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मोदीराज लाओ

मोदीराज लाओ
भारत बचाओ

सोमवार, 30 अगस्त 2010

NGOs के माध्यम से चर्च के भारत-विरोधी षड्यन्त्र- 5

संक्षेप में NGOS के मुख्य षडयन्त्र



1. हिन्दू समाज की कमजोरियों का उपयोग कर हिन्दूविरोधी-देशविरोधी महौल बनाकर स्थानीय व क्षेत्रीय संघर्ष पैदा कर भारत को खण्डित करना।


2. चर्च की पकड़ से बाहर के बुद्धिजीवियों के शोध ,प्रलेखन,सामग्री, प्रकाशित करना। उन्हें गोष्ठियों और सम्मेलनों आदि की सुविधायें देकर उन्हें चर्च के भारत विरोधी षडयन्त्रों में शामिल करना।


3. गैर धार्मिक नारों –जैसे गरीबों का विकास ,आम आदमी का विकास,पीड़ितों की गुलामी से मुक्ति व मूलगामी ढ़ांचे का निर्माण आदि के नाम पर नागरिकों का सहयोग प्राप्त करना। हिन्दूओं को आपस में लड़वाकर उनके एक हिस्से को देशविरोधी मुसलिमों व ईसाईयों के साथ मिलाकर उन्हें राष्ट्रवादी ताकतों के विरूद्ध केन्द्रित करना।


4. समस्याओं से ग्रसित लोगों को भड़काकर देश के विभिन्न हिस्सों में अलगाववादी अन्दोलन खड़े कर देश को विभाजित करने के प्रयत्न करना।


5. उत्तर-पूर्व (NORTH EAST) में अलग जनजातीय पहचान का नाम देकर ईसाई प्रभुत्व वाला हिस्सा काटकर अलग देश का निर्माण करना।


चर्च के इन्हीं षडयन्त्रों को अन्जाम देने के लिए टैरेसा को पहले मिटीया का उपयोग कर “ मदर टैरेसा ” के नाम से मसहूर किया गया बाद में “भारत रत्न ” दिलवाकर अन्य अलगाववादियों का हौसला बढ़ाया गया।


पशचिम वंगाल में नक्सलवाद व माओवाद की समस्या टैरेसा की ही देन है न कि कानू सन्याल, की जैसा कि प्रचारित किया जाता है। आज लालगढ़ में बह रहा हिन्दूस्थानियों का खून टैरेसा की मेहनत का ही परिणाम है। टैरेसा ने चर्च के आदेश पर इन्हीं NGOS के माध्यम से अलगाववादियों की फौज तैयार की । माओवादियों को आर्थिक मदद का सबसे बढ़ा स्त्रोत चर्च ही तो है।


राजीव गांधी नाम का NGO जिसकी प्रमुख एंटोनिया उर्फ सोनिया गांधी है । यह NGO भारत में ओपस-डी का प्रतिनिधित्व करता है मतलब उसके भारत विरोधी षडयन्त्रों को अनजाम देता है। ये NGO बिल्कुल वही काम करता है जैसा हैरीटेज फांउडेशन आफ वाशिंगटन करता है। आपको याद होगा कि इन्द्र कुमार गुजराल की सरकार से समर्थन वापस लोने के बाद एंटोनिया उर्फ सोनिया सीधे हैरीटेज फांउडेशन के सेमीनार में अगले आदेश प्रप्त करने गयी थी।


बोफोर्स दलाली कांड व CWG COMMON WEALTH GAMES में सारे भ्रष्टाचार की जड़ चर्च की एजैंट एंटोनिया है। कलमाड़ी जैसे लोगों के पास कुछ नहीं है सिवाय बदनामी के।


चर्च द्वारा संचालित इस हिन्दूविरोधी-देशविरोधी युद्ध का एक मात्र हल COUNTER ATTACK है। यही समय की पुकार है अगर राष्ट्र को बचाना है तो।
                                           मूल लेखक देवेन्द्र चौधरी  और सहयोगी
                                             संपादक सुनील दत्त































रविवार, 29 अगस्त 2010

NGOs के माध्यम से चर्च के भारत-विरोधी षड्यन्त्र-4



आयातित कार्य योजनायें


देशविरोधी कार्यक्रमों संगठनों की पहचानकर उनके बीच सम्पर्कसूत्र स्थापित कर जानकारी एकत्र कर उसका अदान प्रदान करना। देशविरोधी षडयन्त्रों को अन्जाम देने के लिए प्रशिक्षण देकर योजना बनाना—जैसे महाराष्ट्र व पश्चिम उत्तर प्रदेश में शरद जोशी व महेन्द्र सिंह टिकैत के अन्दोलन। दोनों का पर्यवसन राजनैतिक पक्ष में हो गया और टास्कफोर्स का प्रमुख शरदजोशी बन रए जो कि देश के लिए चिन्ता की बात है।


जातिसंघर्ष भड़काना


I. अनुसुचित जाति व जनजाति की शिकायतों की पहचान करने के लिए अध्ययन करना व उसका अपने हिसाब से दुरूपयोग करने का प्रयत्न करना।


II. कार्य का लेखन करना व उसे अपने गुटों तक पहुंचाना।


III. अनुसुचित जाति व जनजाति के बीच अपने षडयन्त्रों के अनुकूल नेतृत्व तैयार करना।


IV. जाति अधारित विभाजन की भूमिका बनाने के लिए देशविरोधी नेता तैयार करना।


V. स्थानी संघर्षों को जातीय संघर्ष का नाम देकर उसे अन्तराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक प्रचार देना।


VI. कुल मिलकार देश के छोटे-छोटे घरेलू व स्थानीय झगड़ों को बड़ाचडढ़ाकर पेशकर देश में हिन्दूविरोधी-देशविरोधी महौल बनाना।


अपने इन सब षडयन्त्रों को अन्जाम देने के लिए निर्माण किया


i. DS4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिती).


ii. वामसिफ( बहुजन एण्ड माइनारिटीज कम्यूनिटी).


iii. इन्साफ नाम का गिरोह मराठवाड़ा में।


iv. दलित बोयास दक्षिण में


जनजातिय नीति


a) जनजातियों को प्रसासनिक ,राजनैतिक , आर्थिक व सामाजिक एकता के विरूद्ध मोड़ना।


b) विविध मुक्ती मोर्चा की स्थापना कर अराजकता के लिए संघर्ष निर्माण करना। जैसे


i. बोडो क्षेत्र में वनवेशवर ब्रह्म की हत्या


ii. त्रिपुरा में शांति बाबा की हत्या


iii. जनजातिय क्षेत्रों में संघ प्रचारकों की हत्या


iv. गेगांग अपांग को मेघालय के मुख्यमन्त्री पद से अपदस्थ करने का प्रयास


v. मेघापाटेकर--गौतम नबलखा— अग्निवेश व अरूंधती राय जैसे हिन्दूविरोधी-देशविरोधी लोगों को आगे बढ़ाना।


विविध लड़ाकु गुटों का निर्माण करना जैसे






i. काष्टकरी संगठन


ii. श्रमिक मुक्ति सेना


iii. सर्वहारा अन्दोलन


iv. शोषित जन अन्दोलन


v. भूमि सेना


vi. आदिवासी हक संघर्ष समिति


vii. आदिवासी एकता समिति आदि-आदि---


चर्च के षडयन्त्रों को अन्जाम देने के लिए चर्च के माध्यम से विदेशों से धन प्रात करने वाले NGOS


1. वचन


2. तुलसी ट्रस्ट


3. जाणीव गुट


4. प्रवोधन सेवा मण्डल


5. जन सेवा ट्रस्ट


6. नव ट्रस्ट


7. नव दृष्टि


8. नया जीवन( ठाणे महाराष्ट्र)


9. जन कल्याण ट्रष्ट


10. प्राइड इन्डिया


11. हैलो इन्डिया


12. मिशन इन्डिया


13. आशादीप


14. नव सर्जन ट्रस्ट


15. हेल्पेज इन्डिया


आदि-आदि


मार्ट 2010 तक सिर्फ हिमाचल प्रदेश में ही इनकी संख्या 4000 से अधिक है। यही हाल सारे देश का है।


बुधवार, 25 अगस्त 2010

Who has gone mad Congress or Media or both?





