी यही कहेंगे कि य़े सेकुलर गिरोह की UPA सरकार आतंकवादियों की सरकार है । इस सरकार के कर्ताधर्ता राजनितिज्ञ नहीं वल्कि कातिल आतंकवादी कहलाने लायक हैं। इन आतंकवादियों का समूलनाश भारत को बचाने के लिए जरूरी है।


शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

क्या आप जानते हैं कि बौद्धिक गुलाम क्यों धरना प्रदर्शन कर रहे हैं?


10-11-10 को आपने देखा कि किस तरह देशभक्तों की संस्था RSS ने शांति से अपनी बात लोगों तक पहूंचाने का प्रयत्न किया। विना किसी हिंसा,अगजनी या हमले के । आज आप देख रहे हैं कि किस तरह एक फासीवादी हिन्दूविरोधी-देशविरोधी इटालियन अंग्रेज एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी की गुलाम कांग्रेस हिंसा ,अगजनी व धमकियां देकर उस सच्चाई को छुपाना चाहते है जिस सच्चाई का हर देशभक्त भारतीय तक पहंचना बहुत जरूरी है। ये वो सच्चाई है जो भारत को इस भारतविरोधी से आजादी दिलवाने में सहायक सिद्ध होगी ।


इस सच्चाई के वारे में आज हम खुद लिखने बजाए आपको मेल से प्राप्त जानकारी दे रहे हैं इसे आप संयम व धैर्य से पढकर खुद सोचें कि क्या आप इस अंग्रेज को जानते भी हैं या नहीं?





"आप सोनिया गाँधी को कितना जानते हैं" की पहली कडी़, अंग्रेजी में इसके


मूल लेखक हैं एस.गुरुमूर्ति और यह लेख दिनांक १७ अप्रैल २००४ को "द न्यू


इंडियन एक्सप्रेस" में - अनमास्किंग सोनिया गाँधी- शीर्षक से प्रकाशित


हुआ था ।


। भारत की खुफ़िया एजेंसी "रॉ", जिसका गठन सन १९६८ में हुआ, ने विभिन्न


देशों की गुप्तचर एजेंसियों जैसे अमेरिका की सीआईए, रूस की केजीबी,


इसराईल की मोस्साद और फ़्रांस तथा जर्मनी में अपने पेशेगत संपर्क बढाये


और एक नेटवर्क खडा़ किया । इन खुफ़िया एजेंसियों के अपने-अपने सूत्र थे


और वे आतंकवाद, घुसपैठ और चीन के खतरे के बारे में सूचनायें आदान-प्रदान


करने में सक्षम थीं । लेकिन "रॉ" ने इटली की खुफ़िया एजेंसियों से इस


प्रकार का कोई सहयोग या गठजोड़ नहीं किया था, क्योंकि "रॉ" के वरिष्ठ


जासूसों का मानना था कि इटालियन खुफ़िया एजेंसियाँ भरोसे के काबिल नहीं


हैं और उनकी सूचनायें देने की क्षमता पर भी उन्हें संदेह था ।


सक्रिय राजनीति में राजीव गाँधी का प्रवेश हुआ १९८० में संजय की मौत के


बाद । "रॉ" की नियमित "ब्रीफ़िंग" में राजीव गाँधी भी भाग लेने लगे थे


("ब्रीफ़िंग" कहते हैं उस संक्षिप्त बैठक को जिसमें रॉ या सीबीआई या


पुलिस या कोई और सरकारी संस्था प्रधानमन्त्री या गृहमंत्री को अपनी


रिपोर्ट देती है), जबकि राजीव गाँधी सरकार में किसी पद पर नहीं थे, तब वे


सिर्फ़ काँग्रेस महासचिव थे । राजीव गाँधी चाहते थे कि अरुण नेहरू और


अरुण सिंह भी रॉ की इन बैठकों में शामिल हों । रॉ के कुछ वरिष्ठ


अधिकारियों ने दबी जुबान में इस बात का विरोध किया था चूँकि राजीव गाँधी


किसी अधिकृत पद पर नहीं थे, लेकिन इंदिरा गाँधी ने रॉ से उन्हें इसकी


अनुमति देने को कह दिया था, फ़िर भी रॉ ने इंदिरा जी को स्पष्ट कर दिया


था कि इन लोगों के नाम इस ब्रीफ़िंग के रिकॉर्ड में नहीं आएंगे । उन


बैठकों के दौरान राजीव गाँधी सतत रॉ पर दबाव डालते रहते कि वे इटालियन


खुफ़िया एजेंसियों से भी गठजोड़ करें, राजीव गाँधी ऐसा क्यों चाहते थे ?


