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मोदीराज लाओ

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भारत बचाओ

गुरुवार, 12 अगस्त 2010

क्या बुर्का आतंकवादियों द्वारा सुरक्षाबलों को धोखा देने के लिए सुरक्षाक्वच के रूप में उपयोग किया जा रहा है?





आज संसार के अधिकतर देशों में मुसलिम आतंकवादियों के बढ़ते हमलों के परिणामस्वारूप आतंकवादियों द्वारा बुर्के को सुरक्षाक्वच के रूप में प्रयोग किए जाने के खतरे को ध्यान में रखते हुए एक के वाद एक देश बुर्का प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा रहा है या फिर प्रतिबन्ध लगाने का मन बना रहा है।


भारत में भी मुसलिम व माओवादी आतंकवादियों के षडयन्त्र अपने चर्म पर हैं।


हाल ही में लालगढ़ में माओवादी आतंकवादियों की रैली में पहुंची ममता बैनर्जी की सभा से भी एक ऐसे ही अपराधी को कब्जे में लिया गया जो खुद को बुर्के में छुपाकर अपनी गतिविधी को सुरक्षाबलों की नजरों से बुर्के के सहारे छुपा रहा था।


आज ही एक समाचार सामने आया जिसमें सौतेले माता-पिता ने बच्चे पर अमानबीय अतयाचार करने के बाद जब बच्चा मरने वाला था तो उसके इलाज के लिए उसे बुर्के में छुपाकर डाकटर के पास ले गए। ये राक्षस नहीं चाहते थे कि इस बच्चे की मौत से वो एक बन्धुआ मजदूर खो दें। ये मामला तब उजागर हुआ जब बच्चे को किसी काम का न देखकर इन दुष्टों ने दादी के पास वापिस भेजा अन्यथा ये लोग अपने पाप को बुर्के के सहारे छुपाने में सफल रहे थे।


काबुल में भारतीयों पर हमला करने वाले मुस्लिम आतंकवादी भी अपने विस्फोटक बुर्के में छुरपाकर ही लाए थे। जिसमें भारतीयों को जानमाल का भारी नुकसान उठाना पड़ा।


अभी कुछ दिन पहले जब हम तनौजा जेल में थे तो हमने देखा कि एक महिला बाहर से तो बुर्का पहन कर आयी पर अन्दर आते ही उसने बुर्का हटा दिया विना किसी के आदेश के हमारे सामने। मतलब यह महिला किसी मकसद से बुर्के का उपयोग कर रही थी न कि किसी आस्था को पूरा करने के लिए।


बैसे भी किसी भी सभ्य समाज में जरूरत से जयादा नकाब घर में तो ठीक है वेशक वहां भी जायज नहीं ठहराया जा सकता लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर यह नकाब वाकी लोगों के अन्दर दहसत व असुरक्षा का महौल पैदा करता है।


अब जबकि आतकंकवादी बुर्के को खुद को सुरक्षाबलों को धोखा देने के लिए उपयोग कर रहे हैं तो इन हालात में सभी सही दिशा में सोचने वाले लोगों को सरकार पर दबाब बनाकर भारत को इस कलंक से निजात दिलवाने की कोशिस कनी चाहिए ताकि आम जनता की रक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।


बैसे भी आज जब हम आधुनिकता के युग में जी रहे हैं व खुलेपन की बात कर रहे हैं तो हमें हैरानी होती है ये देखकर कि खुलेपन के ठेकेदार धर्मनिर्पेक्षतावादियों को बुर्के के पीछे दफन कर रखी गई होनहार मुसलिम लड़कियों की घुटन कभी महसूस नहीं होती अगर होती भी है तो मुसलिम आतेंकवादियों के डर से डंके की चोट पर उनकी बोलती बन्द रहती है।










5 टिप्‍पणियां:

बलबीर सिंह (आमिर) ने कहा…

मित्र ऐसी बात नहीं है, पापी तो पाप करता है जहां बुर्का नहीं है वहां भी पाप होते हैं बस तरीका जुदा होता है, इस लिए गांधी जी का बात मानो पाप से दूरी पापी से नहीं

HAKEEM YUNUS KHAN ने कहा…

जहां बुर्का नहीं है वहां भी पाप होते हैं बस तरीका जुदा होता है, Yahan to Imandar log bhi rehte hain .

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

अब तक बुर्के का गलत उपयोग ही ज्यादा हुआ है... महिलाओं के शोषण और अपराध को छुपाने के मामले में प्रतिबन्ध की बात जनहित में जायज है.

सूबेदार ने कहा…

वास्तव में अपने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है मुसलमान भाइयो को भी बिचार करना चाहिए ,बुरका तो अरब देश क़े लिए था वह भारत क़े लिए प्रासंगिक नहीं है समय क़े अनुसार बदलने की आवस्यकता है मुसलमानों को भारतीय परिवेश में ढलने की आवस्यकता है जो सेकुलरिस्ट मुसलमानों को भड़काते है वे इनके हितैसी नहीं है वे इन्हें मुर्ख समझते है और मुसलमान भारतीय न बनाने पाए उनका यह प्रयास रहता है जिससे उनकी वोट की खेती होती रहे.समय की आवस्यकता है की विश्व क़े अनेक देशो की भाति भारत में भी बुर्का पर प्रतिबन्ध लग्न चाहिए.

सूबेदार ने कहा…

सुनील जी
नमस्ते
अपने बहुत ही अच्छा मुद्दा उठाया है आज समय की आवस्यकता है की बुर्का पर प्रतिबन्ध लगाया जाय वैसे भी यह अरबियन राष्ट्राबाद क़ा प्रतिक है समय क़े अनुसार मुसलमानों को भी इस पर बिचार करना चाहिए कि भारतीय बनकर रहे जो तथाकथित सेकुलर जो मुसलमानों की तरफदारी करते है वे मुसलमानों क़े हितैसी नहीं है वे तो इन्हें मुर्ख सकझ कर केवल वोट की खेती करते है जिस दिन मुसलमान राष्ट्र की मुख्य धारा में जुड़ जायेगा उसी दिन इसके ऊपर से आतंकबाद क़ा ठप्पा समाप्त हो जायेगा.