आज पुलिस अधिकारियों की बैठक में गृहमन्त्री चिदम्वरम ने चर्च के हिन्दूविरोधी-देशविरोधी एजंडे को आगे बढ़ाते हुए एक वार फिर भगवा आतंकवाद वोले तो हिन्दू आतंकवाद का खतरा बताते हुए आरोप लगाया कि इससे पहले मुसलमानों पर हिन्दू आतंकवादी बहुत से हमले कर चुके हैं!


आपकी जानकारी के लिए बता दें की हिन्दूओं पर आतंकवादी होने का सबसे पहला आरोप कांग्रेस व मिडीया ने 2007 में लगाया । कांग्रेस व मिडीया ने कुल मिलाकर 3 से 5 मुसलिम आतंकवादी हमलों को हिन्दू आतंकवादी हमला कहकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश की।


2004 में मुम्बई पर हुए मुसलिम आतंकवादी हमले का दोष हिन्दूओं के सिर मढ़ने की कोशिश की लेकिन जांबाज पुलिस जवानों द्वारा कशाब को जिन्दा पकड़ लेने के कारण कांग्रेस व मिडीया का हिन्दूविरोधी षडयन्त्र सफल न हो सका वरना कांग्रेस व मिडीया ने तो आतंकवादियों की कलाई में कंगन बन्धे होने की बात कहकर मुसलिम आतंकवादी हमले को निर्दोष देशभक्त हिन्दूओं पर मढ़ना शुरू कर दिया था। क्योंकि इस हमले में हेमन्त करकरे व मुसलमान भी मारे गय थे इसलिए कांग्रेस व मिडीया का कुतर्क था कि मुसलिम आतंकवादी मुसलमान को नहीं मार सकते व क्योंकि हेमन्त करकरे पर दबाब बनाकर कांग्रेस ने हिन्दू आतंकवाद का झूठ फैलाया था इसलिए उन्हें भी मुसलमान नहीं मार सकते ऐसा कुतर्क कांग्रेस व मिडीया ने पैदा किया।।


इसी कुतर्क को आधार बनाकर मस्जिदों पर हुए मुसलिम आतंकवादी हमलों को हिन्दूओं के सिर मढ़ा जा रहा है। अब चर्च व अरब देशों के हाथों विके हुए गद्दारों को कौन समझाए कि आतंकवाद का प्रायवाची ही इसलाम है--- आतंकवादी हमले करना मुसलमानों के genes में है आगर गैर-मुसलिम मिलें तो हमले पहले गैर-मुसलिमों पर अगर गैर मुसलिम न मलें तो हमले मुसलमानों पर ---खून तो बहाना ही है क्यों खून न बहायेंगे तो इनका अल्लहा जिन्दा कैसे रहेगा क्योंकि ये अल्लहा तो सिर्फ खून का प्यासा है।


आगर इनके कुतर्क के सही मान लिया जाए तब तो सारे संसार में पाकिस्तान मुसलिम देशों पर हो रहे मुसलिम आतंकवादी हमलों को मुसमान नहीं वल्कि हिन्दू ही अन्जाम दे रहे हैं वो हिन्दू जो खुद अपने देश भारत में हिन्दूओं पर मुसलमानों व इसाईयों द्वारा किए जा रहे हमलों व धर्मांतरण का अपनी हिंसा विरोधी निती के कारण प्रतिकार नहीं कर सके।


भारत पर 1970 से आज तक कुल मिलाकर 10000 से अधिक मुसलिम आतंकवादी हमले हो चुके हैं जिनमें एक लाख से अधिक हिन्दू मारे जा चुके हैं।

 http://khabar.ibnlive.in.com/news/6095/2

अकेले कशमीर घाटी में ही मुसलमानों ने 60000 से अधिक हिन्दूओं का कत्ल कर पांच लाख से अधिक हिन्दूओं को अपने ही देश में वेघर कर दिया।



असाम में भी मुसलिम आतंकवादियों द्वारा कांग्रेस के सहयोग से हिन्दूओं का कतलयाम व हिन्दूओं को वेघर करने का खेल यथावत जारी है।


उतर-पूर्व में इसाई आतंकवादियों द्वारा हिन्दूओं का कतलयाम कर उन्हें डरा धमकाकर धर्मांतरण कर ईसाई बनाने न बनने की स्थिति मे पलायन करने को मजबूर करने का क्रम जारी है। परिणामस्वारूप उतर-पूर्व के कई राज्यों में ईसाईयों की जनशंख्या 98 प्रतिशत तक पहुंच गई है। केरल में मुसलिम व ईसाई आतंकवादी मिलकर हिन्दूओं पर हमले कर रहे हैं। हमलों में खुद को ईसाईयों से आगे बताने के लिए अभी हाल ही में मुसलिम आतंकवादियों ने एक ईसाई प्रफैसर के हाथ काट डाले।



क्या आपने कभी कांग्रेस व मिडीया से कभी सफेद आतंकवाद वोले तो ईसाई आतंकवाद या हरा आतंकवाद वोले तो मुसलिम आतंकवाद नाम के शब्द सुने नहीं न?


यह वही कांग्रेस व मिडीया हैं जो लगातार ये कहते नहीं थकते थे कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता ।


लेकिन चर्च द्वारा अपनी रणनिती में बदलाब के साथ ही पिछले कुछ वर्षों से लागातार कांग्रेस व मिडीया वार-वार हिन्दू आतंकवाद- भगवा आतंकवाद शब्द प्रयोग कर सारे संसार में हिन्दूओं को बदनाम करने के अपने षडयन्त्र को आगे बढ़ा रहे हैं।


आज हिन्दूओं को आतंकवादी कहकर बदनाम वाले गद्दार वही लोग हैं जिन्होंने शहीद भगतसिंह व शहीद चन्द्रसेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों को भी आतंकवादी व उग्रवादी कहकर सम्बोधित किया था।










मंगलवार, 24 अगस्त 2010

NGOs के माध्यम से चर्च के भारत-विरोधी षड्यन्त्र-3

यह नियति का ही खेल था कि 1980 में दोबारा इन्दिरा गांधी को सता मिली।चर्च के बिछाए जाल में राजीव गांधी के फंस जाने के बाद इन्दिरा गांधी की हत्या करवाकर राजीव गॉँधी को प्रधानमन्त्री बनाकर चर्च ने परोक्ष रूप से शासन चलाने का प्रयास किया। चर्च ने दुनिया में भारत की छवि खराब करने व लोगों को अपने जाल में फंसाने के लिए राजीब गांधी से घोषणा करवा दी कि “केन्द्र एक रूपया भेजता है पर उसका 15 पैसा ही काम में लगता है ” । ये वक्तव्य बहुत प्रसिद्ध हुआ । इसी वक्तव्य के माध्यम से चर्च ने गृह मन्त्रालय के माध्यम से विदेशी धन सीधे अपने एजंटो तक पहंचाने का कानूनी हक प्रप्त कर लिया। इसी धन के माध्यम से चर्च ने देशभर में कांग्रेस के परम्परागत कार्यकर्ता के समानान्तर अपने एजेन्टों का जाल पूरे देश में फैला दिया। इन एजेंटों के गिरोह को नाम दिया गया NGO.