या क्या वे इतने अनुभवी थे कि उन्हें इटालियन एजेंसियों के महत्व का पता


भी चल गया था ? ऐसा कुछ नहीं था, इसके पीछे एकमात्र कारण थी सोनिया गाँधी


। राजीव गाँधी ने सोनिया से सन १९६८ में विवाह किया था, और हालांकि रॉ


मानती थी कि इटली की एजेंसी से गठजोड़ सिवाय पैसे और समय की बर्बादी के


अलावा कुछ नहीं है, राजीव लगातार दबाव बनाये रहे । अन्ततः दस वर्षों से


भी अधिक समय के पश्चात रॉ ने इटली की खुफ़िया संस्था से गठजोड़ कर लिया ।


क्या आप जानते हैं कि रॉ और इटली के जासूसों की पहली आधिकारिक मीटिंग की


व्यवस्था किसने की ? जी हाँ, सोनिया गाँधी ने । सीधी सी बात यह है कि वह


इटली के जासूसों के निरन्तर सम्पर्क में थीं । एक मासूम गृहिणी, जो


राजनैतिक और प्रशासनिक मामलों से अलिप्त हो और उसके इटालियन खुफ़िया


एजेन्सियों के गहरे सम्बन्ध हों यह सोचने वाली बात है, वह भी तब जबकि


उन्होंने भारत की नागरिकता नहीं ली थी (वह उन्होंने बहुत बाद में ली) ।


प्रधानमंत्री के घर में रहते हुए, जबकि राजीव खुद सरकार में नहीं थे । हो


सकता है कि रॉ इसी कारण से इटली की खुफ़िया एजेंसी से गठजोड़ करने मे


कतरा रहा हो, क्योंकि ऐसे किसी भी सहयोग के बाद उन जासूसों की पहुँच


सिर्फ़ रॉ तक न रहकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक हो सकती थी ।


जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तब सुरक्षा अधिकारियों ने इंदिरा गाँधी


को बुलेटप्रूफ़ कार में चलने की सलाह दी, इंदिरा गाँधी ने अम्बेसेडर


कारों को बुलेटप्रूफ़ बनवाने के लिये कहा, उस वक्त भारत में बुलेटप्रूफ़


कारें नहीं बनती थीं इसलिये एक जर्मन कम्पनी को कारों को बुलेटप्रूफ़


बनाने का ठेका दिया गया । जानना चाहते हैं उस ठेके का बिचौलिया कौन था,


वाल्टर विंसी, सोनिया गाँधी की बहन अनुष्का का पति ! रॉ को हमेशा यह शक


था कि उसे इसमें कमीशन मिला था, लेकिन कमीशन से भी गंभीर बात यह थी कि


इतना महत्वपूर्ण सुरक्षा सम्बन्धी कार्य उसके मार्फ़त दिया गया । इटली का


प्रभाव सोनिया दिल्ली तक लाने में कामयाब रही थीं, जबकि इंदिरा गाँधी


जीवित थीं । दो साल बाद १९८६ में ये वही वाल्टर विंसी महाशय थे जिन्हें


एसपीजी को इटालियन सुरक्षा एजेंसियों द्वारा प्रशिक्षण दिये जाने का ठेका


मिला, और आश्चर्य की बात यह कि इस सौदे के लिये उन्होंने नगद भुगतान की


मांग की और वह सरकारी तौर पर किया भी गया । यह नगद भुगतान पहले एक रॉ


अधिकारी के हाथों जिनेवा (स्विटजरलैण्ड) पहुँचाया गया लेकिन वाल्टर विंसी


ने जिनेवा में पैसा लेने से मना कर दिया और रॉ के अधिकारी से कहा कि वह


ये पैसा मिलान (इटली) में चाहता है, विंसी ने उस अधिकारी को कहा कि वह


स्विस और इटली के कस्टम से उन्हें आराम से निकलवा देगा और यह "कैश" चेक


नहीं किया जायेगा । रॉ के उस अधिकारी ने उसकी बात नहीं मानी और अंततः वह


भुगतान इटली में भारतीय दूतावास के जरिये किया गया । इस नगद भुगतान के


बारे में तत्कालीन कैबिनेट सचिव बी.जी.देशमुख ने अपनी हालिया किताब में


उल्लेख किया है, हालांकि वह तथाकथित ट्रेनिंग घोर असफ़ल रही और सारा पैसा


लगभग व्यर्थ चला गया । इटली के जो सुरक्षा अधिकारी भारतीय एसपीजी कमांडो


को प्रशिक्षण देने आये थे उनका रवैया जवानों के प्रति बेहद रूखा था, एक


जवान को तो उस दौरान थप्पड़ भी मारा गया । रॉ अधिकारियों ने यह बात राजीव


गाँधी को बताई और कहा कि इस व्यवहार से सुरक्षा बलों के मनोबल पर विपरीत


प्रभाव पड़ रहा है और उनकी खुद की सुरक्षा व्यवस्था भी ऐसे में खतरे में


पड़ सकती है, घबराये हुए राजीव ने तत्काल वह ट्रेनिंग रुकवा दी,लेकिन वह


ट्रेनिंग का ठेका लेने वाले विंसी को तब तक भुगतान किया जा चुका था ।


राजीव गाँधी की हत्या के बाद तो सोनिया गाँधी पूरी तरह से इटालियन और


पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों पर भरोसा करने लगीं, खासकर उस वक्त जब राहुल


और प्रियंका यूरोप घूमने जाते थे । सन १९८५ में जब राजीव सपरिवार फ़्रांस


गये थे तब रॉ का एक अधिकारी जो फ़्रेंच बोलना जानता था, उनके साथ भेजा


गया था, ताकि फ़्रेंच सुरक्षा अधिकारियों से तालमेल बनाया जा सके । लियोन


(फ़्रांस) में उस वक्त एसपीजी अधिकारियों में हड़कम्प मच गया जब पता चला


कि राहुल और प्रियंका गुम हो गये हैं । भारतीय सुरक्षा अधिकारियों को


विंसी ने बताया कि चिंता की कोई बात नहीं है, दोनों बच्चे जोस वाल्डेमारो


के साथ हैं जो कि सोनिया की एक और बहन नादिया के पति हैं । विंसी ने


उन्हें यह भी कहा कि वे वाल्डेमारो के साथ स्पेन चले जायेंगे जहाँ


स्पेनिश अधिकारी उनकी सुरक्षा संभाल लेंगे । भारतीय सुरक्षा अधिकारी यह


जानकर अचंभित रह गये कि न केवल स्पेनिश बल्कि इटालियन सुरक्षा अधिकारी


उनके स्पेन जाने के कार्यक्रम के बारे में जानते थे । जाहिर है कि एक तो


सोनिया गाँधी तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के अहसानों के तले दबना


नहीं चाहती थीं, और वे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों पर विश्वास नहीं करती


थीं । इसका एक और सबूत इससे भी मिलता है कि एक बार सन १९८६ में जिनेवा


स्थित रॉ के अधिकारी को वहाँ के पुलिस कमिश्नर जैक कुन्जी़ ने बताया कि


जिनेवा से दो वीआईपी बच्चे इटली सुरक्षित पहुँच चुके हैं, खिसियाये हुए


रॉ अधिकारी को तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था । जिनेवा का पुलिस


कमिश्नर उस रॉ अधिकारी का मित्र था, लेकिन यह अलग से बताने की जरूरत नहीं


थी कि वे वीआईपी बच्चे कौन थे । वे कार से वाल्टर विंसी के साथ जिनेवा


आये थे और स्विस पुलिस तथा इटालियन अधिकारी निरन्तर सम्पर्क में थे जबकि


रॉ अधिकारी को सिरे से कोई सूचना ही नहीं थी, है ना हास्यास्पद लेकिन


चिंताजनक... उस स्विस पुलिस कमिश्नर ने ताना मारते हुए कहा कि "तुम्हारे


प्रधानमंत्री की पत्नी तुम पर विश्वास नहीं करती और उनके बच्चों की


सुरक्षा के लिये इटालियन एजेंसी से सहयोग करती है" । बुरी तरह से अपमानित


रॉ के अधिकारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से इसकी शिकायत की, लेकिन कुछ