NGO S के माध्यम से भारत वोले तो हिन्दूओं के विरूद्ध षडयन्त्रों का असली खेल शुरू हुआ । जो कांग्रेस 1984 में प्रचण्ड बहुमत के साथ आयी थी तथा कशमीर से कन्याकुमारी तक जिसका एकछत्र शासन था मात्र 5 वर्ष बाद एक क्षेत्रीय पार्टी बनकर रह गयी।


इसके बाद चर्च ने परोक्ष शासन के बजाए भारत पर सीधा शासन करने का निर्णय किया और राजीव गांधी की हत्या करवा दी गई। चर्च को उम्मीद थी कि राजीव गांधी के कत्ल के बाद एंटोनिया उर्फ सोनिया को 1984 जैसा बहुमत मिलेगा तथा चर्च देश के सब कानून अपने हिसाब से बदल लेगा। लेकिन ऐसा हो न सका। फिर चर्च के रास्ते में जो भी आता गया चर्च उसका कत्ल करवाता गय़ा । सीतारम केसरी को बाहर का रस्ता दिखाया जाना ,जितेन्द्र प्रसाद ,राजेश पायलट तथा माधवराव सिंधिया जैसे कदाबर जननेताओं का मरवाया जाना इसी षडयन्त्र का हिस्सा था। इन सबको मरवाने के पीछे CIA व KGB जैसी संस्थाओं का सीधा हाथ था। इस तरह अन्ततोगत्व चर्च ने अपने एजैंटो व एंटोनिया उर्फ सोनिया गांधी के माध्यम से देश पर अपना सीधा नियन्त्रण कर लिया।


III


चर्च ने अपने षडयन्त्रों को अन्जाम तक पहुंचाने के लिए भारत में नक्सलवाद, नैहरू-गांधी वंशवाद , खालिस्थान तथा अन्य अनेकों देश विरोधी गतिविधियों को नियोजित तरीके से आगे बढाया । देश में अधिकतर NGOS व मीडिया NETWORKS पोप की सेना के सिपाही हैं । इन्हें इनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मुंह मांगा धन दिया जाता है। NGOS को कोई वेतन नहीं दिया जाता न ही NGOS अपनी मर्जी से कुछ कर सकते हैं । चर्च सारा काम इस तरह नियोजित करता है कि NGOS चर्च द्वरा आबंटित प्रोजैक्टों को क्रियांनवित करने की प्रक्रिया में ही अपना मन मापिक धन निकाल लेते हैं व चर्च द्वारा निर्धारित हिन्दूविरोधी-देशविरोधी षडयन्त्रों को भी अन्जाम देते हैं। इस धन का मुख्य स्त्रोत हैCASA (CHURCH AUXILIARY FOR SOCIAL ACTION) जो कि विभिन्न देशों से आनेवाले काले धन पर प्रशासनिक नियंत्रण करता है। कुल मिलाकर इन NGOS के लिए REVENUE BANK की भूमिका आदा करता है। हिन्दूविरोधी-देशविरोधी कार्यों को अन्जाम देने के लिए NGOS के माध्यम से विविध समूह तय किए गए हैं।


1. जनजाति


2. अनुसूचित जाति


3. असंगठित मजदूर


4. गांव व शहर के निर्धन


5. महिलायें


6. नसैड़ी पुरूष


7. जातिवादी गैर जनजाति व अनुसूचित जाति नेता



कार्य योजना के चरण


i. उग्र संघर्ष में शामिल होकर कार्यरत दलों में अपने षडयन्त्र को अन्जाम देने के लिए उन्हें संगठित करना।


ii. सामजिक न्याय व परिवर्तन के नाम पर षडयन्त्र को आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है के विविध पहलुओं का अध्ययन करना ।


iii. धार्मिक एवं सामाजिक कमियों को चर्च के षडयन्त्र को अन्जाम देने के लिए कैसे उपयोग करना। इस पर अपने अनुभवों व प्रलेखन पर चिन्तन करना।


iv. जनसाधारण के कष्टों व संघर्षों को किस तरह देश के विरूद्ध उपयोग करने के बारे में सांप्रदायिक आधार पर चिन्तन।


विकेन्द्रीकरण


दीर्घकालीन षडयन्त्रों को अन्जाम देने के लिए विविध भौगोलिक स्तरों पर हिन्दूविरोधी-देशविरोधी षडयन्त्रों का विकेन्द्रीकरण करना।


I. हिन्दूविरोधी-देशविरोधी कार्य को दृढता देना


II. हिन्दूविरोधी-देशविरोधी ईसाई और गैर ईसाई नेतृत्व का विकास


III. विविध शैक्षिक और बुद्धिजीवी अन्दोलनों को हिन्दूविरोधी-देशविरोधी दिशा देने के उद्देश्य से सम्पर्क करना।


IV. हिन्दूविरोधी-देशविरोधी षडयन्त्रों को आगे बढ़ा रहे समान उदेश्य और चिन्तन वाले व्यक्तियों व गिरोहों से सम्पर्क करना।


V. स्थानी य संघर्षों को राष्ट्रीय और अन्तर-राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ जोड़कर उन्हें हिन्दूविरोधी-देशविरोधी षडयन्त्रों को आगे बढ़ाने के लिए उपयोग करना।


आयातित कार्य योजनायें


देशविरोधी कार्यक्रमों संगठनों की पहचानकर उनके बीच सम्पर्कसूत्र स्थापित कर जानकारी एकत्र कर उसका अदान प्रदान करना। देशविरोधी षडयन्त्रों को अन्जाम देने के लिए प्रशिक्षण देकर योजना बनाना—जैसे महाराष्ट्र व पश्चिम उत्तर प्रदेश में शरद जोशी व महेन्द्र सिंह टिकैत के अन्दोलन। दोनों का पर्यवसन राजनैतिक पक्ष में हो गया और टास्कफोर्स का प्रमुख शरदजोशी बन रए जो कि देश के लिए चिन्ता की बात है।


रविवार, 22 अगस्त 2010

NGOs के माध्यम से चर्च के भारत-विरोधी षड्यन्त्र-2


इसी पोलो प्रेरो नाम के पादरी ने मार्कसवाद तथा चर्च दोनों का घोलमेल किया। यह पादरी एक स्थान पर लिखता है कि “मैं ब्राजील की गन्दी बस्तियों में मार्क्श के कारण नहीं अपितु ईसा के कारण आया। बस्ती के लोगों ने मुझसे कहा, कि जाइए “ मार्क्स को जानिए” उनकी जिद ने मुझे मार्क्स के पास भेजा।अब में सहज रूप से दोनों को जानता हूं।”