नहीं हुआ । अंतरराष्ट्रीय खुफ़िया एजेंसियों के गुट में तेजी से यह बात


फ़ैल गई थी कि सोनिया गाँधी भारतीय अधिकारियों, भारतीय सुरक्षा और भारतीय


दूतावासों पर बिलकुल भरोसा नहीं करती हैं, और यह निश्चित ही भारत की छवि


खराब करने वाली बात थी । राजीव की हत्या के बाद तो उनके विदेश प्रवास के


बारे में विदेशी सुरक्षा एजेंसियाँ, एसपीजी से अधिक सूचनायें पा जाती थी


और भारतीय पुलिस और रॉ उनका मुँह देखते रहते थे । (ओट्टावियो क्वात्रोची


के बार-बार मक्खन की तरह हाथ से फ़िसल जाने का कारण समझ में आया ?) उनके


निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज सीधे पश्चिमी सुरक्षा अधिकारियों के सम्पर्क में


रहते थे, रॉ अधिकारियों ने इसकी शिकायत नरसिम्हा राव से की थी, लेकिन


जैसी की उनकी आदत (?) थी वे मौन साध कर बैठ गये ।


संक्षेप में तात्पर्य यह कि, जब एक गृहिणी होते हुए भी वे गंभीर सुरक्षा


मामलों में अपने परिवार वालों को ठेका दिलवा सकती हैं, राजीव गाँधी और


इंदिरा गाँधी के जीवित रहते रॉ को इटालियन जासूसों से सहयोग करने को कह


सकती हैं, सत्ता में ना रहते हुए भी भारतीय सुरक्षा अधिकारियों पर


अविश्वास दिखा सकती हैं, तो अब जबकि सारी सत्ता और ताकत उनके हाथों मे


है, वे क्या-क्या कर सकती हैं, बल्कि क्या नहीं कर सकती । हालांकि "मैं


भारत की बहू हूँ" और "मेरे खून की अंतिम बूँद भी भारत के काम आयेगी" आदि


वे यदा-कदा बोलती रहती हैं, लेकिन यह असली सोनिया नहीं है । समूचा


पश्चिमी जगत, जो कि जरूरी नहीं कि भारत का मित्र ही हो, उनके बारे में सब


कुछ जानता है, लेकिन हम भारतीय लोग सोनिया के बारे में कितना जानते हैं ?







गुरुवार, 11 नवंबर 2010

लाख छुपाओ छुप न सकेगा असली नकली चेहरा--- संदर्भ एंटोनिया उर्फ सोनिया गांधी CIA ऐजेंट है!




आज जो सच्चाई सुदर्शन जी की जुवां पर आई उसका हम कब सेइन्तजार कर रहे थे। इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारत में CIA ने एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी को plant किया है। ये भी सत्य है कि एंटोनिया को कांग्रेस का सर्वेसर्वा बनाने के लिए एक नहीं ,दो नहीं वल्कि 6-6 लोगों का कत्ल किया गया। इस तरह 6-6 लोगों का कत्ल संयोग नहीं हो सकता ।ये सब एक सोची समझी रणनिती के तहत किया गया है।


ये 6 नेता कौन-कौन हैं इसकी जानकी यहां प्राप्त करें।
http://samrastamunch.wordpress.com/2010/09/12/6-6-%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4%e0%a4%af%e0%a5%80%e0%a4%af%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%b6%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%97%e0%a4%bf%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%95/
अगर आपको फिर भी सन्देह रह जाए तो सुवरामणियम स्वामी (अध्यक्ष जनता पार्टी)  जी द्वारा एंटोनिया के वारे में ततकालीन राष्ट्रपति डा. अबदुल कलाम जी को दिए गय पत्र को अबस्य पढ़ें। अगर आपके पास ये पत्र उपलब्ध नहीं है तो sdsbtf@gmail.com पर mail कर प्राप्त करें।


आप खुद समझ जायेंगे कि सच्चाई क्या है।






मंगलवार, 9 नवंबर 2010

क्या आप मानते हैं कि चोरी और गद्दारी के लिए विषकन्या जिम्मेदार है?


आप सबने खुद अपने कानों से सुना व आंखों से देखा कि किस तरह महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष अपनी ही पार्टी के नेता को बता रहे थे कि मुख्यमन्त्री पहले तो 200 करोड़ देने के लिए तैयार नहीं हुए लेकिन मैडम एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी का फोन आते ही उन्होंने 200 करोड़ देने की सहमती दे दी। आगे आपने ये भी सुना होगा कि वाकी मन्त्रियों से 10-10 लाख लिए गए। अब आप बताओ जो मन्त्री इस विषकन्या की एक यात्रा के दौरान अपनी कुर्सी बचाने के लिए 200 करोड़ देने के लिए मजबूर हो वो इतनी बड़ी रकम पूरी करने के लिए क्या नहीं करेगा ?


उसके पास दो ही रास्ते हैं या तो वो भ्रष्ट तरीकों से इस रकम की भरपाई करे या फिर भारतविरोधी आतंकवादियों से पैसा लेकर प्रदेश की सुरक्षा उनके हाथों में गिरवी रख दे। महाराष्ट्र सरकार ने दोनों ही हथकंडे आपना लिए इस रकम की भरपाई कर अपनी जेब भी भरने के लिए।


आपने वो स्टिंग आपरेसन जरूर देख होगा जिसमें राज्य के गृहमन्त्री व इस विषकन्या के खासमखास एहमद पटेल और आतंकवादियों के सरगना मिलकर ये तय कर रहे थे कि राज्य का पुलिस प्रमुख किसे बनाया जाए।


आपने वो समाचार भी देखा होगा जिसमें मुख्यमन्त्री दो-दो आतंकवादियों के साथ इफतार पार्टी कर रहा था। मतलब साफ है कि विषकन्या एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी के इसारे पर पूरी की पूरी महारष्ट्र सरकार देशद्रोह व भ्रष्टाचार के चर्म पर पहूंच चुकी है।


भर्ष्टाचारियों व भारतविरोधी आतंकवादियों के इसी गठजोड़ की बजह से लैप्टीनैंट कर्नल पुरोहित व साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर जैसे देशभक्तों को जेल में डालकर उन पर दो-दो वार मकोका लगाकर हिन्दू आतंकवाद की झूठी अबधारणा तैयार करने के षडयन्त्र रचे जा रहे हैं।


आप खुद सोच सकते हैं कि जो सरकार आतंकवादियों के साथ मिलकर पुलिस प्रमुख तैय कर रही हो वो देशभक्त सैनिकों व नागरिकों या फिर संगठनों के साथ क्या सलूक करेगी? वही सलूक आज देशभक्त संगठनों भारतीय सेना व साधु-सन्तों के साथ किया जा रहा है।


अब आप खुद तय करो कि आदर्श सोसायिटि घोटाले व आतंकवादियें के साथ गठजोड़ के लिए अशोक चहान से जयादा जिम्मेदार विषकन्या एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी है कि नहीं।


रविवार, 7 नवंबर 2010

जब जनरल दीपक कपूर ने हिन्दूओं को सांप्रदायिक कहा था!

आप जानते हैं कि हम देश के सैनिकों को अपना आदर्श मानते हैं । उनके वारे में कुछ भी लिखने से पहले हम ये नहीं भूलते कि ये वही सैनिक हैं जिनकी कुर्वानियों के परिणामस्वारूप आज हम अपने घरों में आजादी से जी रहे हैं। हिन्दूविरोधी-देशविरोधी धर्मनिप्रेक्ष गिरोह जिस तरह भारतीय सेना को बदनाम करने के लिए दिन-रात एक किए हुए है उससे हम कतई सहमत नहीं।

हम सब जानते हैं कि सेना के साजो-समान की खरीद-फरोक्त से लेकर सेना की संम्पतियों तक की देखभाल का अधिकार सेना के अधिकारियों के बजाए गैर सैनिकों के पास है।इसलिए जब भी सैनिक साजो समान या फिर जमीन घोटाला सामने आता है तो किसी भी तरह से सैनिकों पर अंगुली उठाना जायज नहीं है। आप जानते हैं कि भारत के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला बोपोर्स घोटाला था । जिसे एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी ने अपने इटालियन मित्र क्वात्रोची की सहायता से अन्जाम दिया जिसके प्रमाण तब मिले जब इस अंग्रेज की गुलाम UPA सरकार ने क्वात्रोची के जब्त पैसे को छुडवाकर उसके उपर भारत में चल रहे सबके सब केश समाप्त कर दिए।आप सब जानते हैं कि एंटोनिया की पहुंच सैनिकों तक नहीं थी उसने इस सारे घोटाले को सेना पर कब्जा जमाकर बैठे गैर सैनिकों का दुरूपयोग कर अंजाम दिया।