WCC (WORLD COUNCIL OF CHURCHES) की 1969 में नई दिल्ली में बैठक हुई जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि “चाहे हम स्वीकार करें या न करें लेकिन भारत में कायकल्प हो रहा है और इसाई नेतृत्व के बिना यहां सब उल्टा हो जायगा मतलब लोग चर्च की पकड़ से बहुत दूर चले जायेंगे।” यहां चर्च की पकड़ बनाने के लिए अत्याचार,भेदभाव,और पक्षपात को बढ़ाबा देना अति आवश्यक है। इससबके बाद जो संघर्ष उत्पन्न होगा उसमें चर्च उत्पीड़ित के साथ खड़ा होकर हिन्दू समाज का विनाश सुनिश्चित करेगा। इसी फूट डालो और पकड़ बनाओ के भाव से प्रेरित होकर पेरू के विशप “गुस्ताव गुतिरेज” ने मुक्ति दर्शन नामक किताब लिखी और सारे विचार को गम्भीरता से आगे बढ़ाने का षडयन्त्र रचा।1969 में ही वंगलौर में ALL INDIA CATHOLIC SEMINAR में इस विभाजनकारी विचार को पूर्ण रूप से सवीकार कर लिया गया। हिन्दू समाज को विखण्डित करने वाले इसी विचार को पोप पालVI ने अपने पत्रों के माध्यम से इस षडयन्त्र को प्रोत्साहित किया।


1970 में पश्चिमी जर्मनी के आनाल्ड शैन में WCC (WORLD COUNCIL OF CHURCHES)की कार्यसमिति ने इस षडयन्त्र को आगे बढ़ाने के लिए विशेषकोष से अनुदान देने के आदेश जारी किए। कोष की आय का उपयोग कल्याणकारी कार्यों की अपेक्षा हिन्दू समाज के विरूद्ध रचे गए षडयन्त्र को अंजाम देने में किया जायगा ऐसा निर्णय लिया गया। इसी बैठक में इस षडयन्त्र को अंजाम देने वाली योजना के परिणामस्वरूप होने वाली हिंसा का विरोध भी हुआ लेकिन उसे दबा दिया गया। 1970 में ही आकलैंड में हुई कार्यशाला में षडयन्त्र को अमलीजामा पहनाने के लिए सूत्र दिया गया “ लोग अपने स्वार्थ से संगठित होते हैं यही पद्धति ही जनसंघर्ष को जन्म देती है।”


इसी षडयन्त्र को अंजाम देने के लिए चर्च ने ऐसे कार्यक्रम और कार्यविधी अपनाने के आदेश दिए जिनका कि नैतिकता,धर्म और आध्यातमिकता से दूर का भी बास्ता नहीं था। प्रभु से प्रेम का पाठ छोड़ कर अपने पड़ोसी को प्रेम के नाम पर भगाने, शांति की जगह हिंसा का उपयोग करने की राजनैतिक भूमिका चर्च ने स्वीकार कर ली। जिसकी पृष्ठ भूमि में चर्च का गरीबों के प्रति प्यार नहीं अपितु चर्च ने अपने अस्तित्व को बनाय रखने के लिए हिन्दू को हिन्दू से लड़वाकर-मरवाकर अपनी ईसाईयत को आगे बढ़ाने का षडयन्त्र रचा जिसे नाम दिया गया सेवा कार्य का।


“भारतीय चर्च एवं उपलब्धियां” नामक पुस्तक के सम्पादकीय में स्वीकार किया गया है “आज यीशु का संदेश घोषित करने के पुराने परंम्परावादी तरीके अर्थहीन हो गए हैं ।इसलिए हम ईसाईत के प्रचार के लिए नये विभाजनाकरी तरीके नए क्षेत्रों में अपना रहे हैं”


II






भारत में जड़ें जमाने के लिए चर्च की नजर इन्दिरा नेहरू-गांधी परिवार पर थी जो कि अपने आप को इस देश में एक राज परिवार के रूप में स्थापित कर चुका था।एक योजनाबद्ध तरीके से एंटोनिया उर्फ सोनिया को इस परिवार में स्थापित (PLANT) किया गया मतलब प्रवेश कराया गया।


चर्च ने अपने लोगों का प्रयोग कर पुराने कांग्रेसी नेताओं को कांग्रेस से अलग कर कांग्रेस का विभाजन करवाया ।इन्दिरा गांधी से “ गरीबी हटाओ ” का नारा चर्च ने दिलवाया अन्ततोगत्वा देश में आपातकाल की घोषणा के पीछे भी चर्च का ही हाथ था।


आपातकाल की आड़ में सारे निर्णय इन्हीं सलाहकारों ने लिए तथा सारा दोषारोपण संजय गाधी तथा वंसीलाल के सिरमढ़ दिया। बाद में संजय गांधी की हत्या करवा दी क्योंकि संजय गांधी एक देश भक्त होने के नाते चर्च की योजनाओं को साकार होने में बाधा उतपन्न कर रहा था।


शनिवार, 21 अगस्त 2010

NGOs के माध्यम से चर्च के भारत-विरोधी षड्यन्त्र-1




विश्वभर में ईसाईयत के इतिहास में द्वितीय विश्वयुद्ध से एक नए पतन का सूत्रपात हुआ।युद्ध के अन्त में चर्च ने व्याकुलता से देखा कि अमेरिका के नेतृत्व में पशचमी ईसाई ताकतें विजयी हुई लेकिन 16वीं शताब्दी से बढ़ते जा रहे उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद संवेग रूक गया व क्षीण होना शुरू हो गया।जिसके निम्न परिणाम हुए।।।


1. राजा व प्रजा दोनों के ईसाई होने के बाबजूद यूरोप व रूस और उसकी कठपुतली सरकारों से चर्च का नियन्त्रण समाप्त हो गया। 1949 में इसी समूह में चीन भी शआमिल होगया जिससे चर्च को और धक्का लगा।


2. विश्व युद्ध के दौरान अन्दर से कमजोर होने व आजाद हिन्द सेना के डर से ईसाई सम्राज्यवाद को भारत से भी हटना पड़ा परिणामस्वारूप एशियाई व अप्रीकी देशों में स्वतन्त्रता अन्दोलनों ने जोर पकड़ा व बहुत से देश स्वतन्त्र राज्य बन गए।


3. विदेशी उपनिवेशवादियों और दमनकारियों का पोषक होने के कारण शासन की समाप्ति के साथ ही चर्च पर हमले होने शुरू हुए।चीन की देशभक्त सरकार ने अपने यहां से 1950-51 तक सब ईसाई मिशनरियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया।


4. भारत में बेशक ईसाईयों के चाटुकार नेहरू जैसे नेता चर्च के प्रभाव को बचाने का हर सम्भव प्रयास कर रहे थे पर जनता में इतना रोष था कि लोगों ने कुतों के नाम तक ईसाई रखने शुरू कर दिए। इसी प्रकार लगभग सब नवस्वतन्त्र देशों में धर्मांतरण की संम्भावनायें क्षीण होती चली गईं।