इसी तरह आदर्श सोसाईटी घोटाले में भी गैर सैनिकों ने जो कुकर्म किए उसका आरोप सैनिकों के सिर मढ़ने की कोशिस की जा रही है। बैसे भी जिस सरकार में हर तरफ हर सतर पर भ्रष्टाचारियों व देशद्रेहियों की पकड़ हो उसके दबाब में कोई भी भोला-भाला सैनिक अधिकारी फंस सकता है वो भी तब जब लैफटिमनैंट कर्नल पुरोहित जी की तरह झूठे आरोपों में फंसाने की तलबार हर वक्त सिर पर लटका दी जाए।


जनरल दीपक कपूर जी पर आज आरोप लग रहे हैं कि उन्हें हरियाणा की कांग्रेस सरकार ने विशेष नियम बनाकर जमीन दी। आदर्श सोसायिटी घोटाले में भी उनका नाम आ रहा है। सच बतायें तो देश के 99% सैनिकों को राजितिज्ञों द्वारा अपनाए जाने वाले भ्रष्ट तरीकों की जानकारी तक नहीं होती।अब हरियाणा में ऐसा कोई विशेष कानून बन सकता है ऐसा जनरल साहब ने कहा हो हम सोच भी नहीं सकते । UPA सरकार का कोई न कोई नेता ऐसा रहा होगा जिसने ऐसे प्रलोभन देकर जनरल दीप कपूर जी से वो कहलबाया जो आज तक भारतीय सेना ने कभी नहीं कहा था।


1947 से आज तक कांग्रेस जिस फूट डालो और राज करो की जिस निती का सहारा लेकर लोगों को आपस में जाति, क्षेत्र, सांप्रदाय, भाषा के आधार पर लडवाकर राज करती रही उस निती का जनरल दीपक कपूर से पहले किसी सैनिक अधिकारी ने खुलकर समर्थन नहीं किया।


ये बात और है कि कई मुख्य चुनाबयुक्त व नयायाधीश कांग्रेस के भ्रष्ट जाल में फंसकर नौकरी में रहते हुए कांग्रेस की इस फूट डालो और राज करो की निती का अनुमोदन करते नजर आए जिन्हें कांग्रेस ने आगे चलकर कभी मन्त्री तो कभी और कोई बढ़ी जिम्मेदारी देकर कांग्रेसभक्ति का इनाम दिया।


हमें उस वक्त बहुत हैरानी हुई जब जनरल दीपक कपूर जी ने सांप्रदिक ताकतों की बात कर कांग्रेस की फूट डालो और राज करो की देशविरोधी निती का अनुमोदन कर सेनाअध्यक्ष के पद का अपमान किया।


फिर भी हम मानते हैं कि वेशक कुछ समय के लिए जनरल दीपक कपूर जी कांग्रेश के भ्रष्ट तन्त्र का सिकार होकर भटक गए हों फिर भी इन घोटालों के लिए उनको जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।


गुरुवार, 4 नवंबर 2010

आओ दिपावली के शुभ अवसर पर हिन्दू एकता के लिए अथक प्रयास करने की कशम उठायें।

आज हिन्दू समाज के सामने कई चुनौतियां हैं । इन सब चुनौतियों का एकमात्र समाधान है हिन्दू एकता। हिन्दू एकता से हमारा अभिप्राय है कि सब हिन्दू उंच-नीच ,छुआ-छूत, अमीरी-गरीबी की सब दिवारों को तोड़कर सिर्फ ये याद रखें कि हम सब हिन्दू हैं हम सब एक हैं। बैसे भी अगर हिन्दू अपने पूर्वजों की ओर नजर दौड़ायें तो पायेंगे कि हम सब एक ही परमपिता परमातमा की सन्तान हैं। हम सबका खून एक है। वेशक मुसलिम आतंकवादियों व धर्मांतरण के ठेकेदार इसाईयों के षडयन्त्रो का सिकार होकर हम आपस में कुछ इस तरह उलझ गए कि हमने मूर्खता की हद तक पाखंड अपने सिर पर ओड़ कर इन आक्रमणकारियों के हिन्दूविरोधी-देशविरोधी षडयन्त्रों को सफल होने में सहायाता तक कर डाली। आज भी हमारे देश में एसे दुष्टों की कमी नहीं जो हिन्दूओं को विभाजित रखने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। इन सब विभाजनकारियों को हमारा एकमात्र जबाब हो सकता है पूर्ण समरसता को साकार कर हिन्दू एकता के मार्ग पर आगे को बढ़ना। हमें याद रखना चाहिए कि हिन्दूओं के अन्दर गुलामीकाल से पहले किसी भी तरह की छुआछूत नहीं थी अगर होती तो समाज में जो स्वारूप समाजिक कार्यक्रमों में देखने को हमें आज भी मिलता है वो कभी भी अस्तित्व में नहीं आ सकता था।
http://samrastamunch.blogspot.com/2009/01/blog-post_9926.html

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

क्या आप भी मानते हैं कि RSS कायरों का संगठन है ?