5. विश्वयुद्ध के पश्चात चर्च को अपने केन्द्रस्थल यूरोप और अमेरिका में अयन्त गम्भीर संकट का सामना करना पड़ा।औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वारूप इन देशों में अति भौतिकवादी व सुविधाभोगी समाज की रचना हुई जिसकी चर्च में कोई आस्था नहीं थी। क्योंकि चर्च ने हमेशा एक राजनीतिक संस्था के रूप में काम किया है इसलिए आध्यातमिकता के अभाव के कारण नई पीढी की चर्च में कोई रूचि नहीं थी।बेशक शासनाध्यक्ष द्वारा बाईबल की शपथ लेने के बाबजूद जनता व चर्च में गृहयुद्ध जैसी स्थिति थी।USA व अफ्रीकी देशों में काले लोगों की शक्ति बढ़ रही थी। काले इसाई लोगों व गोरे इसाई लोगों के बीच संघर्ष तीव्र हो रहा था।क्यूवा में फ्रिडेल कास्त्रो की क्रांति की सफलता के कारण अन्य अप्रीकी देशों में भी गोरिला युद्ध को बढ़ावा मिल रहा था। ऐसे में चर्च के सामने प्रश्न खड़ा हुआ कि भ्रष्ट तानशाहों का साथ दिया जाए या फिर बहुसंख्यक काले लोगों के संघर्ष में साथ दिया जाय। इससे पहले कि चर्च कोई निर्णय लेता कुछ विशप दक्षिणी अमेरिका में काले लोगों के पक्ष में संघर्ष में कूद पड़े और मुक्तियुद्द के प्रेरक बने।1960 में ब्राजील में जनजागरण करने वाले पालो प्रेरे नाम के पादरी को वहां की सरकार ने 1964 में नजरबन्द कर 1968 में देशनिकाला दे दिया।1971 में उसे WCC (WORLD COUNCIL OF CHURCHES)का परामर्शदाता चर्च ने नियुक्त किया।


इसी पोलो प्रेरो नाम के पादरी ने मार्कसवाद तथा चर्च दोनों का घोलमेल किया। यह पादरी एक स्थान पर लिखता है कि “मैं ब्राजील की गन्दी बस्तियों में मार्क्श के कारण नहीं अपितु ईसा के कारण आया। बस्ती के लोगों ने मुझसे कहा, कि जाइए “ मार्क्स को जानिए” उनकी जिद ने मुझे मार्क्स के पास भेजा।अब में सहज रूप से दोनों को जानता हूं।”

गुरुवार, 19 अगस्त 2010

समरसता के प्रेरणास्त्रोत हमारे डा. भीमराव अम्बेडकर जी--3

विभाजन के बाद Hindu Code Bill अम्बेडकर जी की हिन्दू समाज को सबसे बढ़ी देन है । इसी में अम्बेडकर जी ने ‘हिन्दू किसे कहते हैं, इसकी व्याख्या की जिसमें सपष्ट कहा गया कि विदेशी धारणाओं इस्लाम और इसाईयत को छोड़कर भारत में रहने वाले (हिन्दू-सिख-बौद्ध-जैन----इत्यादि) सब लोग हिन्दू हैं।



ये उन्हीं की दूरदर्शिता थी कि उन्होंने SC/St के नाम से वंचित हिन्दूओं के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था बनाकर अंग्रेजों के बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करने के षडयन्त्र को असफल किया।


अम्बेडकर जी ने सबको राजकीय समानता दिलवाते हुए सबके लिए एक ही वोट का प्रावधान किया। डा. भीमराव अम्बेडकर जी ने 1965 में कहा कि वेशक मेरा जन्म हिन्दू धर्म में हुआ है पर हिन्दू के रूप में मैं मरूंगा नहीं ।


अपनी जिन्दगी में जाति के कारण भी कई तरह के असहनीय कष्ट सहने के बाद भी उन्होंने हिन्दू हित के लिए काम करते हुए अन्त में बौद्ध मत अपनाया जो कि हिन्दू समाज का अपना ही मत है इसलिए उसे धर्मांतरण नहीं कहा जा सकता। उन्होंने किसी विदेशी अबधारणा को नहीं अपनाया। ये भी उनके मन में अपने देश-संस्कृति के प्रति अटूट प्रेम को दर्शाता है।


हैदराबाद के निजाम द्वारा 40 करोड़ ( आज आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितना अधिक धन बनता है ये) व औरंगावाद में बंगला,जमीन का प्रलोभन देने के बाबजूद डा. भीम राव अम्बेडकर जी ने अत्याचारी इस्लाम स्वीकार नहीं किया ।


इसी तरह उन्हें ईसाईयों द्वारा ईसाईयत अपनाने के लिए भी कई तरह के प्रलोभन दिए गए लेकिन उन्होंने ईसाई बनना भी सवीकार नहीं किया।


वो अच्छी तरह जानते थे कि ये दोनों विदेशी अवधारणायें देशहित-हिन्दू हित में नहीं हैं ।


उन्होंने अपने वंचित हिन्दू भाईयों को सपष्ट आदेश दिया कि बेशक अपने हिन्दू भाईयों में कमियां हैं वो गुलामी के प्रभाव के कारण स्वर्ण मानसिकता के शिकार हैं पर अत्याचारी मुसलमान व लुटेरे ईसाई किसी भी हालात में हमारे हित में नही हो सकते ।


आज जिस तरह धरमांतरित हिन्दूओं को दलित व काले ईसाई कहकर पुकारा जा रहा है व धर्मांतरित हिन्दूओं को जिस तरह पाकिस्तान व बंगलादेश में मस्जिदों में बमविस्फोट कर मारा जा रहा है ,मुहाजिर कहा जा रहा है भारत में भी मुसलिम बहुल क्षेत्रों में निशाना बनाया जा रहा है उसे देख कर आप समझ सकते हैं कि डा. भीमराव अम्वेडकर जी कितने दूरदर्शी व देशहित-हिन्दूहित में कितने विस्तार से सोचने व निर्णय लेने में समर्थ थे।


दुनिया को धर्म सिखाना ही भारत की विभूतियों का काम है Deep Cultural Unity in our Society(India) में लिखते हैं कि आपस में झगड़ों के बाबजूद हिन्दू समाज एक है और एक रहेगा । मानसिकता में परिवर्तन के साथ ही ये झगड़े भी समाप्त हो जायेंगे।


1916 में लखनऊ पैक्ट में 13% मुसलमानों को 30% सीटें देने का उन्होंने कांग्रेस के हिन्दूविरोधी रूख के बाबजूद डटकर विरोध किया। उन्होंने कहा कि जो बात हिन्दू हित की नहीं वो देशहित की कैसे हो सकती है।आज हर देशभक्त को अपने घर में डा. भीमराव अम्बेडकर जी का चित्र लगाना चाहिए व उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रयत्न करना चाहिए।
                                                                                      अन्तिम कड़ी

बुधवार, 18 अगस्त 2010

समरसता के प्रेरणास्त्रोत हमारे डा. भीमराव अम्बेडकर जी----2




WHO ARE SHUDRAS में अम्बेडकर जी ने कहा जिस हिन्दू धर्म का ज्ञान इतना श्रेष्ठ है कि उस ज्ञान के प्रभाव से चींटी, सांप, तुलसी मतलब छोटे से चोटे जीव से लेकर पेड़-पौधों तक की पूजा करने वाला हिन्दू, हिन्दू को न छुए ऐसा कैसे हो सकता है ?



उन्होंने सपष्ट कहा कि समस्या धर्म की नहीं समस्या मानसिकता की है खासकर स्वर्ण मानसिकता जो गुलामी के प्रभाव के कारण विकृत हो चुकी है जिसे बदलने की जरूरत है । यदि स्वर्ण मानसिकता बदलेगी तो हिन्दू समाज बदलेगा ।


उन्होंने सत्याग्रह का शस्त्र उठाया। भगवद गीता को हथियार बनाया।तालाब के पानी हेतु---महाड़ सत्यग्रह ।नासिक के कालराम मन्दिर में प्रवेश हेतु सत्याग्रह किया लाठियां खाईं।


1935 में रूढ़ीबादिता व भ्रम के शिकार लोगों को Shock TREATMENT देते हुए कहा सुधरना है तो सुधर जाओ वरना मैं धर्मांतरण कर लूंगा। जबकि वासत्विकता यह है कि उन्होंने कभी धर्मांतरण किया ही नहीं। उनके सारे सहित्य में हिन्दू राष्ट्र शब्द का प्रयोग बार-बार हुआ है उन्होंने जातिविहीन समाज रचना, राष्ट्र संगठन सब पर लिखा है।


1947 में मुसलिम अलगावबाद के परिणास्वारूप देश का विभाजन हो गया । जिस पर अम्बेडकर जी ने सपष्ट कहा कि अब जबकि मुसलमानों को अलग देश दे दिया गया है तो हमें पाकिस्तान से सब हिन्दूओं को भारत ले आना चाहिए व भारत से सब मुसलमानों को पाकिस्तान भेज देना चाहिए ताकि मुसलमान अपने घर पाकिस्तान में सुख से रहें और हिन्दू अपने घर भारत में सुख से रहें। आज चारों ओर फैले मुसलिम आतंकवाद को देखकर आप खुद समझ सकते हैं कि डा. अम्मवेडकर जी कितने दूरदर्शी थे।


विभाजन के बाद Hindu Code Bill अम्बेडकर जी की हिन्दू समाज को सबसे बढ़ी देन है । इसी में अम्बेडकर जी ने ‘हिन्दू किसे कहते हैं, इसकी व्याख्या की जिसमें सपष्ट कहा गया कि विदेशी धारणाओं इस्लाम और इसाईयत को छोड़कर भारत में रहने वाले (हिन्दू-सिख-बौद्ध-जैन----इत्यादि) सब लोग हिन्दू हैं।

                                                                                             क्रमश:


मंगलवार, 17 अगस्त 2010

समरसता के प्रेरणास्त्रोत हमारे डा. भीमराव अम्बेडकर जी---1





19वीं शताब्दी में अनेक अवतारी महापुरूषों ने भारत की धरती पर जन्म लिया। 14 अप्रैल 1881 का दिन ऐतिहासिक दिन था। इस दिन डा. भीमराव अम्बेडकर जी का जन्म हुआ। वर्षप्रतिपदा 1889 को डा. हैडगेवार जी का जन्म हुआ । 1983 में डा. हेडगेवार जी के जन्मदिन वर्षप्रतिपदा पर समरसता शब्द डा. अम्बेडकर जी की ही देन है। परमपूजनीय गुरूगोविन्द सिंह ने क्रांति का सूत्रपात किया। “सिंह” शब्द नाम ने न्यूनता ग्रंथि से ग्रसित करोंड़ों के समाज को आन्दोलित , प्रेरित करने का यशस्वी प्रयत्न किया।


अवतारीमहापुरूषों का जीवन वाल्यकाल से ही संकटों में गुजरता है जिस प्रकार भगवान राम ,भगवान कृष्ण , स्वामी विवेकानन्द व गुरूगोविन्द सिंह जी का बाल्यकाल संकटों व संघर्षों में गुजरा---डा हेडगेवार जी का वाल्यकाल भी संकटों के दौर से ही गुजरा----डा. हेडगवार जी ने 13 वर्ष की आयु में ही अपने माता-पिता को एक ही चिता में मुखाग्नि देने के बाद सारा जीवन कष्टों व संघर्षों में बिताया।घर में चाय तक पीने के लिए पैसे उपलब्ध नहीं रहते थे।


उसी प्रकार डा. भीमराव अम्बेडकर जी का जीवन भी कष्टों व संघर्षों के लिए ही जाना जाता है। डा भीमराव अम्बेडकर जी ने भी न्यूनता ग्रंथि से ग्रसित करोंड़ों हिन्दूओं को एक नई राह दिखाई वो राह जो उनके अन्दर आत्मविश्वास व आशा का संचार करती थी।


डा. भीम राव जी के एक प्रिय गुरू जी का अन्तिम नाम अम्बेडकर था उन्हीं के नाम पर डा. भीमराव जी का नाम भीम राव अम्बेडकर हुआ। डा. भीमराव अम्बेडकर जी की माता जी का देहांत तो 5वर्ष की आयु में ही हो गया । फिर भी उन्हें अपने पिता जी से घर में ही अच्छे संस्कार मिले। मुम्बई में एक ही कमरे में दोनों रहते थे ।एक सोता था तो एक पढ़ता था इतना छोटा कमरा था वो। आगे चलकर इन्हें केअसकर नाम के व्यक्ति( सज्जन) मिले जिन्होंने इनका परिचय बड़ौदा के महाराजा सहजराव गायकवाड़ जी से करवाया ।गायकवाड़ जी ने इन्हें छात्रवृति लगा दी । गायकवाड़ जी ने अम्बेडकर जी को विदेश भेजा बाद में लन्दन गए। लन्दन में खरीदी पुस्तकें मालबाहक जहाज में भेजने के कारण डूब गईं जिनका मुआवजा 2000 रूपए मिला फिर बड़ौदा गए। Ph. D करने पर बड़ौदा आने के बाद अम्बेडकर जी को तरह तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा। जिससे उनके मन में पीड़ा तो हुई पर कभी उनके मन में कटुता पैदा नहीं हुई।


फिर उनके मन में LAW की पढ़ाई करने का विचार आया। कोहलापुर के महाराजा ने उन्हें लंदन भेजा। डा. अम्बेडकर जी ने संस्कृत सीखी ।स्पृश्य-अस्पृश्य क्या है जानने का प्रयत्न किया।वेद, उपनिषद् , भगवद गीता सबका डटकर अध्ययन किया --साहित्य लिखा। डा.अम्बेडकर जी अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि छुआ-छूत मुगलकाल की देन है । हिन्दू धर्म में इसका कोई स्थान नहीं। आर्य-द्रविड़ भेद पैदा करना अंग्रेजों की हिन्दूओं को आपस में लड़वाने की चाल है ऐसा उन्होंने खुद महसूस किया व ये सब उन्होंने लोगों को समझाने का भी प्रयत्न किया। आर्य बाहर से नहीं आए ये डा. अम्बेडकर जी ने कहा।


WHO ARE SHUDRAS में अम्बेडकर जी ने कहा जिस हिन्दू धर्म का ज्ञान इतना श्रेष्ठ है कि उस ज्ञान के प्रभाव से चींटी, सांप, तुलसी मतलब छोटे से चोटे जीव से लेकर पेड़-पौधों तक की पूजा करने वाला हिन्दू, हिन्दू को न छुए ऐसा कैसे हो सकता है ?