अयोध्या में हिन्दूमहासभा ने RSS पर कायरों का संगठन होने का आरोप लगाने के साथ-साथ यह भी कहा कि संघ आतंकवाद कैसे फैला सकता है ।

हमारा मानना है कि संघ के वारे में जो छवि हिन्दूविरोधी-देशविरोधी धर्मनिर्पेक्ष गिरोह द्वारा बनाई जाती है उससे प्रभावित होकर कई उग्र हिन्दू संघ में प्रवेश कर जाते हैं जब वो संघ के अन्दर काम करते हैं तो स्थिति विलकुल विपरीत मिलती है। इस स्थिति में कोई भी उग्र हिन्दू अपना आपा खो सकता है( लगता है कि ये आरोप ऐसे ही हिन्दू ने लगाया है) । क्योंकि संघ के वारे में मिडीया में सुनने से लगता है कि संघ क्रांतिकारी संगठन है लेकिन बास्तब में संघ का क्रांति से दूर-दूर तक कोई बास्ता नहीं ।संघ के संविधान की पहली पंक्ति में लिखा है कि संघ समाजिक और सांसकृतिक संगठन है जबकि दूसरी पंक्ति में लिखा है है कि संघ में हिसंक या देशविरोधी प्रवृति से ग्रर्सित व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं। बस ये जो हिंसक शब्द है यही सारी समस्या की जड़ है।

संघ में हमारा प्रवेश तब हुआ जब हम गणित में सनात्कोतर पढ़ाइ के दौरान हास्टल में बांमपंथी हिंसा के सिकार बने। इस बामपंथी हमले का सामना करने में संघ ने हमारा साथ दिया।

हमें लगा कि हिन्दूक्रांति के काम को आगे बढ़ाने के लिए संघ हमें सहायता प्रदान करेगा । लेकिन धीरे-धीरे हमें लगा कि मुसलिम आतंकवादियों की हिंसा की प्रतिक्रियास्वारूप हमारे मन में मुसलमानों के प्रति जो आग भरी थी वो शांत होने लगी। हमने धैर्य बनाए रखा लेकिन अपने हर सम्मभव प्रयत्न के बाबजूद हम संघ के अधिकारियों को अपनी प्रतिक्रियावादी हिंसा की निती के वारे में विश्वास में न ले सके ।

अन्त में हमने संघ के अधिकारियों के सामने सीधी बात ऱखी कि अगर कशमीरघाटी या किसी और मुसलिम बहुल क्षेत्र में या फिर मुसलिम आतंकवादी हमले में अगर 10 हिन्दू मारे जाते हैं तो हमें 20 मुसलमानों का कत्ल सुनिश्चित करना चाहिए। बस फिर क्या था संघ के एक अधिकारी ने हमें पूछा कि ये सब कब रूकेगा हमने कहा कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद। फिर अधिकारी ने आगे प्रश्न किया कि क्या गारंटी है कि हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद जिन को कत्ल की आदत पड़ जाएगी वो खुद को हिंसा से रोकने में समर्थ होंगे । इस बात को समझाने के लिए उन्होंने पाकिस्तान व अफगानीस्थान में रहने वाले मुसलमानों का उधाहरण दिया। उन्होंने हमें समझाने की कोशिश की कि किस तरह उन मुसलमानों ने हिन्दूओं के खत्म हो जाने के बाद मुसलमानों पर ही हमले शुरू किए जो आज तक जारी हैं। आगे हमें उस अधिकारी ने समझाने की कोशिश की, कि किस तरह ये मुसलिम भी अपने ही भाई हैं। इनका और हमारा खून एक है।

इस तरह हमें समझ आ गया कि RSS में हमारी दाल नहीं गलने वाली फिर कुछ समय के लिए हमने किसी को ये बात नहीं बताई लेकिन धीरे-धीरे हमें एहसास हुआ कि RSS ने अपने आप ही हमें बाहर का रास्ता दिखा दिया ।