उन्होंने सपष्ट कहा कि समस्या धर्म की नहीं समस्या मानसिकता की है खासकर स्वर्ण मानसिकता की जो गुलामी के प्रभाव के कारण विकृत हो चुकी है जिसे बदलने की जरूरत है । यदि स्वर्ण मानसिकता बदलेगी तो हिन्दू समाज बदलेगा ।

                                                                                                  क्रमश:


रविवार, 15 अगस्त 2010

जब लोग अपनों की लाशों के ढेर पर बैठकर खुशियां मनायें ,मुबारकवाद दें तो भला कोई क्या जबाब दे?





इन्सान जिन्दगी में अक्सर ऐसे पलों से गुजरते हैं जिन्हें भूलकर भी भुलाया नहीं जा सकता।


भारत जिस पर पहला मुसलिम आतंकवादी हमला सातवीं सताब्दी में तब हुआ जब पहला मुसलिम आतंकवादी मुहमम्दविन कासिम भारत में अरब देशों से प्रवेश किया।



तब से लेकर आज तक मुसलिम आतंकवादियों ने पीढ़ी दर पीढ़ी पीछे मुढ़कर नहीं देखा । एक के वाद एक हिन्दूओं के नरसंहारों को अन्जाम दिया । हिन्दूओं की मां-बहन-बहु-बेटियों की इज्जत-आबरू से खिलवाड़ किया सो अलग।






मुसलमानों द्वारा किए गए हिन्दूओं के इतने कतलोगारद के बाबजूद भी कभी हिन्दूओं ने मुसलिम आतंकवादियों के विरूद्ध खुले युद्ध की घोषणा कर आक्रमणकारी इस्लाम को भारत से उखाड़ फैंकने की कसम नहीं उठाई ।


उल्टा आक्रमणकारी मुसलामन भारत के जिस हिस्से में भी 35 प्रतिशत से अधिक हो गए उस हिस्से से इन आतंकवादी मुसलमानों ने हिन्दूओं का नमोनिशान मिटा दिया।


हद तो तब हो गई जब 1946 में लगभग 15% मुसलामानों ने जिहादी आतंकवादी जिन्ना के नेतृत्व में हिन्दूओं के विरूद्ध खुले युद्ध की घोषणा कर डाली ।


जिसे नाम दिया गया DIRECT ACTION। जिसकी घोषणा होते ही कलकता में मुसलमानों ने 5000 हिन्दूओं का कत्ल कर एक बड़े क्षेत्र को हिन्दूविहीन किया उसके बाद बंगाल के ही नौखली नामक स्थन पर इससे बड़े पैमाने पर हिन्दूओं का कत्लयाम मुसलमानों द्वारा किया गया ।


जिसके बाद मुसलिम आतंकवादियों


 के सबसे बड़े हमदर्द मोहनदासकर्मचन्द गांधी को भी कहना पड़ा “ मुसलिम अत्याचारी राक्षस हैं व हिन्दू कायर” ।



ये आतंकवीदियों का हमदर्द भूल गया कि हिन्दूओं के इन नरसंहारों के लिए मुसलिम आतंकवादियों से ज्यादा जिम्मेदार नेहरू

व खुद गांधी जैसे मुसलिम आतंकवादियों के मददगार व हिन्दू एकता के विरोधी हैं जिन्होंने क्रांतिकारियों व हिन्दू संगठनों की हर उस कोशिश को अडंगा लगाया जिसमें देशभक्तों को गद्दारों के विरूद्ध संगठित करने की कोशिश की गई ।


परिणामस्वारूप गद्दार तो मस्जिदों व मदरसों के माध्यम से देशभक्तों के विरूद्ध युद्ध की तैयारी करते रहे लेकिन हिन्दू संगठनों द्वारा देशभक्तों को संगठित करने के लिए देशहित में उठाए गए किसी भी कदम को इन मुसलिम आतंकवादियों के समर्थकों ने देश के विरूद्ध बताकर मुसलिम आतंकवादियों को हिन्दूओं का एकतरफा नरसंहार अंजाम देने का खुला नयौता दे दिया।


क्योंकि हिन्दू किसी भी तरह से इन मुसलिम आतंकवादियों से लड़ने के लिए न तो तैयार थे न उन्हें ऐसी उम्मीद थी कि मुसलमान राक्षसों की तरह हिन्दूओं का कत्लयाम कर हिन्दूओं की मां-बहन-बहू-बेटियों को अपवित्र करने के लिए बैहसी जानवरों की तरह टूट पड़ेंगे।


ऐसा नहीं कि हिन्दूओं के साथ मुसलमानों ने ये राक्षसी व्यवहार पहलीबार किया हो लेकिन हिन्दूओं के अन्दर अपने जयचन्दों ने हमेशा मुलमानों से पड़ने वाले टुकड़ों के बदले अपने हिन्दू भाईओं को मुसलमानों के बारे में गलत जानकारी दी कि मुसलमान भी हिन्दूओं की तरह इन्सान हैं राक्षस नहीं।


लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी मुसलमानों को मौका मिला मुसलमानों ने सिद्ध कर दिया कि इस्लाम शैतानों और राक्षसों के समूह का दूसरा नाम है।


इस तहर 1946 में जिन्ना द्वारा DIRECT ACTION की घोषणा के साथ कलकता में 5000 निर्दोश निरीह हिन्दूओं का कत्ल कर जो हिन्दूओं का कत्लयाम शरू हुआ उसमें लाखों हिन्दूओं का कत्ल कर लाखों मां-बहन-बहू-बेटियों को अपवित्र किया गया।


जिसका परिणाम हुआ 14-15 अगस्त 1947 को भारत का तीन हिस्सों में विभाजन । आज के हालात में इसका सीधा सा उधारण है कशमीरघाटी जहां 60000 हिन्दूओं को कत्ल कर 500000 हिन्दूओं को वेघर कर आए दिन सैनिकों पर हमले किए जा रहे हैं।


हमें तो हैरानी होती है उन बौद्धिक गुलाम हिन्दूओं पर जो मुसलिम हिंसा के शिकार हुए लगभग 10000000 अपनों की लाशों व यातनाओं पर बैठकर इस दिन को स्वतन्त्रता दिवस कहकर संबोधित करते हैं व एक दूसरे को कत्लोगारत के इस दिन पर बधाईयों देते हैं।


वैसे भी शहीद भगत सिंह जी ने 23 वर्ष की आयु में अपनी कुर्बानी इसलिए दी थी ताकि शासन विदेशी इसाईयों से लेकर अपनी भारत मां की सन्तानों के हाथों में दिया जा सके लेकिन क्या आज देश आजाद है?
 आज भी तो बौद्धिक गुलाम हिन्दूओं की मूर्खता व कायरता की बजह से देश का प्रधानमंत्री एक विदेशी इटालियन अंग्रेज एंटोनिया का गुलाम है व देश को जिस मुसलिम आतंकवाद से छुटकारा दिलवाने के लिए नेहरू-गांधी ने देश का विभाजन स्वीकार किया आज देश का हर कोना उसी मुसलिम आतंकवाद का शिकार है।



भारत की आजादी तब तक अधूरी है जब तक हर आक्रमणकारी को देश से बाहर खदेड़ कर देश के हर कोने से आक्रमणकारियों की हर निशानी को तहश नहस नहीं कर दिया जाता


आओ आज के दिन देश को आक्रमणकारियों व उनकी कलंकित निशानियों से मुक्त करवाने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने का बीड़ा उठायें ..............