हालांकि आपको हैरानी होगी कि किसी ने हमें संघ से बाहर निकले को नहीं कहा न ही इस बात की सूचना दी कि हमें संघ से बाहर कर दिया गया है। हमें जिला कार्यकारणी से निकालकर संघ की जिम्मेवारी से मुक्त कर दिया गया वो भी हमें विना यह ऐहसास करवाए कि अब हम संघ के सदस्य नहीं हैं।

इसके बाद हमने अन्य संगठनों से सम्पर्क करने की कोशिश की जो आज तक जारी है। ऐसा नहीं कि संघ के कार्यों पर हमारा विस्वास नहीं लेकिन हमें लगता है कि संघ की शांतिप्रिय निती आज के हालात में हिन्दूहित-देशहित की रक्षा नहीं कर सकती। आज जरूरत है ईंट का जबाब पत्तथर से देने की क्योंकि राक्षसों का मुकावला विना राक्षस बने नहीं किया जा सकता। वेशक संघ क्रांतिकारी संगठन नहीं फिर भी हम मानते हैं कि संघ कायरों का संगठन कभी नहीं कहला सकता।

धारा के विपरीत जिस तरह संघ राष्ट्रवाद के साथ चट्टान की तरह खड़ा है वो साहस गद्दारों के राज में कोई कायर नहीं दिखा सकता।वेशक संघ की रितीनिती से हम सहमत नहीं फिर भई हमें लगता है कि संघ कार्य भी अपने समाज के अन्दर जरूरी है।

हिन्दू महासभा को समझना चाहिए कि संघ पर हमला करने के बजाए उसे खुद आगे बढ़कर जेलों में बन्द 30 निर्दोष हिन्दूओं की रक्षा के लिए कदम उठाने चाहिए ताकि हमारे जैसे उग्र हिन्दू ,हिन्दूमहसभा के बैनर तले देशविरोधी हिन्दू विरोधी धर्मनिर्पेक्ष गिरोह के हंमलों का जबाब उसी की भाषा में उसे दे सकें।

सोमवार, 1 नवंबर 2010

चोरों और गद्दारों की UPA सरकार पर स्वामी राम देब जी व पंजाब केशरी का हमला!

हम चोरों और गद्दारों की सराकर के वारे में आपको लगातार बता रहे हैं ।बैसे भी जो सरकार डाकुओं की सरदार एंटोनिया की गुलाम हो उससे चोर बजारी और गद्दारी के सिवाय उमीद भी क्या कर सकते हैं?

आपको याद होगा कि किस तरह इस एंटोनिया ने अपने यार क्वात्रोची के साथ मिलकर बोफोर्ष दलाली कांड को अन्जाम दिया और अब उसके पैसों के साथ-साथ उसपर चल रहे मुकद्दमें भी अपने गुलाम प्रधानमन्त्री के माध्यम से खत्म करवा दिए।

इराक के तेल के बदले अनाज कार्यक्रम में किस तरह इस एंटोनिया ने भूखे बच्चों की रोटी के लिए वेचे जाने वाले तेल के मदले अनाज कार्यक्रम में भी घूंस खाकर नटवर सिंह जी को बलि का बकरा बनाने की कोशिश की जो आज तक जारी है।

चुनाबों के लिए टिकट देने के बदले करोंडों रूपए कांग्रेसियों से ऐंठने की सिकायतें लगातार मिल रही हैं। जिसका पर्दाफास उस बातचीत में हुआ जिसमें महाराष्ट्र के कांग्रेस अध्यक्ष ने बताया कि मुख्यमन्त्री 200 करोंड़ देने से मना कर रहा था मगर मैडम मतलब एंटोनिया का फोन आने के बाद वो तैयार हो गया। मुख्यमन्त्री से 200 करोड़ व मन्त्रीयों से 10-10 लाख आखिर किसकी जेब में गया । जी हां इसी चोरों की सरदार के स्विस व इटालियन बैंक के खातों में ।

मामला चाहे CWG मे पैसे खाने का हो ,चाहे रैलियों के लिए करोंड़ों लूटने का हो, चाहे आदर्श सोसयटी का ,चाहे वोफोर्ष दलाली कांड या फिर अनाज के बदले तेल कार्यक्रम का हर जगह एक ही नाम की चर्चा है वो है लुटेरों की सरदार एडवीज एंटोनिया अलवीना माइनो उर्फ सोनिया गांधी का।

आगे आप खुद पढ़ लो