याद रखो


उस कौम का इतिहास नहीं होता जिसे मिटने का एहसास नहीं होता


एक जुट होकर मिलजुलकर कदम उठाओ ऐ हिन्दूओं


वरना तुम्हारी दास्तां तक न होगी दास्तानों में.......














गुरुवार, 12 अगस्त 2010

क्या बुर्का आतंकवादियों द्वारा सुरक्षाबलों को धोखा देने के लिए सुरक्षाक्वच के रूप में उपयोग किया जा रहा है?





आज संसार के अधिकतर देशों में मुसलिम आतंकवादियों के बढ़ते हमलों के परिणामस्वारूप आतंकवादियों द्वारा बुर्के को सुरक्षाक्वच के रूप में प्रयोग किए जाने के खतरे को ध्यान में रखते हुए एक के वाद एक देश बुर्का प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा रहा है या फिर प्रतिबन्ध लगाने का मन बना रहा है।


भारत में भी मुसलिम व माओवादी आतंकवादियों के षडयन्त्र अपने चर्म पर हैं।


हाल ही में लालगढ़ में माओवादी आतंकवादियों की रैली में पहुंची ममता बैनर्जी की सभा से भी एक ऐसे ही अपराधी को कब्जे में लिया गया जो खुद को बुर्के में छुपाकर अपनी गतिविधी को सुरक्षाबलों की नजरों से बुर्के के सहारे छुपा रहा था।


आज ही एक समाचार सामने आया जिसमें सौतेले माता-पिता ने बच्चे पर अमानबीय अतयाचार करने के बाद जब बच्चा मरने वाला था तो उसके इलाज के लिए उसे बुर्के में छुपाकर डाकटर के पास ले गए। ये राक्षस नहीं चाहते थे कि इस बच्चे की मौत से वो एक बन्धुआ मजदूर खो दें। ये मामला तब उजागर हुआ जब बच्चे को किसी काम का न देखकर इन दुष्टों ने दादी के पास वापिस भेजा अन्यथा ये लोग अपने पाप को बुर्के के सहारे छुपाने में सफल रहे थे।


काबुल में भारतीयों पर हमला करने वाले मुस्लिम आतंकवादी भी अपने विस्फोटक बुर्के में छुरपाकर ही लाए थे। जिसमें भारतीयों को जानमाल का भारी नुकसान उठाना पड़ा।


अभी कुछ दिन पहले जब हम तनौजा जेल में थे तो हमने देखा कि एक महिला बाहर से तो बुर्का पहन कर आयी पर अन्दर आते ही उसने बुर्का हटा दिया विना किसी के आदेश के हमारे सामने। मतलब यह महिला किसी मकसद से बुर्के का उपयोग कर रही थी न कि किसी आस्था को पूरा करने के लिए।


बैसे भी किसी भी सभ्य समाज में जरूरत से जयादा नकाब घर में तो ठीक है वेशक वहां भी जायज नहीं ठहराया जा सकता लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर यह नकाब वाकी लोगों के अन्दर दहसत व असुरक्षा का महौल पैदा करता है।


अब जबकि आतकंकवादी बुर्के को खुद को सुरक्षाबलों को धोखा देने के लिए उपयोग कर रहे हैं तो इन हालात में सभी सही दिशा में सोचने वाले लोगों को सरकार पर दबाब बनाकर भारत को इस कलंक से निजात दिलवाने की कोशिस कनी चाहिए ताकि आम जनता की रक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।


बैसे भी आज जब हम आधुनिकता के युग में जी रहे हैं व खुलेपन की बात कर रहे हैं तो हमें हैरानी होती है ये देखकर कि खुलेपन के ठेकेदार धर्मनिर्पेक्षतावादियों को बुर्के के पीछे दफन कर रखी गई होनहार मुसलिम लड़कियों की घुटन कभी महसूस नहीं होती अगर होती भी है तो मुसलिम आतेंकवादियों के डर से डंके की चोट पर उनकी बोलती बन्द रहती है।










क्या आतंकवादियों का समर्थन करने वाले नेताओं व छदम मानवाधिकारवादीयों को खुलेआम गोली से नहीं उड़ा देना चाहिए?

आज भारत में लोकतन्त्र का अर्थ हो गया है वेसमझ जनता द्वारा, गद्दारों की फूट चालो राज करो के षडयन्त्रों का सिकार होकर देशविरोधियों के हाथ मजबूत कर आतंकवादियों व देश के दुशमनों के लिए के लिए साशन ।अगर हम भारत के वर्तमान हालात का गहराई से अध्ययन करें तो सिर्फ एक बात उभर कर सामने आती है कि भारत के भीड़तन्त्र के चारों सत्मभ किसी न किसी रूप में देश के दुश्मन आतंकवादियों व अपराधियों को फायदा पहुंचाने के औजार बन गए हैं।


इस भीड़तन्त्र के चौथे सतम्भ मीडिया का एकमात्र काम बन गया है देश के शत्रुओं के अनुकूल बाताबरण बनाना, देसभक्तों को खलनायक के रूप में प्रसतुत करना व इसके बदले में देश के शत्रुओं से मोटी रकम प्राप्त करना।


इस भीड़तन्त्र के प्रमुख सत्मभ संसद के रहनुमाओं का काम बन गया है अपराधियों के बचाब के लिए कानून बनाना ब देश के शत्रुओं के पक्ष में बयानबाजी करना।


लोकतन्त्र की रक्षा के लिए एक मात्र उमीद न्यायापालिक भी धीरे-धीरे मिडीया व संसद के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए गद्दारों के हाथों विकती नजर आ रही है ।


आतंकवादी इशरत जहां व सोराबूद्दीन के मामले न्यायपालिका की देश से गद्दारी के सबसे बड़े उधाहरण हैं। न्यायपालिका भारतीय जनमानस की भावना व रितीरिवाज के प्रति कितनी संवेदनहीन है इसका सबसे बढ़ा उधाहरण है Live In relationship में अदालत द्वारा भगवान श्री कृष्ण जी का नमा उछालना विना ये सोचे समझे कि एतिहासिक तथ्य इसके विलकुल विपरीत हैं।


आज जब देश के सामने माओवादी आतंकवाद मुसलिम आतंकवाद के वाद सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है उस वक्त केन्द्र सरकार के ,ममता बैनर्जी जैसे मन्त्रियों व दिगविजय सिंह जैसे मानबताविरोधी नेताओं द्वारा खुलेआम माओवादी आतंकवादियों का समर्थन करना इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि आज देश व आमजनता से गद्दारी धर्मनिर्पेक्ष गिरोह से सबन्धित नेताओं की आदत बन चुका है।


हमारे विचार में माओवादी आतंकवादी संगठन PCPA के साथ मेघा पाटेकर व अग्नीवेश द्वारा मंच सांझा करना धर्मनिर्पेक्ष मानवाधिकारवादियों व देश के शत्रुओं के हिसंक गठजोड़ का विलकुल सपष्ट उधारण है।


हमार विचार में आज जो भी व्यक्ति भारतविरोधी आतंकवादियों का पक्ष लेता है, चाहे वो कितने भी उंचे पद पर क्यों न हो को खुलेआम गोली से मार डालना चाहिए वरना देश के आम नागरिक को अपने जीवनयापन के लिए आतंकवादियों का मोहताज होना पड़ेगा जो किसी भी तरह से सवीकार नहीं किया जा सकता।